एक कविता
सपने में अमन
संजीव 'सलिल'
*
'मैंने सपने में अमन देखा है'
एक बच्चे ने हँस कहा मुझसे.
*
दूसरा दूर खड़ा बोल पड़ा:
'मुझको सपने में गोल रोटी दिखी.'
*
तीसरे ने बताया ख्वाब तभी:
'मैंने शिक्षक को पढ़ाते देखा.'
*
चौथा बोला कि उसने सपने में
काम करते हुए बाबू देखा.
*
मौन तज एक बेटी धीरे से
बोली:'मैया ने आज सपने में
मुझे भैया के जैसे प्यार किया.'
*
एक रोगी कराहकर बोला:
'ख्वाब में मेरे डॉक्टर आया,
फीस माँगी नहीं इलाज किया
मेरा सिर घूम रहा चकराया.'
*
'तौल पूरी, बकाया चिल्लर भी
स्वप्न में सेठ ने लौटाए हैं.'
*
'बिना मांगे दहेज़ दूल्हे ने
शादी अपनी विहँस रचाई है.'
*
'खाकी वर्दी ने सही जाँच करी
ये न पाया कि तमाशाई है.'
*
'मेरे सपने में आये नेता ने
अपना बुत चौक से हटाया है.'
*
'पाक ने बंद कैदी छोड़ दिये
और आतंक भी मिटाया है'
*
जितने सपने हैं मेरे अपने हैं
काश साकार 'सलिल' हो पायें.
देवता फिर तभी जनम लेंगे-
आदमी आदमी जो हो जायें.
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot. com
http://hindihindi.in
सपने में अमन
संजीव 'सलिल'
*
एक बच्चे ने हँस कहा मुझसे.
*
दूसरा दूर खड़ा बोल पड़ा:
'मुझको सपने में गोल रोटी दिखी.'
*
तीसरे ने बताया ख्वाब तभी:
'मैंने शिक्षक को पढ़ाते देखा.'
*
चौथा बोला कि उसने सपने में
काम करते हुए बाबू देखा.
*
मौन तज एक बेटी धीरे से
बोली:'मैया ने आज सपने में
मुझे भैया के जैसे प्यार किया.'
*
एक रोगी कराहकर बोला:
'ख्वाब में मेरे डॉक्टर आया,
फीस माँगी नहीं इलाज किया
मेरा सिर घूम रहा चकराया.'
*
'तौल पूरी, बकाया चिल्लर भी
स्वप्न में सेठ ने लौटाए हैं.'
*
'बिना मांगे दहेज़ दूल्हे ने
शादी अपनी विहँस रचाई है.'
*
'खाकी वर्दी ने सही जाँच करी
ये न पाया कि तमाशाई है.'
*
'मेरे सपने में आये नेता ने
अपना बुत चौक से हटाया है.'
*
'पाक ने बंद कैदी छोड़ दिये
और आतंक भी मिटाया है'
*
जितने सपने हैं मेरे अपने हैं
काश साकार 'सलिल' हो पायें.
देवता फिर तभी जनम लेंगे-
आदमी आदमी जो हो जायें.
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.
http://hindihindi.in
7 टिप्पणियां:
Mahipal Singh Tomar ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita
वाह वाह वाह ,
आपके इस नए तेवर की , सर्व-आयामीं अद्भुत ,
रचना के लिए ,हार्दिक बधाई |
वंदन ,अभिनन्दन ,
सादर ,
महिपाल
achal verma ✆ ekavita
आदमी , आदमी जब हो जाए
सारी दुनिया ये स्वर्ग बन जाए
देवता स्वर्ग के फिर सोंचेंगे
चलो दुनिया के सैर कर आयें
अचल वर्मा
- pratapsingh1971@gmail.com
आदरणीय आचार्य जी
बहुत ही भावपूर्ण रचना !
साधुवाद !
सादर
प्रताप
kusum sinha ✆ekavita
priy sanjiv ji
hamesha ki tarah bahut hi komal bhavon ki kavita
badhai
kusum
Mahipal Singh Tomar ✆ द्वारा yahoogroups.com
ekavita
आदरणीय,
' मैंने सपने में अमन देखा है ' एक बहुआयामी रचना आपकी ही एक अन्य
रचना के बीच में दब के,अपना जलवा दिखाने से पीछे रह गई ! ?
यह मुक्तिका ' सपने ' तो सच में इतनी मुक्त है कि ,समाज में व्याप्त कुछ भी ,
इसकी उडान की पकड़ से बच नहीं पाया |आपकी द्रष्टि और अभिव्यक्ति दोनों
को नमन | बधाई ,सादर ,
महिपाल
'सपने में अमन' में से सभी कुछ इतना सुन्दर कि काश सब सत्य हो सके!
पर ये नीचे वाली पंक्तियाँ सबसे अधिक हृदयग्राही :
*
'मैंने सपने में अमन देखा है'
एक बच्चे ने हँस कहा मुझसे.
*
दूसरा दूर खड़ा बोल पड़ा:
'मुझको सपने में गोल रोटी दिखी.' -- ओह , क्या लिख दिया अपने! बहुत ज़रूरी बहुत गंभीर बात!
नमन स्वीकारें!
-----------
BEHTREEN RACHNA . BADHAAEE .
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