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सोमवार, 4 अप्रैल 2011

नव संवत्सर में... -- संजीव 'सलिल'

नव संवत्सर में...

संजीव 'सलिल'
*
मीत सत्य नारायण से पहचान करें नव संवत्सर में.
खिलें कमल से सलिल-धार में, आन करेंनव संवत्सर में..
काली तेरे घर में, लक्ष्मी मेरे घर में जन्मे क्योंकर?
सरस्वती जी विमल बुद्धि वरदान करें नव संवत्सर में..
*
शक्ति-पर्व पर आत्मशक्ति  खुद की पहचानें . 
नहीं किसी से कम हैं हम यह भी अनुमानें. 
मेहनत लगन परिश्रम की हम करें साधना- 
'सलिल' सकल जग की सेवा करना है- ठानें..
*
एक त्रिपदी : जनक छंद
*
हरी दूब सा मन हुआ
जब भी संकट ने छुआ
'सलिल' रहा मन अनछुआ..

1 टिप्पणी:

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

आदरणीय सलिल जी त्रिपदी छन्द बहुत ही सुंदर है| दूसरा शायद रोला जैसा लग रहा है| पहले के बारे में भी बताने की कृपा करें मान्यवर| हम लोगों को इस से अच्छा सीखने का मौका और न होगा|