एक गीत
होता है...
संजीव 'सलिल'
*
जाने ऐसा क्यों होता है?
जानें ऐसा यों होता है...
*
गत है नीव, इमारत है अब,
आसमान आगत की छाया.
कोई इसको सत्य बताता,
कोई कहता है यह माया.
कौन कहाँ कब मिला-बिछुड़कर?
कौन बिछुड़कर फिर मिल पाया?
भेस किसी ने बदल लिया है,
कोई न दोबारा मिल पाया.
कहाँ परायापन खोता है?
कहाँ निजत्व कौन बोता है?...
*
रचनाकार छिपा रचना में
ज्यों सजनी छिपती सजना में.
फिर मिलना छिपता तजना में,
और अकेलापन मजमा में.
साया जब धूमिल हो जाता.
काया का पाया, खो जाता.
मन अपनों को भूल-गँवाता,
तन तनना तज, झुक तब पाता.
साँस पतंग, आस जोता है.
तन पिंजरे में मन तोता है...
*
जो अपना है, वह सपना है.
जग का बेढब हर नपना है.
खोल, मूँद या घूर, फाड़ ले,
नयन-पलक फिर-फिर झपना है.
हुलस-पुलक मत हो उदास अब.
आएगा लेकर उजास रब.
एकाकी हो बात जोहना,
मत उदास हो, पा हुलास सब.
मिले न जो हँसता-रोता है.
मिले न जो जगता-सोता है...
*****************
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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मंगलवार, 14 दिसंबर 2010
एक गीत : होता है... __ संजीव 'सलिल'
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8 टिप्पणियां:
गीता पंडित (शमा) …
बहुत सुंदर शब्दों में जीवन दर्शन करा गए आप...मनोहारी गीत...आभार और बधाई आपको....नमन...
पल भर का ये रूप सलौना, क्यूँ इसमें मन बोता है,
जीवन मीते! एक सपना है, जग में आकर सोता है | -- गीता पंडित -
अनन्या …
सुन्दर भाषा अनुपम गीत
nitesh …
अच्छी रचना
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'…
आपका आभार शत-शत.
सच ही शमा अनन्य होती,
अंधकार में धैर्य न खोती.
पंडित बन नीतेश कह रहा-
जीवन सागर गीता मोती.
रीते हाथ रहा जो सोता,
पाना है तो मारो गोता...
vedvyathit …
bahut smy bad geet pdhne ko mila hai nhi to log ttha kthit gjl ke pichhe pde hain
hardik bdhai swikar kren
अभिषेक सागर …
अच्छा गीत..बधाई
बेनामी …
bhut acchii rachana
prabhudayal shrivastava
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' …
धन्यवाद.
अमित अजित हो सकें कभी हम.
दे उजियारा, मिटा सकें तम.
प्रभु से इतनी विनत प्रार्थना-
सबको सुख हो 'सलिल' अधिकतम.
प्रभु दयालु तो वेद व्यथित क्यों?
बेनामी अभिषेक कथित क्यों?
कौन बताये?, किससे पूछें??-
सुख में दुःख भी मिला निहित क्यों?
कोशिश नभ में पतंग उमंगें
'सलिल' बाँध ले श्रम का जोता...
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