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सोमवार, 25 मई 2009

काव्य किरण :

एक शे'र



आचार्य संजीव 'सलिल'



जब तलक जिंदा था, रोटी न मुहैया थी।



मर गया तो तेरही में दावतें हुईं॥



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7 टिप्‍पणियां:

pramod jain ने कहा…

shaandar

अर्चना श्रीवास्तव ने कहा…

सामाजिक रूढियों पर चोट करती सशक्त लघुकथा.

mayank ने कहा…

bahut achchhee rachna.

M.M.Chatterji ने कहा…

Thought provoking.

रंजना ने कहा…

Yahi saty hai.....

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

कम शब्‍दों में
अधिक उकेरन

babli ने कहा…

Babli ने कहा…
आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
बहुत बढ़िया लगा! मैं भारतीय हूँ इस बात का मुझे गर्व है!

Wednesday, May 27, 2009 9:27:00 AM