कुल पेज दृश्य

सोमवार, 16 अप्रैल 2018

निमाड़ी लघुकथा

निमाड़ी लघुकथाएँ 
१. खिलौने 
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
दिन भर कार्यालय में व्यस्त रहने के बाद थका-हारा घर पहुँचा तो पत्नी ने किराना न लाने का उलाहना दिया। उलटे पैर बाजार भागा, किराना लेकर लौटा तो बिटिया रानीशिकायत लेकर आ गई "मम्मी पिकनिक नहीं जाने दे रही।" जैसे-तैसे  श्रीमती जी के मानकर अनुमति दिलवाई तो मुँह लटकाए बेटे ने बताया कोचिंग जाना है,  फीस चाहिए। जेब खाली देख, अगले माह से जाने के लिए  कहा और सोचने लगा कि धन कहाँ से जुटाए? माँ के खाँसना और पिता के कराहना की आवाज़ सुनकर उनसे हाल-चाल पूछा तो पता चला कि दवाई  खत्म हो गई और शाम की चाय भी नहीं मिली। बिटिया को चाय बनाने के लिए कहकर बेटे को दवाई लाने भेजा ही था कि मोबाइल बजा। जीवनबीमा एजेंट ने  बताया किस्त तुरंत न चुकाई तो पॉलिसी लैप्स हो जाएगी। एजेंट से शिक्षा ऋण पॉलिसी की बात कर कपड़े बदलने जा ही रहा था कि दृष्टि आलमारी में रखे,  बचपन के खिलौनों पर पड़ी।
पल भर ठिठककर उन पर हाथ फेरा तो लगा खिलौने कह रहे हैं "तुम्हें ही जल्दी पड़ी थी बड़ा होने की, अब भुगतो। छोटे थे तो हम तुम्हारे हाथों के खिलौने थे,  बड़े होकर तुम हो गए हो दूसरों के हाथों के खिलौने।
***
संपर्क: विश्व वाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१ 
चलभाष़:७९९९५५९६१८ /९४२५१८३२४४, ईमेल: salil.sanjiv@gmail.com 
===========================


२. बीच सड़क पर
-मोहन परमार मोहन
*
खरगोन शहर, तपती दुपहरी,  आती-जाती भीड़ पर कोई असर नहीं,  न जाने कहाँ से आते इतने लोग और न जाने कहाँ जाते,  डाकघर चौराहे पर दो चौड़े रास्ते एक दूसरे को काटकर सँकरी राह में बदल जाते हैं। दिन भर लगा रहता जाम, आठ-आठ घंटे खड़े यातायात पुलिसवालों की कड़ी परीक्षा होती हर समय, जब लोग यातायात  नियमों की धज्जियाँ उड़ाते। चौराहे के बीच में लगी छतरी की छाया कभी पुलिसकर्मी को नहीं मिलती। धूप असह्य होने पर पुलिसकर्मी किनारे पर पान की दूकान पर जा खड़ा हुआ।

उसी समय तेजी से साइकिल चलाकर आता एक लड़का अधेड़ महिला से टकरा गया। पुलिसवाला जोर से चिल्लाया- "क्यों बे! सड़क पर चलना नहीं आता? बाएँ हाथ से चलने का नियम नहीं जानता क्या?"
लड़के ने उठते हुए उत्तर  दिया- "तू वहाँ क्यों खड़ा है?, तू भी नियम नहीं जानता क्या?" भीड़ ठठाकर हँस पड़ी, पुलिसवाला कभी भागता हुए लड़के को देखता,  कभी हँसी हुई भीड़ को। उसे लगा वह छत्री भी उसकी हँसी उड़ी रही है।
***
संपर्क: ए २२ गौरीधाम,  खरगोन ४४५००१. चलभाष: ९८२६७४४८३७ 
================
३. रोटियाँ
अशोक  गर्ग "असर"
*
माँ-बाप ने शहर में पढ़ रही बेटी के पास जाने का सोचा। बेटी को शहर में ढंग का खाना नहीं मिलता होगा सोचकर माँ ने जल्दी-जल्दी रोटी-सब्जी बनाकर, बाप ने जरूरी सामान समेटा और सुबह ६ बजे वाली बस से लंबा सफर तयकर बेटी के पास पहुँचे। सफर की थकान मिटाकर माँ-बाप, बेचारा साथ खाना खाने बैठे। थाली पर नजर पड़ते ही बेटी गुस्सा कर माँ से बोली "यह क्या ले आई? ठंडी रोटियाँ और बेस्वाद सब्जी,  कौन खाएगा?" 
बेटी तनतनाते हुए बगैर रोटी खाए अपने कमरे में चली गई। माँ को अपनी माँ याद आ गई,  जब वह शहर में पढ़ती थी तो अपनी माँ की दी रोटियाँ २-३ दिन तक बचा-बचाकर खाती थी, उसे उन रोटियों में अपनी माँ की असीम ममता नजर आती थी। माँ की आँखें डबडबा रही थीं और पिता की भी।
***
द्वारा: आर. के. महाजन, २६ विवेकानंद कॉलोनी,  खरगोन। चलभाष: ९४२५९ ८१२१३ 
====================
४. फोर जी
शरदचंद्र त्रिवेदी 
*
"मम्मी! हम छुट्टियों में कहाँ जाएंगे?"
"बेटा! हम नाना जी के घर चलेंगे।"
"वहाँ क्या है?" चिंटू ने मम्मी से पूछा।
"वहाँ नाना - नानी हैं,  मामा-मामी और उनके बच्चे हैं। नाना जी की बड़ी सी बखरी है,  आम का बाग, खेलने के लिए खलिहान, तैरने के लिए तालाब सब कुछ है। नानी बता रही थीं इस साल आमों पर बहार आई है। हम पूरी गर्मी वहीं रहेंगे,  खूब मजे करेंगे।"
"मम्मी मुझे नहीं जाना वहाँ।"
माँ ने चौंकते हुए पूछा "क्यों?"
"क्योंकि वहाँ फोर जी नहीं मिलता।
*
संपर्क: ए ४५ गौरी धाम,  खरगौन, चलभाष:९४०६८१६४११   
=================
५. वापसी
ब्रजेश बड़ोले
*
पति-पत्नी के बीच घरेलू काम-काज को लेकर आए दिन झगड़े होते रहते थे। पत्नी चूल्हा-चौका कर जताती कि वह पूरे परिवार पर अहसान कर रही है। वह अकसर कहती- "मैं यदि घर छोड़कर चली जाऊँ तो सबको मालूम पड़ जाए, सुबह से उठकर चाय भी नहीं मिल पाएगी।"
पत्नी आखिर एक दिन अपना बोरिया-बिस्तर बाँधकर मायके चली गई। माता-पिता,  भाई-भाभी, भरा-पूरा परिवार था उसका,  सबने उसका स्वागत किया। आठ-दस दिनों तक तो सब ठीक  चलता रहा,  फिर गड़बड़ होने लगी। उसका बैठे-बैठे खाना सबको अखरने लगा, खासकर भाभियों को। सबका लाड़-प्यार कुछ ही दिनों में काफूर हो गया। अब उसे भी काम करना पड़ता था। परिवार बड़ा होने के कारण काम भी अधिक था, भाभियाँ आए दिन मायके जाने लगीं। जिस काम से बचने के लिए वह भागता यहाँ आई थी,  उसने यहाँ भी  पीछा नहीं छोड़ा था। 
अब वह पुन: घर जाने की तैयारी कर रही थी।
*
संपर्क: ए १३ गौरीधाम, खरगोन चलभाष: ९९७७०७२८६४ 
==================
६. मोक्ष

सुनील गीते
*
ससुर के श्राद्ध दिवस पर ब्रम्हभोज का आयोजन चल रहा था। वृद्ध सास स्वयं अपने हाथों से ब्राह्मणों को परोसने के उद्देश्य से खड़ी हुई तो पानी के गिलास से टकरा गई।
बिखरा पानी देख बहू बिफरी- "मांजी! आप चुपचाप एक जगह बैठी क्यों नहीं रहती?" फिर  बुदबुदाई, " न जाने कब इनसे मुक्ति मिलेगी?"
मकान की छत पर बैठे एक कौवे ने यह बात सुनी और अपना हिस्सा लिए बिना, दूर आकाश में उड़ गया।
संपर्क: वयम, १०२ आदर्श नगर, खंडवा रोड़, खरगोन ४५१००१, चलभाष ९८२७२३१३१६  
===========================
७. बासी-ताजी सब्जी 
सुरेश कुशवाहा 'तन्मय' 
*
रात के १० बजे ठेकेदार के चंगुल से छूट कर घर की ओर लौटते हुए वे दिहाड़ी मजदूर रास्ते में खड़े एक सब्जी वाले से सब्जी के भाव कम करने की मिन्नतें कर रहे थे: "भैया! थोड़ा कम दाम लगा लो न, हम सब को मिल कर ज्यादा भी तो लेना है।"
सब्जी वाले द्वारा भाव कम नहीं करने पर अंतिम कोशिश  के रूप में पुनः मजदूर आग्रह के स्वर में कहने लगे: "भैया! वैसे भी सब्जी बासी हो कर सड़ने गलने लगी है, सुबह तक तो ये किसी के भी खाने लायक नहीं रहेगी। अब इतनी रात को अब दूसरे ग्राहक तुम्हें कौन मिलेंगे?"
"देखो भाई लोगो! जैसे आप लोग अपने परिवार का पेट पालने के लिए इतनी रात तक काम करते रहे हो , वैसे ही मैं भी यहाँ किसी उम्मीद से ही खड़ा हूँ। और ये तो कहो मत कि, सब्जियाँ खराब हो गई तो फेंकने में जाएगी। आगे वे चमचमाती होटलें दिख रही है न, थोड़ी देर बाद थोड़ा सुनसान होने पर मेरी और मेरे जैसे और ठेलों की पूरी सब्जियाँ खुशी-खुशी वहाँ खप जाएगी। रात भर उनके फ़्रिज में आराम कर, चटपटे मसलों के साथ यही सब्जियाँ  फिर से ताजी हो कर मँहगी प्लेटों में सज कर बड़े-बड़े रईस लोगों को परोस दी जाएगी।
यह जानने के बाद जरूरत की सब्जी ले कर मजदूर आपस में बातें करते अपने मुकाम की ओर लौट चले: "यार! हम तो अभी तक सोचते थे कि, तंगी की वजह से हमारी किस्मत में ही ताजी सब्जियाँ नहीं है, पर आज पता चला कि, पैसे वाले इन बड़े लोगों की किस्मत भी इस मामले में अपने से अच्छी नहीं है।
*
संपर्क: २२६ नर्मदे नगर, बिलहरी, जबलपुर,चलभाष: ९८९३२६६०१४, ,ईमेल: sureshnimadi@gmail.com
=======================
८. दो भाई 
स्व. राम नारायणजी उपाध्याय.  
पद्मश्री, साहित्य वाचस्पति  
विचार तथा आचार  दोनों सगे भाई थे, दोनों एक ही दिन पैदा हुए, विचार पहले आचार उसके बाद में। उम्र में बड़ा होने पर भी विचार चंचल स्वभाव का था। वह कभी एक जगह टिकता नहीं था, हमेशा दूर-दूर की सोचता रहता था। आयु में छोटा होने पर भी आचार गंभीर स्वभाव का था। उसके मुखमण्डल पर सदा शालीनता उभरती थी, वह हमेशा कुछ न कुछ करता रहता था। शरीर से भारी-भरकम और सदा काम-धंधे से लदे  होने के कारण वह मन होने के बाद भी विचार के साथ खेल-कूद नहीं पाता था।    
एक दिन न जाने किस बात पर दोनों भाइयों में कहा-सूनी और मन-मुटाव हो गया। विचार गुस्सा होकर अपने घर से इतनी दूर निकल गया कि आचार उसे खोज ही नहीं सका। विचार के अभाव में आचार सूखने लगा, बहुत दुबला हो गया। अब उसका मन किसी काम में नहीं लगता था। वह करना कुछ चाहता हो और कुछ जाता। लोगों की निगाह में उसका कोई महत्व नहीं रह गया, वह एकदम भावशून्य हो गया।
घर से भागकर विचार ने सीधा रास्ता पकड़ा किन्तु बाद में वह तर्क-कुतर्क के आड़े-टेढ़े रास्ते पर भटकता रहा। आचार का घर छोड़ने के बाद से कोई विचार की बात का भरोसा नहीं करता था। वह जहाँ भी जाता लोग उसे आचारहीन कहकर उसकी उपेक्षा करते थे। आखिर में एक दिन अपने उजड्डपन से थक-हार कर विचार अपने घर वापिस आ गया। 
आचार ने दौड़कर उसकी आवभगत की। तब दोनों भाइयों में समझौता हुआ कि विचार जहाँ भी जाएगा अपने छोटे भाई आचार को भी साथ ले जाएगा। आचार जो भी करेगा अपने बड़े भाई विचार को साथ में लेकर करेगा। इस तरह मिल-जल कर दोनों भी सुखी-संपन्न हो गए। 
*
संपर्क: साहित्य कुटीर  पं . राम नारायण उपाध्याय वार्ड, खण्डवा म.प्र. 
चलभाष: ९४२५० ८६२४६, ९४२४९४९८३९,  ७९९९७४९१२५ gangourknw@gmail.com lekhakhemant17@gmail.com 
============================
९.  सही कौन? 
हेमंत उपाध्याय
*
एक दावत में बहुत स्वादिष्ट पकवान बने थे । नगर सेठ से पूछा कि भोजन कैसा बना है तो उसने कहा: 'दाल में नमक अधिक है।'                        
कालेज के  प्राचार्य साहब से  पूछ तो वे बोले: 'भात में नमक काम है।     
गाँव के दाजी से पूछा तो उन्होंने दाल-भात मिलकर कहते हुए कहा: सब एकदम बढ़िया बना है, अन्नपूर्णा माँ की साक्षात कृपा है तुम पर।                                   
*
संपर्क: साहित्य कुटीर  पं . राम नारायण उपाध्याय वार्ड, खण्डवा म.प्र. 
चलभाष: ९४२५० ८६२४६, ९४२४९४९८३९,  ७९९९७४९१२५ gangourknw@gmail.com lekhakhemant17@gmail.com 
============================
     






६. मोक्ष 

सुनील गीते 
*
ससुर जी का सराध का दिन बाम्हण म्हाराज न ख$ जिमाड़न$ की तैयारी चली रइ थी। 
डोकरी सासु मांय अपणा हात सी बामण न$ख भोजन परसण$ ख उठी। कांपता हात-पाँय न$ बूढ़ापा को सरीर। पाणी को एक गिल्लास टकरयी न पाणी फैली गयो। बगळेल पाणी देखी न$ ववड़ी को पारो चयड़ी गयो न$ बड़बड़ाण$ लगी----" पतो नी ई बुड्ढी सासु मांय सी कवँ मुक्ति मिलग$।
ई वात मुंडेर प बठेल हड्या(कौआ) का कान न म$ पड़ी।   सुणी न$ अपणा हिस्सा की धरेल सराध की पातळ छोड़ि न दूर अकास म$ उड़ी गयो।
 ===============
७. बासी-ताजी सब्जी 
सुरेश कुशवाहा 'तन्मय 
*

रात ख 10 बजे ठेकेदार का चंगुल सी छुटी न$ 3-4 दिहाड़ी मजूर अपणा मुकाम प जात$जात$ एक साग-भाजी का ठेला प मोल-भाव करण$ लग्या । मोठा भाई -जरा हिसाब सी लगई ल$भाव तो हम सबइ जोण लेइ लेवांगा। पण सब्जी वाळो ठांय नि पसीजी रयो थो।
एक आखरी कोशिस मं मजूर न$न कयो कि भायजी वसी बी तमारी ई सब सब्जी वासी हुई गइज। सुभो तक तो ई सब सड़ी बी जायगा।आवँ यत्री रात मं कोई ग्राहक बी तो नी आवग$ ?
देखो भाई न होण!  - जसा तुम लोग पेट का लेण$ यत्ति रात तक खटी रयाज वसोज हंवू बी उम्मीद सी यहां उब्यौज।
न$ तुम ई तो मत कओ कि, ई सब्जी सड़ी जायगा।
वू वल्याङ्ग चमचमाती दुइ-तीन होटल देखी रयाज नी तुम, जरा देर बाद सुनसान होयग कि ई हमरी सब सब्जी का साथ दूसरा ठेला न खी सब वासी सब्जी न$ बी व्हां खपि जायग$। वू दुकान मं रात भर फिरिज मं रयि न सुभो  चटपटी मसालेदार ताजी सब्जी बणी न मयंगी प्लेट न$म सज$ग, फिरि यखज बड़ा बड़ा रईस लोग चटखारा लइ-लइ न खायग।
                 जरा-भौत सब्जी लइ न मजूर व्हां सी हंसता-बोलता,  वाट$ लग्या--यार भाई, हम तो सोचता था कि, तंगयी की वजह सी हमरीज किस्मत मं ताजी सब्जी न$ नी हंई, पण आज पतो चल्यो कि, ई बड़ा लोग न खि किस्मत बी इना मामला म अपणाज सरी खी छेज, अपुण तो फिरि बी भाव-ताव करी लेवांज। ई बिचारा तो वासी ख ताजी समझी न पैसा उड़ावज।
  खुश होण$ का बी सब का अपणा-अपणा तरीका छे
=======================
८. दो भाई 
रामनारायण उपाध्याय, पद्म श्री, विद्या वाचस्पति 
*
विचार न आचर दुई सग्गा भाई  था ।  दुवई एकज  दिन पैदा हुया था। विचार पयळ पैदा हुयो ओका  बाद आचार पैदा हुयो।  उमर मs बड़ो होणs का बाद भी विचार चंचल सुभाव को थो । उ कभी  स्थिर हुई कर एक जगह टिकतो नहीं थो । सदा कंई नकंई स़ोचतो रह्यतो न दूर -दूर की सोचतो रह्यतो थो । उमर मs छोटो  होणs पर भी आचार गंभीर सुभाव को थो । ओका मुख पर सदा सालीनता उभरती अरु उ सदा कंई न कंई करतो रह्यतो थो । 
शरीरसी उ भारी भरकम अनs सदा काम धंधा सी लदेल होणs का कारण उ मन होणs का बाद भी  विचार का साथ खेली -कुदी नी पावतो थो। 
एक दिन जाणs  काई हुयो कि दुवइ भाईनमs कहा सुणी हुई गई न मनमुटाव हुई गयो। विचार घुस्सो खाई कर  अपणा घरसी येतरी दूर निकलई  गयो कि आचार ओखs ढुंढी नी सक्यो। विचार का आभाव मs अचार सुखाणs लग्यो। घणो दुबलो हुई गयो। अब ओको मन कोई भी काम मs लगी नहीं पावतो थो । उ करतो कंई न होतो कंई  थो। लोग नs की निगाह मs ओका काम को कोई भी  दाम नहीं रह्ई गयो अरु उ एकदम भावशून्य हुई गयो।              
इधर घरसी भागीकर विचार नs सीधो रास्तो पकड्यो ।  बाद मs उ तर्क कुतर्क का आड़ा -तेड़ा रास्ता मs गुतातोज   रह्यो । आचार खs घरजs छोड़ी आवणsसी  कोई विचार की वात पर भरोसो नी करता थो और उ जहाँ भी जातो लोग ओखs आचारहीन बोली करनs ओकी अनदेखी करता था। आखरी मs अपना इनाज उजाड़्यापण सी हरी-थकी करनs एक दिन विचार पछो अपणा घर आई गयो । आचार नs दौड़ीकर ओकी  खूब आवभगत करी और तब दुवई भाईनमs यो समझोतो हुयो कि विचार जलेंग भी जाय वलेंग अपणा छोटा भाई आचार खs साथ मs लईकर जाय. असोज आचार जी भी करs अपणा मोठा भाई विचार का साथ करs । आसाज मिलीजुली कर एक दूसरा की मदत सी दुई भाई सुखी सम्पन्न हुई गया ।                      
संपर्क: साहित्य कुटीर  पं . राम नारायण उपाध्याय वार्ड, खण्डवा म.प्र. 
चलभाष: ९४२५० ८६२४६, ९४२४९४९८३९,  ७९९९७४९१२५ gangourknw@gmail.com lekhakhemant17@gmail.com 
============================
९.   सही कुण?
हेमंत.उपाध्याय
*
एक पंगत मs घणा  स्वादिष्ट पकवान बण्या था । नगर सेठ सी पूछ्यो कि रशोई कसी बणीज  तो उन्नs कयो - " दाल मs  लोण ज्यादा  छे ।"                        
कालेज का  प्राचार्य साहब सी  पूछ्यो  तो उ बोल्या   - " भात  मs लोण कम छे । "   गाँव का दाजी सी पूछ्यो तो  उन्नs  भात मs दाल मिलई कर  दाल भात को फूडको लइकर  कयो - सब घणो  चोखो एकदम सइसाट एक नम्बर बण्योज । अन्नपूर्णा माता की साक्षात कृपा छे , तुमारा पर ।                                      
*
संपर्क: साहित्य कुटीर  पं . राम नारायण उपाध्याय वार्ड, खण्डवा म.प्र. 
चलभाष: ९४२५० ८६२४६, ९४२४९४९८३९,  ७९९९७४९१२५ gangourknw@gmail.com lekhakhemant17@gmail.com 
============================
१० उपवास 

निमाड़ की औरत का व्रत 😜
पति-. कईआज रोटी नी बनानी कई।
पत्नी, - आज म्हारो उपास हे नी ..
पति-कई खायो की भुकी ज हे
कई खाई लेती?
पत्नी-, आसोज, जरासो.. खायो..
4-5 केला
2अनार
3-4 सेवफल
आलु पपड़ी
साबुदाणा की खिचड़ी
. सिंगोड़ा को परसाद
. सुबह ऐक गिलास दुध
दो कप चाय पी ली थी
. ने अब मोसंबी को रस पी री
आज ऊपास हे नी,और कई तो खाई नी सका नी।
पति- थोड़ी रबड़ी न पपीता खाई लेती ।
पत्नी -ई सब रात क खाऊगा नी ..
पति-तु भोत मुश्किल ऊपास करज।
कोई का बाप सी भी नी रवाय.. एतरो भूखो
देखजे कई कमजोरी नी आईजाय..
पत्नी-नई जी नी आवगी।
आज तो सुबह बदाम काजु खाई लिया था..
पति, फिर बी ध्यान राखजे..
११. 
अगर पाकिस्तान की बॉर्डर अपणा निमाड़ से लगती ,
तो अपणा याँ की बाई न होण आधो पाकिस्तान तो कंडा थेपी थेपी न कब्ज़ा म लई लेती 😂😀😁
न उनख भी निमाड़ी सिखाई देती। टोला मारी मारी ख।
"मरी का गया पाकिस्ताण्या होण".

कोई टिप्पणी नहीं: