गीत:
निज मन से हांरे हैं...
संजीव 'सलिल'
*
कौन, किसे, कैसे समझाये
सब निज मन से हारे हैं.....
*
इच्छाओं की कठपुतली हम
बेबस नाच दिखाते हैं.
उस पर भी तुर्रा यह, खुद को
तीसमारखां पाते हैं.
रास न आये सच कबीर का
हम बुदबुद-गुब्बारे हैं.....
*
बिजली के जिन तारों से
टकरा पंछी मर जाते हैं.
हम नादां उनका प्रयोग कर,
घर में दीप जलाते हैं.
कोई न जाने कब चुप हों
नाहक बजते इकतारे हैं.....
*
पान, तमाखू, ज़र्दा, गुटका,
खुद खरीदकर खाते हैं.
जान हथेली पर रखकर-
वाहन जमकर दौड़ाते हैं.
'सलिल' शहीदों के वारिस या
दिशाहीन बंजारे हैं.....
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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मंगलवार, 21 दिसंबर 2010
गीत: निज मन से हांरे हैं... --संजीव 'सलिल'
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
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6 टिप्पणियां:
खुद को
तीसमारखां पाते हैं......
सब मन का भ्रम और खुद को भुलावे मे रखने का प्रयत्न
जान हथेली पर रखकर-
वाहन जमकर दौड़ाते हैं.........
नासमझी का सबसे बढ़िया उदाहरण...
बहुत बढ़िया आचार्य जी,सुंदर रचना ...
बहुत सुंदर रचना है ..
अपनी ही कमियों को नज़रअंदाज़ कर के खुद को सही साबित करने की कोशिश का कितना सटीक वर्णन..वाह!
"दिशाहीन बन्जारे"
वाह वाह वाह, सलिल जी कमाल किया है आपने इस नवगीत में| कमाल है कमाल है| पहली से आख़िरी पंक्ति तक पूरी की पूरी रचना मन को उद्वेलित करती है|
आप सबकी गुण ग्राहकता को समर्पित हैं चंद पंक्तियाँ
बागी लता नवीन मिथक है,
देख चकित रह जाते हैं.
हों न प्रभाकर तो योगी-
तम में बरबस भरमाते हैं.
शकुनी पांसे थामे तो
दुर्योधन के पौ बारे हैं.....
*
बिजली के जिन तारों से
टकरा पंछी मर जाते हैं.
हम नादां उनका प्रयोग कर,
घर में दीप जलाते हैं.
कोई न जाने कब चुप हों
नाहक बजते इकतारे हैं.....
jai ho bahut khubsurat
इच्छाओं की कठपुतली हम
बेबस नाच दिखाते हैं.
उस पर भी तुर्रा यह, खुद को
तीसमारखां पाते हैं.
ये लाइंस तो कुछ ज्यादा ही कमाल हैं...मज़ा आ गया
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