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मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

एक गीत : होता है... __ संजीव 'सलिल'

एक गीत                                                                                       
होता है...
संजीव 'सलिल'
*
जाने ऐसा क्यों होता है?
जानें ऐसा यों होता है...
*
गत है नीव, इमारत है अब,
आसमान आगत की छाया.
कोई इसको सत्य बताता,
कोई कहता है यह माया.

कौन कहाँ कब मिला-बिछुड़कर?
कौन बिछुड़कर फिर मिल पाया?
भेस किसी ने बदल लिया है,
कोई न दोबारा मिल पाया.

कहाँ परायापन खोता है?
कहाँ निजत्व कौन बोता है?...
*
रचनाकार छिपा रचना में
ज्यों सजनी छिपती सजना में.
फिर मिलना छिपता तजना में,
और अकेलापन मजमा में.

साया जब  धूमिल हो जाता.
काया का पाया, खो जाता.
मन अपनों को भूल-गँवाता,
तन तनना तज, झुक तब पाता.

साँस पतंग, आस जोता है.
तन पिंजरे में मन तोता है... 
*
जो अपना है, वह सपना है.
जग का बेढब हर नपना है.
खोल, मूँद या घूर, फाड़ ले,
नयन-पलक फिर-फिर झपना है.

हुलस-पुलक मत हो उदास अब.
आएगा लेकर उजास रब.
एकाकी हो बात जोहना,
मत उदास हो, पा हुलास सब.

मिले न जो हँसता-रोता है.
मिले न जो जगता-सोता है...
*****************

8 टिप्‍पणियां:

Gita Pandit 'shama' ने कहा…

गीता पंडित (शमा) …

बहुत सुंदर शब्दों में जीवन दर्शन करा गए आप...मनोहारी गीत...आभार और बधाई आपको....नमन...


पल भर का ये रूप सलौना, क्यूँ इसमें मन बोता है,
जीवन मीते! एक सपना है, जग में आकर सोता है | -- गीता पंडित -

ananya ने कहा…

अनन्या …

सुन्दर भाषा अनुपम गीत

nitesh ने कहा…

nitesh …

अच्छी रचना

Divya Narmada ने कहा…

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'…

आपका आभार शत-शत.

सच ही शमा अनन्य होती,
अंधकार में धैर्य न खोती.
पंडित बन नीतेश कह रहा-
जीवन सागर गीता मोती.

रीते हाथ रहा जो सोता,
पाना है तो मारो गोता...

vef vyathit ने कहा…

vedvyathit …


bahut smy bad geet pdhne ko mila hai nhi to log ttha kthit gjl ke pichhe pde hain

hardik bdhai swikar kren

Divya Narmada ने कहा…

अभिषेक सागर …


अच्छा गीत..बधाई

prabhudayal shrivastav ने कहा…

बेनामी …

bhut acchii rachana

prabhudayal shrivastava

Divya Narmada ने कहा…

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' …

धन्यवाद.

अमित अजित हो सकें कभी हम.
दे उजियारा, मिटा सकें तम.
प्रभु से इतनी विनत प्रार्थना-
सबको सुख हो 'सलिल' अधिकतम.

प्रभु दयालु तो वेद व्यथित क्यों?
बेनामी अभिषेक कथित क्यों?
कौन बताये?, किससे पूछें??-
सुख में दुःख भी मिला निहित क्यों?

कोशिश नभ में पतंग उमंगें
'सलिल' बाँध ले श्रम का जोता...