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रविवार, 24 अप्रैल 2011

मुक्तिका: आँख का पानी संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
आँख का पानी
संजीव 'सलिल'
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खो गया खोजो कहाँ-कब आँख का पानी?
बो गया निर्माण की फसलें ये वरदानी..

काटकर जंगल, पहाड़ों को मिटाते लोग.
नासमझ है मनुज या है दनुज अभिमानी?

मिटी कल-कल, हुई किल-किल, घटा जब से नीर.
सुन न जन की पीर, करता तंत्र मनमानी..

लिये चुल्लू में तनिक जल, जल रहा जग आज.
'यही जल जीवन' नहीं यह बात अनजानी..

'सत्य-शिव-सुन्दर' न पानी बिन सकोगे साध.
जल-रहित यह सृष्टि होगी 'सलिल' शमशानी..
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