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सोमवार, 30 अप्रैल 2012

गीत: कोई अपना यहाँ -- संजीव 'सलिल'

गीत:
कोई
अपना यहाँ
संजीव 'सलिल'
*
मन विहग उड़ रहा,
खोजता फिर रहा.
काश! पाये कभी-
कोई अपना यहाँ??
*
साँस राधा हुई, आस मीरां हुई,
श्याम चाहा मगर, किसने पाया कहाँ?
चैन के पल चुके, नैन थककर झुके-
भोगता दिल रहा
सिर्फ तपना यहाँ...
*
जब उजाला मिला, साथ परछाईं थी.
जब अँधेरा घिरा, सँग तनहाई थी.
जो थे अपने जलाया, भुलाया तुरत-
बच न पाया कभी
कोई सपना यहाँ...
*
जिंदगी का सफर, ख़त्म-आरंभ हो.
दैव! करना दया, शेष ना दंभ हो.
बिंदु आगे बढ़े, सिंधु में जा मिले-
कैद कर ना सके,
कोई नपना यहाँ...
*

Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in



1 टिप्पणी:

shar_j_n@yahoo.com ने कहा…

shar_j_n ✆

ekavita


इतनी सुन्दर कविता कि क्या कहे कोई!
हर बंद एक से बढ़ कर एक!
बहुत बहुत आभार आपका आचार्य जी!

सादर शार्दुला