मिली भगत’ आज से आपके लिए उपल्बध् है
मिली भगत
हास्य व्यंग्य का वैश्विक संकलन
संपादक - विवेक रंजन श्रीवास्तव
मूल्यः 400 रू हार्ड बाउंड संस्करण , पृष्ठ संख्या 256
प्रकाशक: रवीना प्रकाशन, दिल्ली-110094
फोन- 8700774571,9205127294
क्या है मिली भगत------
विसंगतियो पर व्यंग्य के प्रहार से समाज को सही राह पर चलाये रखने के लिये शब्दो के जरिये वर्षो से किये जा रहे प्रयास की एक सुस्थापित विधा है “व्यंग्य“ . पिछली अर्धशती में हास्य और व्यंग एक नयी साहित्यिक विधा के रूप में स्थापित हुआ है .यद्यपि व्यंग्य अभिव्यक्ति की शाश्वत विधा है , संस्कृत में भी व्यंग्य मिलता है , प्राचीन कवियो में कबीर की प्रायः रचनाओ में व्यंग्य है , पर उनका यह कटाक्ष किसी का मजाक उड़ाने या उपहास करने के लिए नहीं, बल्कि उसे सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने के लिए ही होता है . कबीर का व्यंग्य करुणा से उपजा है, अक्खड़ता तो केवल उसकी ढाल है. हास्य और व्यंग्य में एक सूक्ष्म अंतर है , जहां हास्य लोगो को गुदगुदाकर छोड़ देता है वहीं व्यंग्य हमें सोचने पर विवश करता है . व्यंग्य के कटाक्ष हमें तिलमिलाकर रख देते हैं . व्यंग्य लेखक के , संवेदनशील और करुण हृदय के असंतोष की प्रतिक्रिया के रूप में उत्पन्न होता है . शायद व्यंग्य , उन्ही तानो और कटाक्ष का साहित्यिक रचना स्वरूप है , जिसके प्रयोग से सदियो से सासें नई बहू को अपने घर परिवार के संस्कार और नियम कायदे सिखाती आई हैं और नई नवेली बहू को अपने परिवार में स्थाई रूप से घुलमिल जाने के हित चिंतन के लिये तात्कालिक रूप से बहू की नजरो में स्वयं बुरी कहलाने के लिये भी तैयार रहती हैं . कालेज में होने वाले सकारात्मक मिलन समारोह जिनमें नये छात्रो का पुराने छात्रो द्वारा परिचय लिया जाता है , भी कुछ कुछ व्यंग्य , छींटाकशी , हास्य के पुट से जन्मी मिली जुली भावना से नये छात्रो की झिझक मिटाने की परिपाटी रही है और जिसका विकृत रूप अब रेगिंग बन गया है .
बात उन दिनो की है जब मैं किशोरावस्था में था , हम मण्डला में रहते थे . घर पर कई सारे अखबार और पत्रिकायें खरीदी जाती थी . साप्ताहिक हिंदुस्तान , धर्मयुग , सारिका , नंदन आदि पढ़ना मेरा शौक बन चुका था . नवीन दुनिया अखबार के संपादकीय पृष्ठ का एक कालम सुनो भाई साधो और नवभारत टाइम्स का स्तंभ प्रतिदिन मैं रोज बड़े चाव से पढ़ता था . पहला परसाई जी का और दूसरा शरद जी का कालम था . छात्र जीवन में जब मैं इस तरह का साहित्य पढ़ रहा था और इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर का नाट्यरूपांतरण देख रहा था शायद तभी मेरे भीतर अवचेतन में एक व्यंगकार का भ्रूण आकार ले रहा था . बाद में संभवतः इसी प्रेरणा से मैने डा देवेन्द्र वर्मा जो मण्डला में पदस्थ एक अच्छे व्यंगकार थे व वहां संयुक्त कलेक्टर भी रहे , के व्यंग संग्रह का नाम “जीप पर सवार सुख“ रखा जो स्कूल के दिनो में पढ़ी शरद जोशी की जीप पर सवार इल्लियां से अभिप्रेरित रहा होगा . मण्डला से छपने वाले साप्ताहिक समाचार पत्र मेकलवाणी में मैने “ दूरंदेशी चश्मा “ नाम से एक व्यंग्य कालम भी कई अंको में निरंतर लिखा . फिर मेरी किताबें रामभरोसे , कौआ कान ले गया तथा मेरे प्रिय व्यंग लेख व धन्नो बसंती और बसंत , पुस्तकें छपीं व पुरस्कृत हुईं . मैने कई पत्रिकाओ के संपादन का काम किया है , ब्लागर्स पार्क , विद्युत सेवा , ब्रम्होति ,रेवा तरंग, चित्रांश चर्चा उनमें से कुछ हैं . शक्ति संदेश , इंस्टीट्यूशन आफ इंजीनियर्स की पत्रिका आदि के संपादन मण्डल में लगातार हूं . राष्ट्रीय हिन्दी मेल के साहित्य पृष्ठ के संपादन की जबाबदारी भी अवैतनिक रूप में उठाता रहा हूं , इसी क्रम में विचार प्रकाशन की इस व्यंग्य संग्रह प्रकाशन योजना से जुड़ना मेरे लिये गौरव की बात है .
प्रायः अनेक समसामयिक विषयो पर लिखे गये व्यंग्य लेख अल्प जीवी होते हैं , क्योकि किसी घटना पर त्वरित प्रतिक्रिया के रूप में लिखा गया व्यंग्य ,अखबार में फटाफट छपता है , पाठक को प्रभावित करता है , गुदगुदाता है , थोड़ा हंसाता है , कुछ सोचने पर विवश करता है , जिस पर व्यंग्य किया जाता है वह थोड़ा कसमसाता है पर अपने बचाव के लिये वह कोई अच्छा सा बहाना या किसी भारी भरकम शब्द का घूंघट गढ़ ही लेता है , जैसे आत्मा की आवाज से किया गया कार्य या व्यापक जन कल्याण में लिया गया निर्णय . अखबार के साथ ही व्यंग्य भी रद्दी में बदल जाता है . उस पर पुरानेपन की छाप लग जाती है . किन्तु पुस्तक के रूप में व्यंग्य संग्रह के लिये अनिवार्यता यह होती है कि विषय ऐसे हों जिनका महत्व शाश्वत न भी हो तो अपेक्षाकृत दीर्घकालिक हो . मिली भगत ऐसे ही विषयो पर दुनिया भर से अनेक व्यंग्यकारो की करिश्माई कलम का कमाल है .
नये लेखक , युवा लेखक , बुजुर्ग लेखक , बहु प्रकाशित रचनाकार , अनेकानेक विधाओ के पारंगत लेखक , सुस्थापित व्यंग्यकार , वे जिनकी अनेक किताबें छप चुकी हैं तथा वे भी जिन्होने स्वयं अनेक संपादन किये हैं, स्त्री लेखिकायें, पुरुष लेखक , देश के लेखक , विदेशो से लेखक ,इंजीनियर , डाक्टर ,आस्ट्रेलिया , केनेडा , अबूधाबी से लेकर बिहार और मध्यप्रदेश के आंचलिक व्यंग्यकार भी इस मिली भगत में शामिल हैं, इसलिये विषयवस्तु , भाव भाषा में विविध आयाम हैं , अनेकता में एकता की यह मिली भगत मेरे लिये संतोष व गर्व का विषय है . प्राप्त रचनायें अलग अलग फांट में व अलग अलग तरीके से भेजी गई मिलीं थी , प्रयत्नपूर्वक सबको मिलाकर मिली भगत बनाना , दुष्कर काम था फिर भी यत्न किया है , व्यंग्यकार संपादक ठस्से से कह सकता है कि जो गलतियां हुई हो वे मेरी नही तकनीक की मानी जावें . व्यंग्य बड़ी मारक विधा है , जाने कब किसको कौन सा शब्द चुभ जावे , अतः वैधानिक डिस्क्लेमर यह है कि रचना के गुण धर्म कंटेंट के लिये रचनाकार स्वयं जिम्मेदार है , संपादक या प्रकाशक का लेना देना केवल वाहवाही लूटने तक ही है . बढ़िया बढ़िया गप , कड़वा कड़वा थू , यही तो आज समाज में प्रचलन में है . यदि मिली भगत आपके आपाधापी भरे , घड़ी की सुई के साथ घूमते जीवन में पल भर के लिये आपको सुकून का अहसास दे सके , आपके तनाव भरे चेहरे पर किंचित मुस्कान ले आये , पढ़ते हुये कही आपको लगे कि अरे यह तो मेरा देखा हुआ , भोगा हुआ यथार्थ ही है जिसे व्यंग्यकार ने अभिव्यक्ति दे दी है , तो हमारा प्रयत्न सफल . प्रकाशक जी को धन्यवाद और सभी व्यंग्यकारो को साधुवाद . पाठको से प्रतिक्रिया की अपेक्षा है, वही हम व्यंग्यकारो की वास्तविक उपलब्धि होगी .
विवेक रंजन श्रीवास्तव
संपादक
अनुक्रमणिका
१ अभिमन्यु जैन
१ बारात के बहाने
२ अभिनंदन
२ अनिल अयान श्रीवास्तव
१ देश भक्ति का सीजन
२ खुदे शहरों में “खुदा“ को याद करें
३ अलंकार रस्तोगी
१ साहित्य उत्त्थान का शर्तिया इलाज
२ एक मुठभेड़ विसंगति से
४ अरुण अर्णव खरे
१ बच्चों की गलती थानेदार और जीवन राम
२ बुजुर्ग वेलेंटाईन
५ इंजी अवधेश कुमार ’अवध’
१ पप्पू - गप्पू वर्सेस संता - बंता
२ सफाई अभिनय
६ .डॉ अमृता शुक्ला
१ कार की वापसी
२ बिन पानी सब सून
.७. बसंत कुमार शर्मा
१ वजन नही है
२ नालियाँ
८. ब्रजेश कानूनगो
१ उपन्यास लिख रहे हैं वे
२ वैकल्पिक व्यवस्था
९. छाया सक्सेना ’ प्रभु ’
१ फ्री में एवलेबल रहते हैं पर फ्री नहीं रहते
२ ध्यानचंद्र बनाम ज्ञानचंद्र
१०. धर्मपाल महेंद्र जैन
१ एक तरफा ही सही
२ गड्ढ़े गड्ढ़े का नाम
११. जय प्रकाश पाण्डे
१ नाम गुम जाएगा
२ उल्लू की उलाहना
१२. किशोर श्रीवास्तव
१ सावधान, यह दुर्घटना प्रभावित क्षेत्र है
२ घटे वही जो राशिफल बताये
१३. कृष्णकुमार ‘आशु
१ पुलिसिया मातृभाषा
२ फलित होना एक ‘श्राप’ का
१४. मंजरी शुक्ला
१ जब पडोसी को सिलेंडर दिया
२ बिना मेक अप वाली सेल्फी
१५. मनोज श्रीवास्तव
१ अथ श्री गधा पुराण
२ यमलोक
१६. महेश बारमाटे “माही“
१ बेलन, बीवी और दर्द
२ सब्जी क्या बने एक राष्ट्रीय समस्या
१७. ओम वर्मा
१ अनिवार्य मतदान के अचूक नुस्ख़े ।
२ ‘दो टूक’
१८. ओमवीर कर्ण
१ प्रेम कहानी के बहाने
२ पालिटीशियन और पब्लिक
१९. डाॅ. प्रदीप उपाध्याय
१ ढ़ाढ़ी और अलमाइजर का रिश्ता
२ उनको रोकने से क्या हासिल
२० .रमाकान्त ताम्रकार
१ दो रुपैया दो भैया जी
२ जरा खिसकना
२१. रमेश सैनी
१ ए.टी.एम. में प्रेम
२ बैगन का भर्ता
२२. राजशेखर भट्ट
१ निराधार आधार
२ वेलेंटाईन-डे की हार्दिक शुभकामनायें
२३ . राजशेखर चैबे
१ ज्योतिष की कुंजी
२ डागी फिटनेस ट्रेकर
२४. राजेश सेन
१ डार्विन, विकास-क्रम और हम
२ बतकही के शोले और ग्लोबल-वार्मिंग
२५. समीक्षा तैलंग
१ विदेश वही जो अफसर मन भावे
२ धुंआधार धुंआ पटाखा या पैसा
२६.संतराम पाण्डेय
१ लेने को थैली भली
२ बिना जुगाड़ ना उद्धार
२७. संजीव सलिल
१ हाय! हम न रूबी राय हुए
२ दही हांडी की मटकी और सर्वोच्च न्यायालय
२८. इंजी संजय अग्निहोत्री
१ यथार्थ परक साहित्य
२ अदभुत लेखक
२९. संजीव निगम
१ लौट के उद्धव मथुरा आये
२ शिक्षा बिक्री केन्द्र
३०. समीर लाल उड़नतश्तरी
१ किताब का मेला या मेले की किताब
२ रिंग टोनः खोलती है राज आपके व्यक्तित्व का
३१. शशांक मिश्र भारती
१ पूंछ की सिधाई
२ अथ नेता चरित्रम्
३२. प्रो.शरद नारायण खरे
१ ख़ुदा करे आपका पड़ोसी दुखी रहे
२ छोड़ें नेतागिरी
३३. शशिकांत सिंह ’शशि’
१ गैंडाराज
२ सुअर पुराण
३४. शिखर चंद जैन
१ आलराउंडर मंत्री
२ मुलाकात पार्षद से
३५. सुधीर ओखदे
१ विमला की शादी
२ गणतंत्र सिसक रहा है
३६. विक्रम आदित्य सिंह
१ देश के बाबा
२ ताजा खबर
३७. विनोद साव
१ दूध का हिसाब
३८. विनोद कुमार विक्की
१ पत्नी, पाकिस्तान और पेट्रोल
२ व्यथित लेखक उत्साहित संपाद
39. विजयानंद विजय
१ आइए, देश देश खेलते हैं
२ हम तो बंदर ही भले है
40. विवेक रंजन श्रीवास्त
१ सीबीआई का सीबीआई के द्वारा सीबीआई के लिये
२ आम से खास बनने की पहचान थी लाल बत्ती
41. अमन चक्र
१ कुत्ता
2 मस्तराम
42. रमेश मनोहरा
१ उल्लुओ का चिंतन
43. दिलीप मेहरा
१ कलयुग के भगवान
२ विदाई समारोह और शंकर की उलझन
प्रकाशक
रवीना प्रकाशन, दिल्ली-110094
9205127294, 9700774571
— Vivek Ranjan Shrivastava के साथ.
मिली भगत
हास्य व्यंग्य का वैश्विक संकलन
संपादक - विवेक रंजन श्रीवास्तव
मूल्यः 400 रू हार्ड बाउंड संस्करण , पृष्ठ संख्या 256
प्रकाशक: रवीना प्रकाशन, दिल्ली-110094
फोन- 8700774571,9205127294
क्या है मिली भगत------
विसंगतियो पर व्यंग्य के प्रहार से समाज को सही राह पर चलाये रखने के लिये शब्दो के जरिये वर्षो से किये जा रहे प्रयास की एक सुस्थापित विधा है “व्यंग्य“ . पिछली अर्धशती में हास्य और व्यंग एक नयी साहित्यिक विधा के रूप में स्थापित हुआ है .यद्यपि व्यंग्य अभिव्यक्ति की शाश्वत विधा है , संस्कृत में भी व्यंग्य मिलता है , प्राचीन कवियो में कबीर की प्रायः रचनाओ में व्यंग्य है , पर उनका यह कटाक्ष किसी का मजाक उड़ाने या उपहास करने के लिए नहीं, बल्कि उसे सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने के लिए ही होता है . कबीर का व्यंग्य करुणा से उपजा है, अक्खड़ता तो केवल उसकी ढाल है. हास्य और व्यंग्य में एक सूक्ष्म अंतर है , जहां हास्य लोगो को गुदगुदाकर छोड़ देता है वहीं व्यंग्य हमें सोचने पर विवश करता है . व्यंग्य के कटाक्ष हमें तिलमिलाकर रख देते हैं . व्यंग्य लेखक के , संवेदनशील और करुण हृदय के असंतोष की प्रतिक्रिया के रूप में उत्पन्न होता है . शायद व्यंग्य , उन्ही तानो और कटाक्ष का साहित्यिक रचना स्वरूप है , जिसके प्रयोग से सदियो से सासें नई बहू को अपने घर परिवार के संस्कार और नियम कायदे सिखाती आई हैं और नई नवेली बहू को अपने परिवार में स्थाई रूप से घुलमिल जाने के हित चिंतन के लिये तात्कालिक रूप से बहू की नजरो में स्वयं बुरी कहलाने के लिये भी तैयार रहती हैं . कालेज में होने वाले सकारात्मक मिलन समारोह जिनमें नये छात्रो का पुराने छात्रो द्वारा परिचय लिया जाता है , भी कुछ कुछ व्यंग्य , छींटाकशी , हास्य के पुट से जन्मी मिली जुली भावना से नये छात्रो की झिझक मिटाने की परिपाटी रही है और जिसका विकृत रूप अब रेगिंग बन गया है .
बात उन दिनो की है जब मैं किशोरावस्था में था , हम मण्डला में रहते थे . घर पर कई सारे अखबार और पत्रिकायें खरीदी जाती थी . साप्ताहिक हिंदुस्तान , धर्मयुग , सारिका , नंदन आदि पढ़ना मेरा शौक बन चुका था . नवीन दुनिया अखबार के संपादकीय पृष्ठ का एक कालम सुनो भाई साधो और नवभारत टाइम्स का स्तंभ प्रतिदिन मैं रोज बड़े चाव से पढ़ता था . पहला परसाई जी का और दूसरा शरद जी का कालम था . छात्र जीवन में जब मैं इस तरह का साहित्य पढ़ रहा था और इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर का नाट्यरूपांतरण देख रहा था शायद तभी मेरे भीतर अवचेतन में एक व्यंगकार का भ्रूण आकार ले रहा था . बाद में संभवतः इसी प्रेरणा से मैने डा देवेन्द्र वर्मा जो मण्डला में पदस्थ एक अच्छे व्यंगकार थे व वहां संयुक्त कलेक्टर भी रहे , के व्यंग संग्रह का नाम “जीप पर सवार सुख“ रखा जो स्कूल के दिनो में पढ़ी शरद जोशी की जीप पर सवार इल्लियां से अभिप्रेरित रहा होगा . मण्डला से छपने वाले साप्ताहिक समाचार पत्र मेकलवाणी में मैने “ दूरंदेशी चश्मा “ नाम से एक व्यंग्य कालम भी कई अंको में निरंतर लिखा . फिर मेरी किताबें रामभरोसे , कौआ कान ले गया तथा मेरे प्रिय व्यंग लेख व धन्नो बसंती और बसंत , पुस्तकें छपीं व पुरस्कृत हुईं . मैने कई पत्रिकाओ के संपादन का काम किया है , ब्लागर्स पार्क , विद्युत सेवा , ब्रम्होति ,रेवा तरंग, चित्रांश चर्चा उनमें से कुछ हैं . शक्ति संदेश , इंस्टीट्यूशन आफ इंजीनियर्स की पत्रिका आदि के संपादन मण्डल में लगातार हूं . राष्ट्रीय हिन्दी मेल के साहित्य पृष्ठ के संपादन की जबाबदारी भी अवैतनिक रूप में उठाता रहा हूं , इसी क्रम में विचार प्रकाशन की इस व्यंग्य संग्रह प्रकाशन योजना से जुड़ना मेरे लिये गौरव की बात है .
प्रायः अनेक समसामयिक विषयो पर लिखे गये व्यंग्य लेख अल्प जीवी होते हैं , क्योकि किसी घटना पर त्वरित प्रतिक्रिया के रूप में लिखा गया व्यंग्य ,अखबार में फटाफट छपता है , पाठक को प्रभावित करता है , गुदगुदाता है , थोड़ा हंसाता है , कुछ सोचने पर विवश करता है , जिस पर व्यंग्य किया जाता है वह थोड़ा कसमसाता है पर अपने बचाव के लिये वह कोई अच्छा सा बहाना या किसी भारी भरकम शब्द का घूंघट गढ़ ही लेता है , जैसे आत्मा की आवाज से किया गया कार्य या व्यापक जन कल्याण में लिया गया निर्णय . अखबार के साथ ही व्यंग्य भी रद्दी में बदल जाता है . उस पर पुरानेपन की छाप लग जाती है . किन्तु पुस्तक के रूप में व्यंग्य संग्रह के लिये अनिवार्यता यह होती है कि विषय ऐसे हों जिनका महत्व शाश्वत न भी हो तो अपेक्षाकृत दीर्घकालिक हो . मिली भगत ऐसे ही विषयो पर दुनिया भर से अनेक व्यंग्यकारो की करिश्माई कलम का कमाल है .
नये लेखक , युवा लेखक , बुजुर्ग लेखक , बहु प्रकाशित रचनाकार , अनेकानेक विधाओ के पारंगत लेखक , सुस्थापित व्यंग्यकार , वे जिनकी अनेक किताबें छप चुकी हैं तथा वे भी जिन्होने स्वयं अनेक संपादन किये हैं, स्त्री लेखिकायें, पुरुष लेखक , देश के लेखक , विदेशो से लेखक ,इंजीनियर , डाक्टर ,आस्ट्रेलिया , केनेडा , अबूधाबी से लेकर बिहार और मध्यप्रदेश के आंचलिक व्यंग्यकार भी इस मिली भगत में शामिल हैं, इसलिये विषयवस्तु , भाव भाषा में विविध आयाम हैं , अनेकता में एकता की यह मिली भगत मेरे लिये संतोष व गर्व का विषय है . प्राप्त रचनायें अलग अलग फांट में व अलग अलग तरीके से भेजी गई मिलीं थी , प्रयत्नपूर्वक सबको मिलाकर मिली भगत बनाना , दुष्कर काम था फिर भी यत्न किया है , व्यंग्यकार संपादक ठस्से से कह सकता है कि जो गलतियां हुई हो वे मेरी नही तकनीक की मानी जावें . व्यंग्य बड़ी मारक विधा है , जाने कब किसको कौन सा शब्द चुभ जावे , अतः वैधानिक डिस्क्लेमर यह है कि रचना के गुण धर्म कंटेंट के लिये रचनाकार स्वयं जिम्मेदार है , संपादक या प्रकाशक का लेना देना केवल वाहवाही लूटने तक ही है . बढ़िया बढ़िया गप , कड़वा कड़वा थू , यही तो आज समाज में प्रचलन में है . यदि मिली भगत आपके आपाधापी भरे , घड़ी की सुई के साथ घूमते जीवन में पल भर के लिये आपको सुकून का अहसास दे सके , आपके तनाव भरे चेहरे पर किंचित मुस्कान ले आये , पढ़ते हुये कही आपको लगे कि अरे यह तो मेरा देखा हुआ , भोगा हुआ यथार्थ ही है जिसे व्यंग्यकार ने अभिव्यक्ति दे दी है , तो हमारा प्रयत्न सफल . प्रकाशक जी को धन्यवाद और सभी व्यंग्यकारो को साधुवाद . पाठको से प्रतिक्रिया की अपेक्षा है, वही हम व्यंग्यकारो की वास्तविक उपलब्धि होगी .
विवेक रंजन श्रीवास्तव
संपादक
अनुक्रमणिका
१ अभिमन्यु जैन
१ बारात के बहाने
२ अभिनंदन
२ अनिल अयान श्रीवास्तव
१ देश भक्ति का सीजन
२ खुदे शहरों में “खुदा“ को याद करें
३ अलंकार रस्तोगी
१ साहित्य उत्त्थान का शर्तिया इलाज
२ एक मुठभेड़ विसंगति से
४ अरुण अर्णव खरे
१ बच्चों की गलती थानेदार और जीवन राम
२ बुजुर्ग वेलेंटाईन
५ इंजी अवधेश कुमार ’अवध’
१ पप्पू - गप्पू वर्सेस संता - बंता
२ सफाई अभिनय
६ .डॉ अमृता शुक्ला
१ कार की वापसी
२ बिन पानी सब सून
.७. बसंत कुमार शर्मा
१ वजन नही है
२ नालियाँ
८. ब्रजेश कानूनगो
१ उपन्यास लिख रहे हैं वे
२ वैकल्पिक व्यवस्था
९. छाया सक्सेना ’ प्रभु ’
१ फ्री में एवलेबल रहते हैं पर फ्री नहीं रहते
२ ध्यानचंद्र बनाम ज्ञानचंद्र
१०. धर्मपाल महेंद्र जैन
१ एक तरफा ही सही
२ गड्ढ़े गड्ढ़े का नाम
११. जय प्रकाश पाण्डे
१ नाम गुम जाएगा
२ उल्लू की उलाहना
१२. किशोर श्रीवास्तव
१ सावधान, यह दुर्घटना प्रभावित क्षेत्र है
२ घटे वही जो राशिफल बताये
१३. कृष्णकुमार ‘आशु
१ पुलिसिया मातृभाषा
२ फलित होना एक ‘श्राप’ का
१४. मंजरी शुक्ला
१ जब पडोसी को सिलेंडर दिया
२ बिना मेक अप वाली सेल्फी
१५. मनोज श्रीवास्तव
१ अथ श्री गधा पुराण
२ यमलोक
१६. महेश बारमाटे “माही“
१ बेलन, बीवी और दर्द
२ सब्जी क्या बने एक राष्ट्रीय समस्या
१७. ओम वर्मा
१ अनिवार्य मतदान के अचूक नुस्ख़े ।
२ ‘दो टूक’
१८. ओमवीर कर्ण
१ प्रेम कहानी के बहाने
२ पालिटीशियन और पब्लिक
१९. डाॅ. प्रदीप उपाध्याय
१ ढ़ाढ़ी और अलमाइजर का रिश्ता
२ उनको रोकने से क्या हासिल
२० .रमाकान्त ताम्रकार
१ दो रुपैया दो भैया जी
२ जरा खिसकना
२१. रमेश सैनी
१ ए.टी.एम. में प्रेम
२ बैगन का भर्ता
२२. राजशेखर भट्ट
१ निराधार आधार
२ वेलेंटाईन-डे की हार्दिक शुभकामनायें
२३ . राजशेखर चैबे
१ ज्योतिष की कुंजी
२ डागी फिटनेस ट्रेकर
२४. राजेश सेन
१ डार्विन, विकास-क्रम और हम
२ बतकही के शोले और ग्लोबल-वार्मिंग
२५. समीक्षा तैलंग
१ विदेश वही जो अफसर मन भावे
२ धुंआधार धुंआ पटाखा या पैसा
२६.संतराम पाण्डेय
१ लेने को थैली भली
२ बिना जुगाड़ ना उद्धार
२७. संजीव सलिल
१ हाय! हम न रूबी राय हुए
२ दही हांडी की मटकी और सर्वोच्च न्यायालय
२८. इंजी संजय अग्निहोत्री
१ यथार्थ परक साहित्य
२ अदभुत लेखक
२९. संजीव निगम
१ लौट के उद्धव मथुरा आये
२ शिक्षा बिक्री केन्द्र
३०. समीर लाल उड़नतश्तरी
१ किताब का मेला या मेले की किताब
२ रिंग टोनः खोलती है राज आपके व्यक्तित्व का
३१. शशांक मिश्र भारती
१ पूंछ की सिधाई
२ अथ नेता चरित्रम्
३२. प्रो.शरद नारायण खरे
१ ख़ुदा करे आपका पड़ोसी दुखी रहे
२ छोड़ें नेतागिरी
३३. शशिकांत सिंह ’शशि’
१ गैंडाराज
२ सुअर पुराण
३४. शिखर चंद जैन
१ आलराउंडर मंत्री
२ मुलाकात पार्षद से
३५. सुधीर ओखदे
१ विमला की शादी
२ गणतंत्र सिसक रहा है
३६. विक्रम आदित्य सिंह
१ देश के बाबा
२ ताजा खबर
३७. विनोद साव
१ दूध का हिसाब
३८. विनोद कुमार विक्की
१ पत्नी, पाकिस्तान और पेट्रोल
२ व्यथित लेखक उत्साहित संपाद
39. विजयानंद विजय
१ आइए, देश देश खेलते हैं
२ हम तो बंदर ही भले है
40. विवेक रंजन श्रीवास्त
१ सीबीआई का सीबीआई के द्वारा सीबीआई के लिये
२ आम से खास बनने की पहचान थी लाल बत्ती
41. अमन चक्र
१ कुत्ता
2 मस्तराम
42. रमेश मनोहरा
१ उल्लुओ का चिंतन
43. दिलीप मेहरा
१ कलयुग के भगवान
२ विदाई समारोह और शंकर की उलझन
प्रकाशक
रवीना प्रकाशन, दिल्ली-110094
9205127294, 9700774571
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें