तुमको देखा
तो मरुथल मन
हरा हो गया।
*
रूप अरूप स्वरूप लुभाये
जल में बिम्ब हाथ कब आये?
जो ललचाये, वह पछताये
जिसे न दीखा, वह भरमाये
किससे पूछें
कब अपरा,
कब परा हो गया?
तुमको देखा
तो मरुथल मन
हरा हो गया।
*
तुममें खुद को देख रहा मन
खुदमें तुमको लेख रहा मन
चमन-अमन की चाह सुमन सम
निज में ही अवरेख रहा मन
फूला-फला
बिखर-निखरा
.निर्भरा हो गया।
तुमको देखा
तो मरुथल मन
हरा हो गया।
*
कहे अजर यद्यपि है जर्जर
मान अमर पल-पल जाता मर।
करे तारने का दावा पर
खुद ही अब तक नहीं सका तर।
माया-मोह
तजा ज्यों हो
अक्षरा हो गया।
तुमको देखा
तो मरुथल मन
हरा हो गया।
***
२८-५-२०१६
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