दोहा सलिला
संजीव सलिल
०
ठिठुर रहा था तुम मिलीं, जीवन हुआ बसंत.
दूर हुईं पतझड़ हुआ, हेरूँ हर पल कन्त..
०
तुम मैके मैं सासरे, हों तो हो आनंद.
मैं मैके तुम सासरे, हों तो गाएँ छन्द.
०
तू-तू मैं-मैं तभी तक, जब तक हों मन दूर.
तू-मैं ज्यों ही हम हुए, साँस हुई संतूर..
*
दो हाथों में हाथ या, लो हाथों में हाथ.
अधरों पर मुस्कान हो, तभी सार्थक साथ..
*
नयन मिला छवि बंदकर, मून्दे नयना-द्वार.
जयी चार, दो रह गये, नयना खुद को हार..
५.४.२०१३
*
संजीव सलिल
०
ठिठुर रहा था तुम मिलीं, जीवन हुआ बसंत.
दूर हुईं पतझड़ हुआ, हेरूँ हर पल कन्त..
०
तुम मैके मैं सासरे, हों तो हो आनंद.
मैं मैके तुम सासरे, हों तो गाएँ छन्द.
०
तू-तू मैं-मैं तभी तक, जब तक हों मन दूर.
तू-मैं ज्यों ही हम हुए, साँस हुई संतूर..
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दो हाथों में हाथ या, लो हाथों में हाथ.
अधरों पर मुस्कान हो, तभी सार्थक साथ..
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नयन मिला छवि बंदकर, मून्दे नयना-द्वार.
जयी चार, दो रह गये, नयना खुद को हार..
५.४.२०१३
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