बाङ्ग्ला-हिंदी सेतु :
स्वप्नहीन दिनेर वेदना
मानवेंदु राय
*
सबुज सकाल एसे कड़ा नाड़े
दरजाय आलोर आंगुल।
चोख तुले देखे निइ-ए
जीबने कतटुकु भुल?
आर कतटुकु क्षति
स्वप्नहीन दिनेर बेदना
मानुषेर निसर्गेर काछे
जमा जतटुकु देना-
शोध करे चले जाबो
अनंत जात्रार पथे,
जे पथे रयेछे पड़े
अप्सरीदेर कालो चुल,
बेदना रांगानो सादा खई,
बिबर्ण तामार मुद्रा
पापडि छेंडा एकटि दु टि
शीर्ण जुइ फूल।
***
हिंदी काव्यानुवाद
संजीव 'सलिल'
*
सबह किरण सांकल खटकाती
जब द्वारे की ओट से।
भूल-हानि कितनी जीवन में
देखूं आँखें खोल के।
मैं बेस्वप्न दिवस की पीड़ा
कर निसर्ग के पास जमा-
अप्सराओं के कृष्ण-केश से
पथ अनंत तक जाऊँ चला।
पीड़ा सहकर है सफ़ेद या
रंगरहित ताम्बे की मुद्रा
या है फूल जूही का कोमल
जिसकी पंखुड़ियों को कुचला।
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स्वप्नहीन दिनेर वेदना
मानवेंदु राय
*
सबुज सकाल एसे कड़ा नाड़े
दरजाय आलोर आंगुल।
चोख तुले देखे निइ-ए
जीबने कतटुकु भुल?
आर कतटुकु क्षति
स्वप्नहीन दिनेर बेदना
मानुषेर निसर्गेर काछे
जमा जतटुकु देना-
शोध करे चले जाबो
अनंत जात्रार पथे,
जे पथे रयेछे पड़े
अप्सरीदेर कालो चुल,
बेदना रांगानो सादा खई,
बिबर्ण तामार मुद्रा
पापडि छेंडा एकटि दु टि
शीर्ण जुइ फूल।
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हिंदी काव्यानुवाद
संजीव 'सलिल'
*
सबह किरण सांकल खटकाती
जब द्वारे की ओट से।
भूल-हानि कितनी जीवन में
देखूं आँखें खोल के।
मैं बेस्वप्न दिवस की पीड़ा
कर निसर्ग के पास जमा-
अप्सराओं के कृष्ण-केश से
पथ अनंत तक जाऊँ चला।
पीड़ा सहकर है सफ़ेद या
रंगरहित ताम्बे की मुद्रा
या है फूल जूही का कोमल
जिसकी पंखुड़ियों को कुचला।
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