गीत-मुक्तिका
संजीव
*
जीना न इसे आया, मरना न उसे भाया
हर बशर यहाँ नाखुश, संसार अजब माया
.
हर रोज सजाता है,
सोचे कि आप सजता
आखिर न बचा पाता,
नित मिट रही सुकाया
आये-गये अकेले, कोई न साथ साथी
क्यों जोड़ रहा पल-पल? कण-कण यहाँ पराया
जीना न इसे आया, मरना न उसे भाया
.
सँग कौन कभी आता?
सँग कौन कभी जाता?
अपना जिसे बताता ,
तम में न संग काया
तू वृक्ष तो लगाये , फल अन्य 'सलिल' खाये
संतोष यही कर ले, सुंदर जहां बनाया
जीना न इसे आया, मरना न उसे भाया
.
मत जोड़-घटा निश-दिन,
आनंद बाँट मत गिन
जो भी यहाँ लुटाया ,
ले मान वही पाया
नित जला प्राण-बाती, चुप उषा मुस्कुराती
क्यों जोड़ रहा पल-पल? कण-कण यहाँ पराया
जीना न इसे आया, मरना न उसे भाया
.
जो तुझे जन्म देती,
कब बोल मोल लेती?
जो कुछ रचा-सुनाया,
क्यों मोल कुछ लगाया?
साखी सिखा कबीरा, बानी सुना फ़कीरा
मरकर हुए अमर हैं, कब काल मिटा पाया?
जीना न इसे आया, मरना न उसे भाया
.
मत ग्रंथि पाल पगले!,
जी जहाँ कहे बस ले?
भू बिछा, गगन ओढ़ा
सँग पवन खिलखिलाया
मत प्रेम-पंथ तजना, मत भूल भजन भजना
खुद में खुदी खुदा है, मत भूल सच भुलाया
जीना न इसे आया, मरना न उसे भाया
.
मापनी २२११ २२२२ २११२ २२ = २४
चौबीस मात्रिक अवतारी जातीय दिगपाल छन्द
बहर मफऊल फ़ायलातुन मफऊल फ़ायलातुन
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें