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बुधवार, 18 अप्रैल 2018

मुक्तक सलिला 
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मुक्त विचारों को छंदों में ढालो रे! 
नित मुक्तक कहने की आदत पालो रे!!
कोकिलकंठी होना शर्त न कविता की-
छंदों को सीखो निज स्वर में गा लो रे!!
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मुक्तक-मुक्तक मणि-मुक्ता है माला का। 
स्नेह-सिंधु है, बिंदु नहीं यह हाला का।  
प्यार करोगे तो पाओगे प्यार 'सलिल'
घृणा करे जो वह शिकार हो ज्वाला का

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जीवन कहता है: 'मुझको जीकर देखो'
अमृत-विष कहते: 'मुझको पीकर देखो'
आँसू कहते: 'मन को हल्का होने दो-
व्यर्थ न बोलो, अधरों को सीकर देखो"

अफसर करे न चाकरी, नेता करे न काम। 
सेठ करोड़ों लूटकर, करें योग-व्यायाम
कृषक-श्रमिक भूखे मरें, हुआ विधाता वाम- 
सरहद पर सर कट रहे, कुछ करिए श्री राम

छप्पन भोग लगाकर नेता मिल करते उपवास। 
नैतिकता नीलाम करी, जग करता है उपहास
चोर-चोर मौसेरे भाई, रोज करें नौटंकी-
मत लेने आएँ, मत देना, ठेंगा दिखा सहास
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