मुक्तिका
*
कलश हो या नहीं हो, आधार हो
ज़िंदगी को ज़िंदगी से प्यार हो
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कदम छोटे-बड़े तय कर फासले
सँग उठें तो सफलता गलहार हो
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दिल दिया या दिल लिया दिल ने 'सलिल'
दिलवरी पूजा, नहीं व्यापार हो
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शिलापट के लेख बन-मिटते रहे
कंकरों में शंकरी दीदार हो
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छल-फरेबों से विजय, कब चाहिए?
बेहतर है साथ सच के हार हो
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खिड़कियों से लाख झाँके धूप आ
देख लेना घरमें आँगन-द्वार हो
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कमर के नीचे न हमला कीजिए
सामने आ सामने से वार हो
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१०-५-२०१६
२५६ आवास-विकास हरदोई
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