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मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

हिंदी काव्य का अमर छंद रोला ------ नवीन चतुर्वेदी

हिंदी काव्य का अमर छंद रोला

नवीन चतुर्वेदी
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रोला छंद की विशेषताएं निम्न हैं:

१. चार पंक्तियों वाला होता है रोला छंद.
२. रोला छन्द की हर पंक्ति दो भागों में विभक्त होती है.
३. रोला छन्द की हर पंक्ति के पहले भाग में ११ मात्राएँ अंत में गुरु-लघु [२१] या लघु-लघु-लघु [१११] अपेक्षित हैं.
४. रोला छन्द की हर पंक्ति के दूसरे भाग में १३ मात्रा अंत में गुरु-गुरु [२२] / लघु-लघु-गुरु [११२] या लघु-लघु-लघु-लघु [११११] अपेक्षित है. कई विद्वानों का मत है क़ि रोला में पंक्ति के अंत में गुरु-गुरु [२२] से ही हो.
५. रोला छन्द की किसी भी पंक्ति की शुरुआत में लघु-गुरु-लघु [१२१] के प्रयोग से बचना चाहिए, इस से लय में व्यवधान उत्पन्न होता है|

रोला छन्द के कुछ उदाहरण:-

हिंद युग्म - दोहा गाथा सनातन से साभार:-:-

नीलाम्बर परिधान, हरित पट पर सुन्दर है.
२२११ ११२१=११ / १११ ११ ११ २११२ = १३
सूर्य-चन्द्र युग-मुकुट, मेखला रत्नाकर है.
२१२१ ११ १११=११ / २१२ २२११२ = १३
नदियाँ प्रेम-प्रवाह, फूल तारा-मंडल हैं
११२ २१ १२१=११ / २१ २२ २११२ = १३
बंदीजन खगवृन्द, शेष-फन सिंहासन है.
२२११ ११२१ =११ / २१११ २२११२ = १३


शिवकाव्य.कोम से साभार:-

अतल शून्य का मौन, तोड़ते - कौन कहाँ तुम.
१११ २१ २ २१ = ११ / २१२ २१ १२ ११ = १३
दया करो कुछ और, न होना मौन यहाँ तुम..
१२ १२ ११ २१ = ११ / १ २२ २१ १२ ११ = १३
नव जीवन संचार, करो , फिर से तो बोलो.
११ २११ २२१ = ११ / १२ ११ २ २ २२ = १३
तृषित युगों से श्रवण, अहा अमरित फिर घोलो..
१११ १२ २ १११ = ११ / १२ १११११ ११ २२ = १३

रूपचंद्र शास्त्री मयंक जी के ब्लॉग उच्चारण से साभार:-

समझो आदि न अंत, खिलेंगे सुमन मनोहर.
११२ २१ १ २१ = ११ / १२२ १११ १२११ = १३
रखना इसे सँभाल, प्यार अनमोल धरोहर..
११२ १२ १२१ = ११ / २१ ११२१ १२११ = १३


कवि श्रेष्ठ श्री मैथिली शरण गुप्त जी द्वारा रचित साकेत का द्वादश सर्ग तो रोला छन्द में ही है और उस की शुरुआती पंक्तियों पर भी एक नज़र डालते हैं:-

ढाल लेखनी सफल, अंत में मसि भी तेरी.
२१ २१२ १११ = ११ / २१ २ ११ २ २२ = १२
तनिक और हो जाय, असित यह निशा अँधेरी..
१११ २१ २ २१ = ११ / १११ ११ १२ १२२ = १३

इसी रोला छंद की तीसरी और चौथी पंक्तियाँ खास ध्यान देने योग्य हैं:-
ठहर तभी, कृष्णाभिसारिके, कण्टक कढ़ जा.
१११ १२ २२१२१२ = १६ / २११ ११ २ = ८
बढ़ संजीवनि आज, मृत्यु के गढ़ पर चढ़ जा..
११ २२११ २१ = ११ / २१ २ ११ ११ ११ २ = १३

तीसरी पंक्ति में यति को प्रधान्यता दी जाए तो यति आ रही है १६ मात्रा के बाद| कुल मात्रा १६+८=२४ ही हैं| परंतु यदि हम 'कृष्णाभिसारिके' शब्द का संधि विच्छेद करते हुए पढ़ें तो यूँ पाते हैं:-

ठहर तभी कृष्णाभि+सारिके कण्टक कढ़ जा
१११ १२ २२१ = ११ / २१२ २११ ११ २ = १३

अब कुछ अपने मन से : छंद रचना को ले कर लोगों में फिर से जागरूकता बढ़ान हमारा उद्देश्य है | हम में से कई बहुत सफलता से ग़ज़ल कह रहे हैं, उनकी तख्तियों को आसानी से समझ रहे हैं|  नीचे दिए गये पदभार (वज्न) भी रोला छंद लिखने में मदद कर सकते है, यथा:-

अपना तो है काम, छंद की बातें करना
फइलातुन फइलात फाइलातुन फइलातुन
२२२ २२१ = ११ / २१२२ २२२ = १३

भाषा का सौंदर्य, सदा सर चढ़ के बोले
फाईलुन मफऊलु / फईलुन फइलुन फइलुन
२२२ २२१ = ११ / १२२ २२ २२ = १३

रोला छन्द संबन्धित कुछ अन्य उदाहरण :- 
१.  पाक दिल जीत घर गया
तेंदुलकर, सहवाग, कोहली, गौतम, माही|
रैना सँग युवराज, कामयाबी के राही|
नहरा और मुनाफ़, इक दफ़ा फिर से चमके|
भज्जी संग जहीर, खेल दिखलाया जम के|१|

हारा मेच परन्तु, पाक दिल जीत घर गया|
एक अनोखा काम, इस दफ़ा पाक कर गया|
नफ़रत का हो अंत, प्यार वाली हो बिगिनिंग|
शाहिद ने ये बोल, बिगिन कर दी न्यू ईनिंग|२|

अब अंतिम है मेच, दिल धड़कता है पल छिन|
सब के सब बेताब, हो रहे घड़ियाँ गिन गिन|
कैसा होगा मेच, सोचते हैं ये ही सब|
बोल रहे कुछ लोग, जो नहीं अब, तो फिर कब|३|

तेंदुलकर तुम श्रेष्ठ, मानता है जग सारा|
आशा तुमसे चूँकि, खास अंदाज तुम्हारा|
तुम हो क्यूँ जग-श्रेष्ठ, आज फिर से बतला दो|
मारो सौवाँ शतक, झूमने का मौका दो|४|

भारत में किरकेट, बोलता है सर चढ़ के|
सब ने किया क़ुबूल, प्रशंसा भी की बढ़ के|
अपनी तो ये राय, हार हो या फिर विक्ट्री|
खेलें ऐसा खेल, जो क़ि बन जाए हिस्ट्री|५|

छन्द : रोला
विधान ११+१३=२४ मात्रा
२. भद्रजनों की रीत नहीं ये संगाकारा
हार गए जो टॉस, किसलिए उसे नकारा|
भद्रजनों की रीत, नहीं ये संगाकारा|
देखी जब ये तुच्छ, आपकी आँख मिचौनी|
चौंक हुए स्तब्ध, जेफ क्रो, शास्त्री, धोनी|१|

तेंदुलकर, सहवाग, ना चले, फर्क पड़ा ना|
गौतम और विराट, खेल खेले मर्दाना|
धोनी लंगर डाल, क्रीज़ से चिपके डट के|
समय समय पर दर्शनीय, फटकारे फटके|२|

जब सर चढ़े जुनून, ख्वाब पूरे होते हैं|
सब के सम्मुख वीर, बालकों से रोते हैं|
दिल से लें जो ठान, फिर किसी की ना मानें|
हार मिले या जीत, धुरंधर लड़ना जानें|३|

त्र्यासी वाली बात, अब न कोई बोलेगा|
सोचेगा सौ बार, शब्द अपने तोलेगा|
अफ्रीका, इंगलेंड, पाक, औसी या लंका|
सब को दे के मात, बजाया हमने डंका|४|

तख्तियों के जानकार इस बारे में और भी बहुत कुछ हम लोगों से साझा कर सकते हैं|
 आभार: http://thalebaithe.blogspot.com/2011/04/blog-post_04.html
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