मुक्तिका:
साथ बुजुर्गों का
संजीव 'सलिल'
*
साथ बुजुर्गों का बरगद की छाया जैसा.
जब हत्ता तब अनुभव होता छाते जैसा..
मिले विकलता हो मायूस मौन सहता मन.
मिले सफलता नशा शीश पर चढ़ता मै सा..
कम हो तो दुःख, अधिक मिले होता घमंड है.
अमृत और गरल दोनों बन जाता पैसा..
हटे शीश से छाँव, धूप-पानी खुद झेले.
तब जाने बिजली, तूफां, अंधड़ हो ऐसा..
जो बोया है, वह काटोगे 'सलिल' न भूलो.
नियति-नियम है अटल, मिले 'जैसे को तैसा'..
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Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
साथ बुजुर्गों का
संजीव 'सलिल'
*
साथ बुजुर्गों का बरगद की छाया जैसा.
जब हत्ता तब अनुभव होता छाते जैसा..
मिले विकलता हो मायूस मौन सहता मन.
मिले सफलता नशा शीश पर चढ़ता मै सा..
कम हो तो दुःख, अधिक मिले होता घमंड है.
अमृत और गरल दोनों बन जाता पैसा..
हटे शीश से छाँव, धूप-पानी खुद झेले.
तब जाने बिजली, तूफां, अंधड़ हो ऐसा..
जो बोया है, वह काटोगे 'सलिल' न भूलो.
नियति-नियम है अटल, मिले 'जैसे को तैसा'..
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Acharya Sanjiv Salil
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1 टिप्पणी:
सभी मुक्तिकाएं अति सुन्दर , साधुवाद
" जैसे को तैसा " का नियम निर्विवाद
कमल
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