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रविवार, 24 जुलाई 2022

पुरोवाक छोटी सी ये दुनिया और सम्पत देवी जी के यायावरी कदम

पुरोवाक
छोटी सी ये दुनिया और सम्पत देवी जी के यायावरी कदम
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
बचपन में एक चित्रपटीय गीत सुना था, मन भय तो गुनगुनाता रहता था, गीत के बोल थे-

''छोटी सी ये दुनिया पहचाने रास्ते हैं
तुम कभी तो मिलोगे, कहीं तो मिलोगे,
हम पूछेंगे हाल।''

तब चलचित्रदेख तो नहीं सका क्योंकि बच्चों को अनुमति नहीं मिलती थी पर बाल मन की कल्पना में अपने बाल सखाओं के साथ दुनिया घूमता रहता। क्रमश: बड़ा होने के साथ पहले मोहल्ला फिर, शहर, जिला और प्रदेश, शादी विवाहों में अन्यत्र जाने का अवसर मिलता तो पिताजी के साथ अधिक से अधिक घूमने का प्रयास करता। प्राथमिक शाला में अग्रजा आशा जिज्जी और माध्यमिक शाला में गुरुवर सुरेश उपाध्याय से पुस्तक पठन की प्रेरणा मिली। शालेय स्पर्धाओं में 'शिवालिक की पहाड़ियों में' लेखक विद्यालंकार तथा 'एट मिडनाइट कम्स द किलर' लेखक ऑगस्टस समरविले प्राप्त हुईं, उन्हें पढ़कर पर्यटन और शिकार संबंधी साहित्य पढ़ने की उत्सुकता हुई किन्तु पुस्तकालयों में ऐसी पुस्तकें मिलती ही नहीं थीं। तब से अब तक लगभग ५ दशक बीत जाने के बाद भी स्थिति में बहुत परिवर्तन नहीं हुआ है। आज भी विश्ववाणी हिंदी के साहित्य में पर्यटन और संस्मरण संबंधी साहित्य का अभाव है।

हर्ष का विषय है कि संपत देवी मुरारका जी हिंदी वांग्मय से पर्यटन वृत्तांत संबंधी आभाव को यथाशक्ति दूर करने के लिए कृत संकल्पित हैं। उन्हें ह्रदय से साधुवाद। संपत देवी जी की 'यात्रा क्रम' (४ भाग) पढ़कर मुझे यह कहने में कोइ संकोच नहीं है कि उनके यायावरी कदमों के लिए वास्तव में दे दुनिया छोटी ही है। देश-विदेश की यात्राओं को जितनी रोचक भाषा-शैली में, जितने सूक्ष्म विवरणों, जितने बहु आयामी जानकारियों और जितने अधिक चित्रों के साथ संपत जी ने इन कृतियों में प्रस्तुत किया है उतना किसी अन्य लेखक ने नहीं किया है। संपत जी पर्यटन स्थलों की पौराणिक, ऐतिहासिक, पुरातत्विक, भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनैतिक पृष्ठ भूमि का यथास्थान यथेष्ट वर्णन करती चलती हैं, वह भी इतनी सरसता और सटीकता के साथ कि पाठक को यह प्रतीत हो कि वह स्वयं भ्रमण कर रहा है। 'सोने में सुहागा' यह कि लेखिका संपत अब कवयित्री संपर्क के रूप में अपने यात्रा संस्मरणों को काव्य के माध्यम से प्रस्तुत कर रहै है। ऐसा एक प्रयास कोलकाता निवासी श्रेष्ठ-ज्येष्ठ साहित्यकार प्रो. श्याम लाल उपाध्याय (अब स्वर्गीय) ने अपनी कृति भू दर्शन २०१६ में किया है किन्तु ऐसा लेखन अपवाद ही है। संपत जी ने व्यापकता के साथ पर्यटकीय काव्य लेखन कर हिंदी साहित्य को नया आयाम देकर उसे सम्पन्न बनाया है।

ऋषिकेश की यात्रा में लिखित काव्य पंक्तियों में कवयित्री पौराणिक संदर्भों का यथास्थान संकेत करती चलती है। तकनीकी जानकारियों को काव्य पंक्तियों में सहेजने का दुरूह कार्य करते समय वे शिल्प पर कथ्य को वरीयता देती हैं।

5 फिट ऊँची चतुर्भुज हृषिकेश की प्रतिमा, यहाँ अवस्थित है |
पूरी प्रतिमा एक ही, शालिग्राम शिला से निर्मितं है ||

तिरुपति औ बदरीनाथ की मूर्ति भी, एक शिला से बनी है |
भारतीय शिल्पकार स्वयं ही मूर्ति-कला का धनी है ||

125 टन का गुम्बद भी है, एक शिला से बना |
वास्तुकला की दृष्टि से, सोलह कोण का है बना ||

'उत्तर पूर्वी यात्रा गीत' में प्राकृतिक सुषमा से अभिभूत पर्यटक संपद जी पाठक को काव्य पंक्तियों द्वारा से नैसर्गिक दृश्य दिखा देती हैं-

दार्जिलिंग जा पहुँचे हम तो, करने सैर सपाटा |
छुक-छुक गाड़ी से उतरे हम, प्लेट फार्म को टाटा ||

प्रकृति-नटी की शान अनोखी, विस्तृत चाय-बागानों में |
दृश्य अलौकिक सूर्योदय का, ओस चमकती धानों में ||

अब जा पहुँचे टाइगर हिल हम, सूर्योदय का दृश्य देखने |
उषा की मुस्कान सुनहरी, अरुणोदय के पल लखने ||

दक्षिणेश्वर मंदिर कोलकाता की ख्याति परमहंस रामकृष्ण जी, सारदा माँ तथा स्वामी विवेकानंद के कारन सकल विश्व में है। लेखिका माँ काली की मूर्ति को निहारते हुए भावमग्न हो जाती है -

मंदिर क्या है वास्तुशिल्प का, सुन्दर एक नमूना है |

भागीरथी की अँगूठी में, जैसे जड़ा नगीना है ||

माँ की प्रतिमा दुष्ट जनों को, विकट रूप दर्शाती है |

लेकिन अपने भक्तों पर, शान्ति सुधा बरसाती है || 

*

देव प्रयाग का मुख्य मंदिर,  मंदिर है  रघुनाथ |

स्वर्ण  मंडित  शिखरवाला, भव्य और विशाल  ||

 

गर्भगृह में  सौम्य  राम की भव्य प्रतिमा साजे  |

श्रृंगार स्वर्णाभूषणयुत, भव्य मुकुट शीश विराजे  ||

*

25 जुलाई 2021, रविवार को भारत में एक प्राचीन मंदिर, तेलंगाना में स्थित काकतिय रुद्रेश्वर रामप्पा मंदिर को संयुक्त राष्ट्र की प्रतिष्ठित ‘विश्व धरोहर स्थल’ की सूची में सम्मिलित किए जाने के अवसर पर 'यूनेस्को, “विश्व धरोहर स्थल” की सूची में सम्मिलित तैरते पत्थरों से निर्मित, वरंगल, तेलंगाना का ‘रामप्पा मंदिर दक्कन के दुर्गम पठारों की यात्रा' का नेतृत्व करते हुए विश्व वात्सल्य मंच  की संस्थापक अध्यक्ष श्रीमती संपत देवी मुरारका ने अपनी सखियों एम.दीपिका,स्निग्धा योतिकरपद्मलता जड्डूसीता अग्रवालगीता अग्रवाल आदि के साथ स्थाक का भ्रमण मात्र नहीं किया अपितु स्थल की विशेषताओं को निरखा-परखा। यह संस्मरणात्मक आलेख अनेक बहुरंगी चित्रों से सुसज्जित है। पाठक वहाँ बिना गए ही स्थल की ऐतिहासिकता, भव्यता और रमणीयता का आनंद ले सकता है। 


साहित्यिक निबंधकार सम्पत जी 


'सुभद्रा कुमारी चौहान का व्यक्तित्व एवं कृतित्व' शीर्षक लेख में लेखिका संपाद जी का एक भिन्न पहलू उद्घाटित होता है।वे सुभद्रा जी के व्यक्तित्व-कृतित्व का सम्यक विश्लेषण करते समय प्रामाणिकता का ध्यान रखते हुए सुभद्रा जी द्वारा लिखित काव्य पंक्तियों को उद्धृत कर पाठकों को काव्यानंद-प्रसाद देकर ध्याता की अनुभूति कराती हैं। उक्त से सर्वथा भिन्न रूप में प्रेम चाँद पर लिखित आलेख में लेखिका विपुल प्रेमचंद-साहित्य की सूचि देकर पाठकों को बताती हैं कि वे प्रेमचंद का मूल्याङ्कन सतही न कर, उनके साहित्य का पठन गहराई से करें।  


अखिल भारतीय मारवाड़ी सम्मेलन के मुखपत्र के फरवरी 2014 अंक के आलेख में संपत जी के समीक्षक मन की जानकारी मिलती है। 'साहित्य समाज का दर्पण है' और 'लेखक तथा सामाजिक चुनौतियाँ' जैसे लेख सम्पत जी के समृद्ध चिंतन के झलक प्रस्तुत करते हैं।   


नया मीडिया’ और हिंदी के बढ़ते चरण' लेख में सम्पत जी द्वारा दी गयी तकनीकी जानकारी विस्मित करती है। वे लिखती हैं- इसमें शक नहीं कि अभी न्यू मीडिया” पारंपरिक मीडिया की तरह संगठित नहीं है | लेकिन इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसका हर उपयोगकर्ता स्वयं एक पत्रकार हैस्वयं संपादक हैस्वयं प्रकाशक है |  इसमें दी गई सूचना एक क्लिक में ही पुरे विश्व में पहुँच जाती है | न्यू मीडिया या सोशल मीडिया में यह बात आश्चर्यचकित करती है कि उससे जुड़े तरह तरह के लोग अपने मुद्दों को समाज के समक्ष असरदार रूप से रखते हैं | ये लोग अपने आप में एक असंगठित फौज की तरह हैं | वे स्वयं ही फौज के सैनिक हैं और स्वयं ही जनरल भी | जैसा कि नरेंद्र मोदी ने कहा हैअपने निजी स्वार्थ को दरकिनार कर किसी सामाजिक या राष्ट्रीय समस्या के निराकरण के लिए वेब पर इतना ज्यादा समय और ऊर्जा निरंतर देते रहना कोई मामूली बात नहीं | 

कवयित्री संपत देवी का काव्य लेखन 


कवयित्री संपत देवी का काव्य लेखन बहुरंगी और बहु आयामी है। वे दर्शनीय स्थानों पर त्वरित रचनाएँ करने के साथ-साथ बच्चों के लिए सरस बाल गीत रच कर पाठक को विस्मित करती हैं। उनके बाल गीत सहज बोधगम्य तथा बछ्कों द्वारा याद किए जा सकने वाले हैं एक झलक देखें- 


आओ हिल-मिल कर हम गायें,

अपने सपनों को दुलरायें |

चिड़ियाँ चीं-चीं बोल रही है,

बंद पंख अब खोल रही है ||

 

मन-उपवन में हुआ जागरण,

शांत-सुमीरण डोल रही है |

सोये हैं जो लोग अभी तक,

आओ पहले उन्हें जगायें ||


उत्सव प्रधान भारतीय संस्कृति में रच-बसी संपत जी आलोक पर्व दीपावली  पर रचित गीत में त्यौहार की पृष्भूमि, महत्व, पूजन विधि, तथा मौज-मस्ती का संकेत करना नहीं भूलतीं।  

लक्ष्मी गणपति पूजा आज |

विष्णु चक्र का जग पर राज ||

 

दीपावली का है बड़ा त्योंहार |

है घर सजे फूलों का हार ||


कवयित्री संपत जी के लव्य संसार में सात्विक श्रृंगार की मनोरम छवि है -

 

जगमग कर दो मेरा जीवन,

आनंदित हो जाए तन-मन|

जब-जब मैं अपने को देखूं,

तुम बन जाओ मेरे दर्पण||

 

तेरे कदमों की आहट पर,

मैं व्याकुल हूँ प्राण बिछाकर|

यह अपने सपनों का घर है,

तेरा-मेरा प्यार अमर है||  - दूर कहीं वंशी बजती है - गीत 


अपनी भावाभिव्यक्ति के लिए विविध प्राकृतिक उपादानों का प्रयोग करने में निपुण संपत जी फूलों के माध्यम से काँटों के बीच भी मुस्कुराते रहने का संदेश देती है -


चंपाचमेली मिलके हँसेकाँटों खिला गुलाब |
काँटों में भी मुस्काना सीखो, हँसते रहो जनाब ||

चरणों में तेरे चढ़ गएप्रभू चूमे तेरे कदम |
चंपा के फूल झूम उठेसफल हो गया जनम ||
*

नये वर्ष की नई कल्पना,

करनी है साकार हमें |

नये वर्ष में नव भारत को 

देना है आकार हमें ||

*

'कन्या भ्रूण हत्या' जैसे सामाजिक अभिशाप पर लिखी गई पंक्तियाँ मर्मस्पर्शी बन पड़ी हैं -

धरती माँ तुम क्यूँ न डोली, जब सबने मुँह मोड़ लिया |

इस जग में आने से पहले, निरपराध को काटा, खून किया ||

 

जब डोलेगी धरती माता, पर्वत भी गुम हो जाएगा |

जुल्म अगर ढाओगे तो, तुम्हारा अस्तित्व ही खो जाएगा | 

सार्ट: कवयित्री के रूप में सम्पद जी अपनी प्रांजल भावनाओं, समृद्ध शब्द भंडार, संतुलित -शैली, सटीक शब्द चयन तथा स्पष्ट कथ्य चयन के द्वारा अपने मनोभावों को स्पष्टता के साथ व्यक्त कर सकी हैं। 


स्व मूल्यांकन 


अपने लेखन पर विचार करते हुए संपत्ति जी  लिखती हैं- ''अपनी इन यात्राओं में मैंने राष्ट्रीय एकता और अखंडता का भी दिग्दर्शन किया है और अपनी महान संस्कृति के भी विविध रूपों का दर्शन किया है | अपने पूर्वजों के श्रद्धाभाव ने मुझे बहुत प्रभावित किया है, जिसके चलते धार्मिक संरचना के रूप में वास्तु-कला तथा अन्य बहुत सारी कलाओं का विकास हुआ है | इसके अलावा विभिन्न समाजों के बीच लोकाचार की विविधता ने मेरे मन को बहुत आकर्षित किया है | अपनी यात्राओं में मैंने बहुत सूक्ष्मता के साथ लोक मन में स्थापित परंपराओं का अध्ययन करने की कोशिश की है | इन सारी बातों से अलग मुझे प्रकृति के अनेकानेक रूपों में बिखरे सौन्दर्य के अवलोकन की लालसा हमेशा से उद्वेलित कराती रही है | प्रकृति के पल-पल बदलते दृश्य उसके पहाड़, नदियाँ और झरने और यहाँ तक कि घने जंगल और रेगिस्तान भी मुझे अपने सुषमा-सौन्दर्य से विमोहित करते रहे हैं |"


संपत जी अपनी सुरुचिमय, सांस्कृतिक, पारिवारिक पृष्ठभूमि के बावजूद सुख-सुविधा के स्थान पर सामान्यता का वरण कर विविध पर्यटक स्थलों पर जाकर खुद तो प्रकृति मन की गॉड में आनंदित होती ही हैं, लौटकर पर्यटन वृत्तांत लिखकर पाठकों को भी आनंदित करती हैं। उनकी शख्सियत को गुलज़ार की दो पंक्तियों द्वारा इस तरह बताया जा सकता है -


मुसाफिर हूँ यारों!, न घर है न ठिकाना 

मुझे चलते जाना है, बस चलते जाना

   

मुसाफिर समता देवी जी के कदमों को प्रभु निरंतर इतनी शक्ति दे वे धरती है नहीं अंतरिक्ष तक भी जा सकें और वहां के आकाशीय अनुभव हमारे साथ बाँट सकें। संपत जी के ये यात्रा वृत्तांत निश्चय ही लोकप्रिय होंगे। 

*** 



लेखक परिचय : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' विगत ५ दशकों से अधिक समय से हिंदी गद्य-पद्य तथा तकनीकी साहित्य को समृद्ध करने हेतु समर्पित हैं। आपकी १२ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  १२ राज्यों की विविध साहित्यिक यांत्रिकी संस्थाओं द्वारा ३०० से अधिक पुरस्कारों से सम्मानित किए जा चुके सलिल जी ने ३०० से अधिक नए छंदों का आविष्कार कर हिंदी छंद शास्त्र को समृद्ध किया है। आपके द्वारा लिखित सरस्वती वंदना 'हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी अब विमल मति दे' का दैनिक प्रार्थना के रूप में प्रति दिन लाखों बच्चे सरस्वती शिशु मंदिरों में गायन करते हैं। आप शताधिक पुस्तकों की भूमिका तथा ३०० से अधिक पुस्तकों की समीक्षा कर चुके हैं। 

 

संपर्क : सभापति विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१, चलभाष ९४२५१ ८३२४४, ईमेल : salil.sanjiv@gmail.com     






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