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गुरुवार, 14 जुलाई 2022

सॉनेट

सॉनेट 
जलसा घर
घर में जलसा घर घुस बैठा
साया ही हो गया पराया
मन को मोहे तन की माया
मानव में दानव है पैठा

पल में ऐंठे, पल में अकड़े
पल में माशा, पल में तोला
स्वार्थ साधने हो मिठबोला 
जाने कितने करता लफड़े

जल सा घर रिस-रिसकर गीला
हर नाता हो रहा पनीला
कसकर पकड़ा फिर भी ढीला

सीली माचिस जैसे रिश्ते
हारे चकमक पत्थर घिसते 
जलते ही झट चटपट बुझते
१४-७-२०२२, २०•२३
ए२/३ अमरकंटक एक्सप्रेस 
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सॉनेट 
मैं-तुम 
मैं-तुम, तू तू मैं मैं करते
जैसे हों संसद में नेता
मरुथल में छिप नौका खेता
इसकी टोपी उस सिर धरते

सहमत हुए असहमत होने
केर-बेर का संग सुहाए 
हर ढपली निज राग बजाए
मतभेदों की फसलें बोने

इससे लेकर उसको देना
आप चबाना चुप्प चबेना
जो बच जाए खुद धर लेना 

ठेंगा दिखा ठीक सब कहते
मुखपोथी पर नाते तहते
पानी पर पत्ते सम बहते
१४-७-२०२२, २०•४६
ए २/३ अमरकंटक एक्सप्रेस 
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सॉनेट 
बहाना
बिना बताए सबने ठाना
अपनी ढपली अपना राग
सावन में गाएँगे फाग
बना बनाकर नित्य बहाना

भूले नाते बना निभाना
घर-घर पलते-डँसते नाग
अपने ही देते हैं दाग
आँख मूँदकर साध निशाना

कौआ खुद को मान सयाना
सेता अंडा जो बेगाना
सीख न पाए मीठा गाना

रहे रात-दिन नाहक भाग
भूले धरना सिर पर पाग
सो औरों से कहते जाग
१४-७-२०२२, २१•२५
ए २/३ अमरकंटक एक्सप्रेस 
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