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सोमवार, 24 फ़रवरी 2020

बरनाली'- डाॅ. राजलक्ष्मी शिवहरे, डाॅ.छाया त्रिवेदी

  
दृढ संकल्प, विश्वास और शिक्षा की पर्याय 'बरनाली'- डाॅ.छाया त्रिवेदी
[बरनाली, उपन्यास, प्रथम संस्करण, २० से.मी. x १४ से.मी., आवरण बहुरंगी पेपरबैक, पृष्ठ १०८, मूल्य १००/-, निर्देशिका- डाॅ. राजलक्ष्मी शिवहरे, साहित्य संगम इंदौर]
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उपन्यास 'बरनाली' पाठक मन को अंत तक जिज्ञासु बनाये रखने में सक्षम है। २५ लेखिकाओं की अभिनव समन्वित प्रस्तुति ने आदर्श का ऊँचा मापदंड स्थापित किया है । असम्भव कुछ भी नहीं, दृढ़ निश्चय से संहावना एयर सफलता का द्वार खुलता है। मनोविज्ञान कहता है कि दिव्यांगजनों को ईश्वर विशिष्ट शक्ति प्रदान करता है। नायिका 'बरनाली' दिव्यांग होते हुये भी संघर्षो कर डाॅक्टर बन मानव सेवा में लीन हो जाती है। जन्म से विकलांग-दुर्बल बरनाली, सुख-दुख के सागर में थपेड़े खाती, डूबती-उतराती, अपनी जीवन नैया अपने संकल्प व् प्रयास के सहारे पार लगाती है। असम के सौंदर्य, भाषा, संस्कार आदि की संवाहिका बनी २५ लेखिकाएँ साधुवाद की पात्र हैं।
सेवानिवृत्त प्राचार्य, शिक्षा विभाग, सलाहकार हिंदी लेखिका संघ जबलपुर, चलभाष ९४७९६४४९०९
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अभिनव प्रयोग बरनाली - राजवीर सिंह, अध्यक्ष साहित्य संगम 
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पहले सोचता था कि उपन्यासकार इतनी लम्बी कथा कैसे लिखता होगा? डॉ. राजलक्ष्मी जी से मिलकर जान सका कि ऐसे मानवों में संवेदनाएं सामान्य से अधिक होती हैं।  एक बैठक में तो इतनी लंबी रचना की नहीं जा सकती। जब समय मिले तब लिखना और कथा की माँग से  तारतम्य बनाये रखते हुए लिखना, वस्तुत: विशेष योग्यता है।  राजलक्ष्मी जी द्वारा निर्देशित हुए २५ लेखिकाओं द्वारा लिखित उपन्यास बरनाली का लेखन वाकई कबीले-तारीफ है। 
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परगुणग्राही राजलक्ष्मी शिवहरे जी - सूचि संदीप "शुचिता" 
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राज लक्ष्मी जी में मुझे स्नेह और संवेदना से सराबोर बड़ी बहिन की छवि नज़र आती है। एक बार मैंने कहा कि मैं आप जैसी प्रसिद्ध साहित्यकार नहीं हूँ तो उनहोंने तुरंत कहा 'मैं आप की तरह गीताजी का मधुर गायन नहीं कर सकती।' दूसरों की खूबियों को पहचान कर उनकी सराहना करना, मनोबल बढ़ाना कोई उनसे सीखे। वे कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक अभिव्यक्त करने में माहिर हैं। उनकी आवाज़ में बच्चों की तरह निश्छलता, है।
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