मुक्तिका
संजीव
*
पहरेदार न देता पहरा
सुने न ऊपरवाला बहरा
.
ऊंचे-ऊंचे सागर देखे
पर्वत देखा गहरा-गहरा
.
धार घृणा की प्रबल वेगमय
नेह नर्मदा का जल ठहरा
.
चलभाषित शिशु सीख रहे हैं
सेक्स ज्ञान का नित्य ककहरा
.
संयम नियम न याद, भोग की
मृग मरीचिका भाग्य सुनहरा
***
संजीव
*
पहरेदार न देता पहरा
सुने न ऊपरवाला बहरा
.
ऊंचे-ऊंचे सागर देखे
पर्वत देखा गहरा-गहरा
.
धार घृणा की प्रबल वेगमय
नेह नर्मदा का जल ठहरा
.
चलभाषित शिशु सीख रहे हैं
सेक्स ज्ञान का नित्य ककहरा
.
संयम नियम न याद, भोग की
मृग मरीचिका भाग्य सुनहरा
***
1 टिप्पणी:
संयम नियम न याद, भोग की
मृग मरीचिका भाग्य सुनहरा------ वाह ! सार्थक रचनाकर्म !,बेहद गम्भीर भाव चित्रित हुए है रचना में , हृदय से बधाई प्रेषित है ।
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