ललित निबन्ध :
अलसाए दिन
इन्दिरा प्रताप
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अभी अपनी रंग – बिरंगी चूनर समेत भी नहीं पाया था कि पतझड़ की रुनझुन ने हौले से ग्रीष्म को गीत गा बुलाया | ऋतुओं का यह चक्र जिससे इस देश के लोगों के प्राण स्पंदित होते हैं भारतीय सांस्कृतिक , सामाजिक ,धार्मिक परंपरा को सनातनता प्रदान करता है | हर ऋतु का अपना एक अलग सौन्दर्य है इसी से यह भारतीय महाकाव्यों का एक विशिष्ट अंग बना | कोई भी भारतीय महाकाव्य ऋतु वर्णन के बिना अधूरा है |
जेठ के दारुण आतप से , तप के जगती तल जावै जला ,
नभ मंडल छाया मरुस्थल सा ,दल बाँध के अंधड़ आवै चला ,
जलहीन जलाशय , व्याकुल हैं पशु – पक्षी , प्रचंड है भानु कला ,
किसी कानन कुञ्ज के धाम में प्यारे ,करै बिसीराम चलौ तो भला |
नदियाँ ,ऐसे में पशु पक्षी भी प्यास से व्याकुल हो थके – मांदे इधर – उधर घूम रहे हैं |
, उसके बिना मानव जीवन संभव नहीं है | सूर्यस्य तेज : हमारी जीवनी शक्ति है | जल विकास है ,वायु प्राण है तो वनस्पति हमारा पोषण करती है |
कब आएँ आकाश में आषाढ़ के मेघ, -कब बरसे जल धार , कब सरसे हरे – भरे पात , कब जल पूरित हों ताल | सभी कुछ तो देन है ऋतुओं की भारत भू को |
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