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रविवार, 2 फ़रवरी 2020

गंगा पर दोहे

गंगा पर दोहे
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गंगा को गंदा करें, वे हो जो हैं भक्त
आँखें रहते सूर हैं, ईश्वर करो अशक्त
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गंगा को दें भुला हम, हों जाएँ यदि दूर
निर्मल होगी आप ही, पायेगी नव नूर
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नगर न गंगा निकट हों, दोनों तट वट झाड़
चलो लगायें हम सभी, बाढ़ कमे पा बाड़
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तल गहरा तट उच्च हों, हरियाली भरपूर
पंछीगण कलरव करें, हो अशुद्धि हर दूर
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गंगा को चंगा करे, गतिमय सलिल प्रवाह
बाँध बना जल उठा कर, छोड़ें विपुल अथाह
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जोड़ नदी को नदी से, जल का करें प्रबंध
बाढ़ रुके, सूखा मिटे, वनमय हों तटबंध
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भले न पूजें कीजिए, मिल गंगा को साफ़
नहीं किया तो करेगी, हमें न गंगा माफ़
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जगह जगह हों फुहारें, मिले ओषजन खूब
जीव जलीय जियें तभी, जब तट पर हो दूब
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नीम बाँस रुद्राक्ष तरु, गंगा तट पर रोप
जल औषधिमय मिले पी, मिटे रोग का कोप
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मन मंदिर में पूजिये, तन घर में कर साफ़
नहा न मैली गंग हो, तब होगा इंसाफ
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गंगा जैसी हर नदी, जीवनदात्री मात
हों सपूत रख स्वच्छ हम, उज्जवल हो हर प्रात
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आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
विश्ववाणी हिंदी संस्थान
४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर
९४२५१८३२४४, salil.sanjiv@gmail.com

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