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मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

एक चतुष्पदी : संजीव 'सलिल'

एक चतुष्पदी :

संजीव 'सलिल'
*
हार मिलीं अनगिन मैंने जयहार समझ उनको पहना.
जग-जीवन ने अपमान दिया मैंने मना उसको गहना..
प्रभु से माँगा 'जो जब देना, मुझको सिखला देना सहना-
आखिर में साँसों-आसों की चादर को सीख सकूँ तहना..
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

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