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शनिवार, 2 जुलाई 2022

द्विपदि, दोहा, छंद ​सवाई, छंद समान,मुक्तिका, दोस्त, सूरज, पोयम

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छंद चर्चा:
दोहा गोष्ठी:
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सूर्य-कांता कह रही, जग!; उठ कर कुछ काम।
चंद्र-कांता हँस कहे, चल के लें विश्राम।।
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सूर्य-कांता भोर आ, करती ध्यान अडोल।
चंद्र-कांता साँझ सँग, हँस देती रस घोल।।
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सूर्य-कांता गा रही, गौरैया सँग गीत।
चंद्र-कांता के हुए, जगमग तारे मीत।।
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सूर्य-कांता खिलखिला, हँसी सूर्य-मुख लाल।
पवनपुत्र लग रहे हो, किसने मला गुलाल।।
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चंद्र-कांता मुस्कुरा, रही चाँद पर रीझ।
पिता गगन को देखकर, चाँद सँकुचता खीझ।।
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सूर्य-कांता मुग्ध हो, देखे अपना रूप।
सलिल-धार दर्पण हुई, सलिल हो गया भूप।।
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चंद्र-कांता खेलती, सलिल-लहरियों संग।
मन मसोसता चाँद है, देख कुशलता दंग।।
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सूर्य-कांता ने दिया, जग को कर्म सँदेश।
चंद्र-कांता से मिला, 'शांत रहो' निर्देश।।
२-७-२०१८
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टीप: उक्त द्विपदियाँ दोहा हैं या नहीं?, अगर दोहा नहीं क्या यह नया छंद है?
मात्रा गणना के अनुसार प्रथम चरण में १२ मात्राएँ है किन्तु पढ़ने पर लय-भंग नहीं है। वाचिक छंद परंपरा में ऐसे छंद दोषयुक्त नहीं कहे जाते, चूँकि वाचन करते हुए समय-साम्य स्थापित कर लिया जाता है।
कथ्य के पश्चात ध्वनिखंड, लय, मात्रा व वर्ण में से किसे कितना महत्व मिले? आपके मत की प्रतीक्षा है।
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छंद सलिला:
​सवाई /समान छंद
संजीव
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छंद-लक्षण: जाति लाक्षणिक, प्रति चरण मात्रा ३२ मात्रा, यति १६-१६, पदांत गुरु लघु लघु ।

लक्षण छंद:
हर चरण समान रख सवाई / झूम झूमकर रहा मोह मन
गुरु लघु लघु ले पदांत, यति / सोलह सोलह रख, मस्त मगन

उदाहरण:
१. राय प्रवीण सुनारी विदुषी / चंपकवर्णी तन-मन भावन
वाक् कूक सी, केश मेघवत / नैना मानसरोवर पावन
सुता शारदा की अनुपम वह / नृत्य-गान, शत छंद विशारद
सदाचार की प्रतिमा नर्तन / करे लगे हर्षाया सावन

२. केशवदास काव्य गुरु पूजित,/ नीति धर्म व्यवहार कलानिधि
रामलला-नटराज पुजारी / लोकपूज्य नृप-मान्य सभी विधि
भाषा-पिंगल शास्त्र निपुण वे / इंद्रजीत नृप के उद्धारक
दिल्लीपति के कपटजाल के / भंजक- त्वरित बुद्धि के साधक


३. दिल्लीपति आदेश: 'प्रवीणा भेजो' नृप करते मन मंथन
प्रेयसि भेजें तो दिल टूटे / अगर न भेजें_ रण, सुख भंजन
देश बचाने गये प्रवीणा /-केशव संग करो प्रभु रक्षण
'बारी कुत्ता काग मात्र ही / करें और का जूठा भक्षण
कहा प्रवीणा ने लज्जा से / शीश झुका खिसयाया था नृप
छिपा रहे मुख हँस दरबारी / दे उपहार पठाया वापि
२-७-२०१३
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दोस्त / FRIEND




दोस्त






POEM : FRIEND




You came into my life as an unwelcome face,


Not ever knowing our friendship, I would one day embrace.


As I wonder through my thoughts and memories of you,


It brings many big smiles and laughter so true.








I love the special bond that we beautifully share,


I love the way you show you really care,


Our friendship means the absolute world to me,


I only hope this is something I can make you see.




Thankyou for opening your mind and your souls,


I wiee do all I can to help heal your hearts little holes.


Remember, your secrects are forever safe within me,


I will keep them under the tightest lock and key.




Thankyou for trusting me right from the start.


You truely have got a wonderful heart.


I am now so happy I felt that embrace.


For now I see the beauty of my best friend's face...




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SMILE ALWAYS


Inside the strength is the laughter.
Inside the strength is the game.
Inside the strength is the freedom.
The one who knows his strength knows the paradise.
All which appears over your strengths is not necessarily Impossible,
but all which is possible for the human cannot be over your strengths.


Know how to smile :


What a strength of reassurance,
Strength of sweetness, peace,
Strength of brilliance !
May the wings of the butterfly kiss the sun
and find your shoulder to light on...
to bring you luck
happiness and cheers
smile always
२-७-२०१२
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-: मुक्तिका :-
सूरज - १
*
उषा को नित्य पछियाता है सूरज.
न आती हाथ गरमाता है सूरज..


धरा समझा रही- 'मन शांत करले'
सखी संध्या से बतियाता है सूरज..


पवन उपहास करता, दिखा ठेंगा.
न चिढ़ता, मौन बढ़ जाता है सूरज..


अरूपा का लुभाता रूप- छलना.
सखी संध्या पे मर जाता है सूरज..


भटककर सच समझ आता है आखिर.
निशा को चाह घर लाता है सूरज..


नहीं है 'सूर', नाता नहीं 'रज' से
कभी क्या मन भी बहलाता है सूरज?.


करे निष्काम निश-दिन काम अपना.
'सलिल' तब मान-यश पाता है सूरज..


*
सूरज - २


चमकता है या चमकाता है सूरज?
बहुत पूछा न बतलाता है सूरज..


तिमिर छिप रो रहा दीपक के नीचे.
कहे- 'तन्नक नहीं भाता है सूरज'..


सप्त अश्वों की वल्गाएँ सम्हाले
कभी क्या क्लांत हो जाता है सूरज?


समय-कुसमय सभी को भोगना है.
गहन में श्याम पड़ जाता है सूरज..


न थक-चुक, रुक रहा, ना हार माने,
डूब फिर-फिर निकल आता है सूरज..


लुटाता तेज ले चंदा चमकता.
नया जीवन 'सलिल' पाता है सूरज..


'सलिल'-भुजपाश में विश्राम पाता.
बिम्ब-प्रतिबिम्ब मुस्काता है सूरज..
*
सूरज - ३


शांत शिशु सा नजर आता है सूरज.
सुबह सचमुच बहुत भाता है सूरज..


भरे किलकारियाँ बचपन में जी भर.
मचलता, मान भी जाता है सूरज..


किशोरों सा लजाता-झेंपता है.
गुनगुना गीत शरमाता है सूरज..


युवा सपने न कह, खुद से छिपाता.
कुलाचें भरता, मस्ताता है सूरज..


प्रौढ़ बोझा उठाये गृहस्थी का.
देख मँहगाई डर जाता है सूरज..


चांदनी जवां बेटी के लिये वर
खोजता है, बुढ़ा जाता है सूरज..


न पलभर चैन पाता ज़िंदगी में.
'सलिल' गुमसुम ही मर जाता है सूरज..
२-७-२०११
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गीत:
प्रेम कविता...
*
प्रेम कविता कब कलम से
कभी कोई लिख सका है?
*
प्रेम कविता को लिखा जाता नहीं है.
प्रेम होता है किया जाता नहीं है..
जन्मते ही सुत जननि से प्रेम करता-
कहो क्या यह प्रेम का नाता नहीं है?.
कृष्ण ने जो यशोदा के साथ पाला
प्रेम की पोथी का उद्गाता वही है.
सिर्फ दैहिक मिलन को जो प्रेम कहते
प्रेममय गोपाल भी
क्या दिख सका है?
प्रेम कविता कब कलम से
कभी कोई लिख सका है?
*
प्रेम से हो क्षेम?, आवश्यक नहीं है.
प्रेम में हो त्याग, अंतिम सच यही है..
भगत ने, आजाद ने जो प्रेम पाला.
ज़िंदगी कुर्बान की, देकर उजाला.
कहो मीरां की करोगे याद क्या तुम
प्रेम में हो मस्त पीती गरल-प्याला.
और वह राधा सुमिरती श्याम को जो
प्रेम क्या उसका कभी
कुछ चुक सका है?
प्रेम कविता कब कलम से
कभी कोई लिख सका है?
*
अपर्णा के प्रेम को तुम जान पाये?
सिया के प्रिय-क्षेम को अनुमान पाये?
नर्मदा ने प्रेम-वश मेकल तजा था-
प्रेम कैकेयी का कुछ पहचान पाये?.
पद्मिनी ने प्रेम-हित जौहर वरा था.
शत्रुओं ने भी वहाँ थे सिर झुकाए.
प्रेम टूटी कलम का मोहताज क्यों हो?
प्रेम कब रोके किसी के
रुक सका है?
प्रेम कविता कब कलम से
कभी कोई लिख सका है?
२-७-२०१०
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