कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

मुक्तिका : माँ ______- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका
माँ
संजीव 'सलिल'
*
बेटों के दिल पर है माँ का राज अभी तक.
माँ के आशिष का है सिर पर ताज अभी तक..

प्रभू दयालु हों इसी तरह हर एक बेटे पर
श्री वास्तव में माँ है, है अंदाज़ अभी तक..

बेटे जो स्वर-सरगम जीवन भर गुंजाते.
सत्य कहूँ माँ ही है उसका साज अभी तक..

बेटे के बिन माँ का कोई काम न रुकता.
माँ बिन बेटों का रुकता हर काज अभी तक..

नहीं रही माँ जैसे ही बेटा सुनता है.
बेटे के दिल पर गिरती है गाज अभी तक..

माँ गौरैया के डैने, ममता की छाया.
पा बेटे हो जाते हैं शहबाज़ अभी तक..

कोई गलती हो जाये तो आँख न उठती.
माँ से आती 'सलिल' सुतों को लाज अभी तक..

नानी तो बन गयी, कभी दादी बन जाऊँ.
माँ भरती है 'सलिल' यही परवाज़ अभी तक..

********

2 टिप्‍पणियां:

Dheeraj ने कहा…

निःसंदेह माँ को कब कहाँ कैसे कोई एक पल को भुलाए
और जो नादान ये करे दुःसाहास वो क्यो ना फिर हर जनम पछ्त्ताये

माँ की महिमा कौन गाये माँ अपने आप मे ही संपूर्ण है जिसके श्रवण मात्र से हृदय पुलकित हो जाए और आत्मा तृप्त.

अच्छी रचना ................. आभार स्वीकार करे

Kamal Verma 'guruji' ने कहा…

Salil ji main aapki rachnayen bahut pasand karta hoon ....... main gurv mehsoos karunga aapko apna mitra ya yun kahun ki apne Guru ki shreeni me shamil karke.