दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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रविवार, 26 दिसंबर 2010
लघुकथा एकलव्य संजीव वर्मा 'सलिल'
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
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2 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया आचार्य जी, बच्चे के भाव को आपने जुबान दे दिया ...
कलियुग से ठीक थोड़े पहले के महाभारत काल की एक कथा आज भी कितनी प्रासंगिक है, यह पढ़ना रुचिकर लगा| नमन|
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