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शनिवार, 16 अप्रैल 2011

हिंदी छंद : अमृतध्वनि संजीव 'सलिल'

हिंदी छंद : अमृतध्वनि 
संजीव 'सलिल'

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अमृतध्वनि भी कुण्डलिनी का तरह षट्पदी (६ पंक्ति का) छंद है. इसमें प्रत्येक पंक्ति को ८-८ मात्राओं के ३ भागों में बाँटा जाता है. इसमें यमक और अनुप्रास का प्रयोग बहुधा होने पर एक विशिष्ट नाद (ध्वनि) सौन्दर्य उत्पन्न होने से इसका नाम अमृतध्वनि हुआ.
रचना विधान:
१. पहली दो पंक्तियाँ दोहा: १३-११ पर लघु के साथ यति.
२. शेष ४ पंक्तियाँ: २४ मात्राएँ ८, ८, ८ पर लघु के साथ यति.
३. दोहा का अंतिम पद तृतीय पंक्ति का प्रथम पद.
४. दोहा का प्रथम शब्द (शब्द समूह नहीं) छ्न्द का अंतिम शब्द हो.
नवीन चन्द्र चतुर्वेदी :
उन्नत धारा प्रेम की, बहे अगर दिन रैन|


तब मानव मन को मिले, मन-माफिक सुख चैन||
मन-माफिक सुख चैन, अबाधित होंय अनन्‍दित|
भाव सुवासित, जन हित लक्षित, मोद मढें नित|
रंज न किंचित, कोई न वंचित, मिटे अदावत|
रहें इहाँ-तित, सब जन रक्षित, सदा समुन्नत||

पं. रामसेवक पाठक 'हरिकिंकर' :
आया नाज़ुक समय अब, पतित हुआ नर आज.
करता निन्दित कर्म सब, कभी न आता बाज..
कभी न आता, बाज बेशरम, सत भी छोड़ा.
परहित भूला, फिरता फूला, डाले रोड़ा..
जग-दुःख छाया, अमन गँवाया, चैन न पाया.
हर्षित पुलकित, प्रमुदित हुआ न, कुसमय आया..
मनोहर शर्मा 'माया' :
पावस है वरदान सम, देती नीर अपार.
हर्षित होते कृषक गण, फसलों की भरमार..
झर-झर पानी, करे किसानी, कीचड़ सानी.
वारिद गरजे, चपला चमके, टप-टप पानी..
धान निरावे, कजरी गावे, बीते 'मावस.
हर्षित हर तन, पुलकित हर मन, आई पावस..
(दोहे का अंतिम चरण तीसरी पंक्ति का प्रथम चरण नहीं है, क्या इसे अमृतध्वनि कहेंगे?)
संजीव वर्मा 'सलिल'
जलकर भी तम हर रहे, चुप रह मृतिका-दीप.
मोती पाले गर्भ में, बिना कुछ कहे सीप.
सीप-दीप से, हम मनुज तनिक, न लेते सीख.
इसीलिए तो, स्वार्थ में लीन, पड़ रहे दीख.
दीप पर्व पर, हों संकल्पित, रह हिल-मिलकर.
दें उजियारा, आत्म-दीप बन, निश-दिन जलकर.
(दोहे का अंतिम चरण तीसरी पंक्ति का प्रथम चरण नहीं है, किन्तु दोहे का अंतिम शब्द तीसरी पंक्ति का प्रथम शब्द है, क्या इसे अमृतध्वनि कहेंगे?)
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समस्यापूर्ति:
१. कम्प्यूटर
२. सुन्दरियाँ
३. भारत

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