मुक्तिका थोड़ा ज्यादा, ज्यादा कम.
संजीव 'सलिल'
*
थोड़ा ज्यादा, ज्यादा कम.
चाहा सुख तो पाया गम.
अधरों पर मुस्कान मिली
लेकिन आँखें पायीं नम.
दूर करो हाथों से बम.
मिलो गले कह बम-बम-बम.
'मैं'-'तू' भूलें काश सभी
कहें साथ मिल सारे 'हम'.
सात जन्म का वादा कर
ठोंक रहे आपस में ख़म.
मन मलीन को ढाँक रहे
क्यों तन को नित कर चम्-चम्.
जब भी बाला दिया 'सलिल'
मिला ज्योति के नीचे तम.
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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रविवार, 12 दिसंबर 2010
मुक्तिका थोड़ा ज्यादा, ज्यादा कम.... ---संजीव 'सलिल'
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आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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