दोहा सलिला:
*
लीक पकड़कर चलाचल, सब ठोंकेंगे पीठ
लीक छुटी कोड़े पड़े, सभी दिखाएँ दीठ
*
पट्टा बाँधे आँख पर, घोड़ा माफिक भाग
हरी घास मत देखना, मालिक देगा त्याग
*
क्या लाया? ले जाए क्या?, कौन कभी यह सोच.
जोड़-तोड़ किसके लिए?, कुछ तो कर संकोच.
*
तू दो दूनी पाँच कह, मैं बोलूँगा तीन.
चार कहे जो वह गलत, नचा बजाकर बीन.
*
आरक्षित ने मिल दिया, सीता को वनवास.
राम न रक्षा कर सके, साक्षी है इतिहास.
*
पुजती रहीं गणेश सँग, लछमी हरि को छोड़.
'लिव इन' होते देखकर, शीश न अपना फोड़.
*
'अच्छे दिन अब आ रहे', सुनिए उनकी बात.
नीरव के सँग उड़ गए, हाथ मल रहे तात.
*
अविश्वास प्रस्ताव की, दिखा रहे थे धौंस.
औंधे मुँह गिर पड़े हैं, लड़ें न बाकी हौंस.
*
घर में ही दुश्मन पले, जब-तब लेते काट.
खोज-खोज पप्पू थका, खोज न पाया काट.
*
एक-दूसरे को कहें, हम दोनों मिल चोर.
वेतन-भत्ते मिल बढ़ा, चहकें भाव-विभोर.
*
लोक नहीं है लोभ का, तंत्र करे षड्यंत्र.
'गण' पर नित 'गन' तानता, फूँक शोक का मंत्र.
*
जिस सीढ़ी से तू चढ़ा, उसको देना तोड़.
दूजा चढ़कर ले सके, 'सलिल' न तुझसे होड़.
*
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लीक पकड़कर चलाचल, सब ठोंकेंगे पीठ
लीक छुटी कोड़े पड़े, सभी दिखाएँ दीठ
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पट्टा बाँधे आँख पर, घोड़ा माफिक भाग
हरी घास मत देखना, मालिक देगा त्याग
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क्या लाया? ले जाए क्या?, कौन कभी यह सोच.
जोड़-तोड़ किसके लिए?, कुछ तो कर संकोच.
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तू दो दूनी पाँच कह, मैं बोलूँगा तीन.
चार कहे जो वह गलत, नचा बजाकर बीन.
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आरक्षित ने मिल दिया, सीता को वनवास.
राम न रक्षा कर सके, साक्षी है इतिहास.
*
पुजती रहीं गणेश सँग, लछमी हरि को छोड़.
'लिव इन' होते देखकर, शीश न अपना फोड़.
*
'अच्छे दिन अब आ रहे', सुनिए उनकी बात.
नीरव के सँग उड़ गए, हाथ मल रहे तात.
*
अविश्वास प्रस्ताव की, दिखा रहे थे धौंस.
औंधे मुँह गिर पड़े हैं, लड़ें न बाकी हौंस.
*
घर में ही दुश्मन पले, जब-तब लेते काट.
खोज-खोज पप्पू थका, खोज न पाया काट.
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एक-दूसरे को कहें, हम दोनों मिल चोर.
वेतन-भत्ते मिल बढ़ा, चहकें भाव-विभोर.
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लोक नहीं है लोभ का, तंत्र करे षड्यंत्र.
'गण' पर नित 'गन' तानता, फूँक शोक का मंत्र.
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जिस सीढ़ी से तू चढ़ा, उसको देना तोड़.
दूजा चढ़कर ले सके, 'सलिल' न तुझसे होड़.
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सगा ना कोई सगा है, गैर सभी है गैर.
बैर बैर से पालकर, मने किस तरह खैर?
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गौ भाषा को दूहकर, दोहा देता अर्थ.
अर्थ न अन्तर्निहित यदि, तो लिखना है व्यर्थ.
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इंद्रप्रस्थ के तख़्त पर, नर नरेंद्र आसीन.
शाह ताज बिन घूमता, सेवक के आधीन.
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२२.४.२०१८
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