कविता दिवस के परिप्रेक्ष्य में:
आज का गीत-
श्वास-श्वास जीवन की कविता
संजीव 'सलिल'
*
श्वास-श्वास जीवन की कविता,
आस-आस जीवन की कविता
नहीं कोई भी पल कविता बिन-
कोई एक दिवस कैसे हो?...
*
जन्में तो हम लय में रोये,
आँचल पा सपनों में खोये.
घुटनों चले ठुमककर विहँसे,
पैर जमकर सपने बोये.
धरती से नभ देख लगा यह-
प्यास-प्यास जीवन की कविता...
*
मैया, बहिना, भौजी, साली.
सरहज, समधन रस की प्याली.
अर्धांगिनी की बात करें क्या?-
आधार, कपोल, नयन की लाली.
पाया-खोया जब, तब पाया
लास-हास जीवन की कविता...
*
ले प्रयास की वेणु चला जब,
लक्ष्य राधिका को पाने मैं.
गोप-गोपियाँ साधक-बाधक
संग-साथ थे मुस्काने में.
गिरा-उठा-सम्हला, दौड़ा, रुक
पाया रास श्वास की कविता...
*
7 टिप्पणियां:
उम्दा गीत है बधाई
७ अप्रैल
priy sanjiv ji
aapki kavya pratibha ka jawab hi nahi hai
kusum
आदरणीय सलिल जी ,
बहुत ही प्यारा गीत है, कविता की प्यास दर्शाते हुए !!
सादर
संतोष भाऊवाला
२ अप्रैल
कविता दिवस मुबारक हो आचार्य जी.
लिख डाली है कितनी सुंदर
सुमधुर नई श्वास की कविता
यूँ तो आप नित्य करते हैं
लेकिन आज खास की कविता
--ख़लिश
२ अप्रैल
हर कविता हो जाती पूरी
जब उसकी मिलती मंजूरी
बना दिया कवितामय जिसने
प्रकृति नटी पूरी की पूरी ||
बहुत सुन्दर रचना है आपकी कविता का शृंगार लिए ||
Your's ,
Achal Verma
धन्यवाद.
खलिश अचल संतोष शकुन
हों संग बने तब जीवन कविता.
अनिल अनल भू सलिल गगन
कमलेश उगायें सविता कविता.
८ अप्रैल
आ० आचार्य जी,
काव्य-नमन लें -
कवितामय ही जीवन कवि का
कवि का हास, त्रास, है कविता
रोती भी हंसती भी कविता
कवि के साथ साथ ही कविता
सादर,
कमल
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