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गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

नव गीत: हर चेहरे में... संजीव 'सलिल'

नव गीत:

हर चेहरे में...

संजीव 'सलिल'

हर चेहरे में
अलग कशिश है,
आकर्षण है...
*
मिल्न-विरह में, नयन-बयन में.
गुण-अवगुण या चाल-चलन में.
कहीं मोह का,
कहीं द्रोह का
संघर्षण है.
हर चेहरे में
अलग कशिश है,
आकर्षण है...
*
मन की मछली, तन की तितली.
हाथ न आयी, पल में फिसली.
क्षुधा-प्यास का,
श्वास-रास का,
नित तर्पण है.
हर चेहरे में
अलग कशिश है,
आकर्षण है...
*
चंचल चितवन, सद्गुण-परिमल.
मृदुल-मधुर सुर, आनन मंजुल.
हाव-भाव ये,
ताव-चाव ये
प्रभु-अर्पण है.
हर चेहरे में
अलग कशिश है,
आकर्षण है...
*
गिरि-सलिलाएँ, काव्य-कथाएँ
कही-अनकही, सुनें-सुनाएँ.
कलरव-गुंजन,
माटी-कंचन
नव दर्पण है.
हर चेहरे में
अलग कशिश है,
आकर्षण है...
*
बुनते सपने, मन में अपने.
समझ नाते जग के नपने.
जन्म-मरण में,
त्याग-वरण में
संकर्षण है.
हर चेहरे में
अलग कशिश है,
आकर्षण है...
*

2 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ... ने कहा…

अभी अभी इस सुन्दर गीत को पढ कर आयी हूँ धन्यवाद।
आचार्य जी को नमन

गिरीश बिल्लोरे 'मुकुल' ... ने कहा…

Sanjeev Bhai

Badhaiya sundar rachana