कुल पेज दृश्य

रविवार, 2 फ़रवरी 2020

ॐ नर्मदाष्टकं

ॐ नर्मदाष्टकं : ३                  
श्री मैथिलेन्द्र झा रचित नर्मदाष्टक - हिन्दी काव्यानुवाद आचार्य संजीव 'सलिल'
*
भजन्तीं जनुं शैलजाकांतकायद्भवन्तीं बहिर्भूतले विन्ध्यशैलात.
वहन्तीं महीमण्डलेsगस्त्यशस्ते, जयंतीं श्रये शर्मदे नर्मदे! त्वां..१..

नदन्तीं प्ररिन्गत्तरंगा लिभंगेर्लसंतीं, शकुंतावलीमंजु खेलै.
वलंतीं मलं मत्स्यनक्रादिचक्रै:, जयंतीं श्रये: शर्मदे नर्मदे! त्वां..२..

हसंतीं लसत्फेंजालच्छलेन स्फुरंतीं, समृद्धिं नमो निर्झरिण्या:.
सृजंतीं जनानां सुखं स्वर्दुरापं, जयंतीं श्रये: शर्मदे नर्मदे! त्वां..३..

विशंतीं गिरीणां गुहाकुञ्जपुंजे मिलंतीमनेकापगाभिः प्रसन्नां.
सरंतीं समंतात्सरस्वंतमन्ते, जयंतीं श्रये: शर्मदे नर्मदे! त्वां..४..

हरंतीं नरा णां संख्यातजातै: श्वयंतीं महाकिल्विपात्रिं निमेषात.
द्रवंतीमिवैतद्धराभाग्यधारां, जयंतीं श्रये: शर्मदे नर्मदे! त्वां..५..

नयंतीमजस्रं जनानां सहस्रं ज्वलंतीं दिवं दर्शनस्नानपानै:.
दिशंतीमिवाभीतिघोषंतरंगै:, जयंतीं श्रये: शर्मदे नर्मदे! त्वां..६..

पिवंतीं सुधाहारि वारित्वदीयं, वदंतीं च रक्षेंदुकन्ये सुधन्ये.
अजंतीं नरालीं जगद्व्यालभीत, जयंतीं श्रये: शर्मदे नर्मदे! त्वां..७..

भणंतीमपि त्वद्गुणानल्पशक्तै:, व्रजंतीं त्रपामंब! वाचं रुणाघ्मि.
रटंतीं परं मातरेनां समीहे, जयंतीं श्रये: शर्मदे नर्मदे! त्वां..८..

भुजंगंप्रयाताष्ट्कं नर्मदायाः, कृतं मैथिलेनेंद्रनाथेन भक्तया.
हृदा भक्ति भाजांजसा गीयमानं, परां निर्वृत्तिं भावुकानां तनोति..९..

******************************************************
श्री मैथिलेन्द्र झा रचित नर्मदाष्टक  हिंदी काव्यानुवाद संजीव 'सलिल'

भजूँ शैलजाकांतजाया पुनीता, लिया जन्म गिरि-विंध्य-पावन धरा से.
बही हो अगस्त्य साधनास्थली पर, विजय-सुख प्रदाता नमन माँ नर्मदे!.१.

किलोलित तरंगें करें शब्द सुखकर, पखेरू समूहों सुशोभित हुए तट.
करें दूर मल मक्र-मछली निरंतर, विजय-सुख प्रदाता नमन माँ नर्मदे!.२.

हँसी हो लगा फेन के व्याज से तुम, नमन निर्झरों को जो देते समृद्धि.
मिले सुख सभी जो न अब तक मिले थे, विजय-सुख प्रदाता नमन माँ नर्मदे!.३.

गव्हरों-गुफाओं प्रवेशित हुईं हँस, सरित्धार सुंदर गले से लगीं शत.
बढ़ीं अंत में सिंधु से जा मिलीं तुम, विजय-सुख प्रदाता नमन माँ नर्मदे!.४.

असंख्यों जनों के हरे पाप सारे, किये दूर संकट पलों में निवारे.
धरा-भाग्य-धारा दया हो तुम्हारी, विजय-सुख प्रदाता नमन माँ नर्मदे!.५.

सहस्त्रों जनों को लगाया किनारे, तरे दर्शनों से, नहा, पान जल कर.
हरें भीति जय घोष करती तरंगें, विजय-सुख प्रदाता नमन माँ नर्मदे!.६.

सुधा-श्रेष्ठ जल पी करे प्रार्थना जो, बचाओ, मुझे सोमतनये बचाओ.
उसे मुक्त भय से किया दे सुरक्षा, विजय-सुख प्रदाता नमन माँ नर्मदे!.७.

करूँ गान महिमा, न सामर्थ्य मेरी, बचा लाज मेरी न कर मात देरी.
कलकल निनादिनी मुझ पर कृपाकर, विजय-सुख प्रदाता नमन माँ नर्मदे!.८.

भुजंगप्रयाताष्टक नर्मदा का, मिथिलेंद्र झा ने रचा भक्तिपूर्वक.
कृपा मातु तेरी 'सलिल' पर सदा हो, तरा जिसने गया नमन माँ नर्मदे.९.

                     .. ॐ श्री नर्मदाष्टक संपूर्ण ..
छंद: भुजंगप्रयात, दो पद (पंक्ति) २४ मात्रा, चार चरण प्रत्येक ६ मात्रा,
लघु गुरु गुरु लघु. चित्र: धुआंधार जलप्रपात, भेड़ाघाट जबलपुर. 
आभार: गूगल.
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

कोई टिप्पणी नहीं: