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रविवार, 12 दिसंबर 2010

मुक्तिका थोड़ा ज्यादा, ज्यादा कम.... ---संजीव 'सलिल'

मुक्तिका                                                                             थोड़ा ज्यादा, ज्यादा कम.

संजीव 'सलिल'


*
थोड़ा ज्यादा, ज्यादा कम.
चाहा सुख तो पाया गम.

अधरों पर मुस्कान मिली
लेकिन आँखें पायीं नम.

दूर करो हाथों से बम.
मिलो गले कह बम-बम-बम.

'मैं'-'तू' भूलें काश सभी
कहें साथ मिल सारे 'हम'.

सात जन्म का वादा कर
ठोंक रहे आपस में ख़म.

मन मलीन को ढाँक रहे
क्यों तन को नित कर चम्-चम्.

जब भी बाला दिया 'सलिल'
मिला ज्योति के नीचे तम.

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