मुक्तिका:
तेरा ही जी न चाहे...
संजीव 'सलिल'
*
आसों की बात क्या करें, साँसें उधार हैं.
साक़ी है एक प्यास के मारे हज़ार हैं..
*
ढांकें रहें बदन ये चलन है न आज का.
भावों से अधिक दिख रहे जिस्मो-उभार हैं..
*
खोटा है आदमी ये खुदा भी है जानता.
करते मुआफ जो वही परवर दिगार हैं..
*
बाधाओं के सितार पे कोशिश की उँगलियाँ
तारों को छेड़ें जो वही नगमानिगार हैं..
*
मंज़िल पुकारती है 'सलिल' कदम तो बढ़ा.
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हज़ार हैं..
***
बह्र: बह्र मुजारे मुसम्मन अखरब मक्फूफ़ महजूफ
तेरा ही जी न चाहे...
संजीव 'सलिल'
*
आसों की बात क्या करें, साँसें उधार हैं.
साक़ी है एक प्यास के मारे हज़ार हैं..
*
ढांकें रहें बदन ये चलन है न आज का.
भावों से अधिक दिख रहे जिस्मो-उभार हैं..
*
खोटा है आदमी ये खुदा भी है जानता.
करते मुआफ जो वही परवर दिगार हैं..
*
बाधाओं के सितार पे कोशिश की उँगलियाँ
तारों को छेड़ें जो वही नगमानिगार हैं..
*
मंज़िल पुकारती है 'सलिल' कदम तो बढ़ा.
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हज़ार हैं..
***
बह्र: बह्र मुजारे मुसम्मन अखरब मक्फूफ़ महजूफ
२ २ १ / २ १ २ १ / १ २ २ १ / २ १ २
रदीफ: हैं
काफिया: आर
19 टिप्पणियां:
wah bahut khoob
rajesh kumari
वाह सलिल जी क्या खूब ग़ज़ल कही
योगराज प्रभाकर
बहुत ही सुंदर ग़ज़ल कही है आदरणीय आचार्य जी. बधाई स्वीकार करे.
sanjiv verma 'salil'
आपका शुक्रिया.
बाधाओं के कोशिश पे कोशिश की उँगलियाँ
तारों को छेड़ें जो वही नगमानिगार हैं..
टंकण की त्रुटि के लिए खेद है. कृपया, पहला मिसरा निम्न अनुसार पढ़ें:
बाधाओं के सितार पर कोशिश की उँगलियाँ
संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी'
आदरणीय आचार्य जी,
क्या ख़ूब ग़ज़ल कही आपने! ख़ास तौर पर यह शे'र,
बाधाओं के सितार पे कोशिश की उँगलियाँ
तारों को छेड़ें जो वही नगमानिगार ------ बहुत सुन्दर!!
Seema agrawal
आदरणीय सलिल जी
प्रणाम ...
वाह पांच शेर -पांच बात ..और सबमे कुछ निरालापन पर जो सबसे अधिक मन को ठक्क से लगा वो है
ढांकें रहें बदन ये चलन है न आज का.
भावों से अधिक दिख रहे जिस्मो-उभार हैं
कई स्थितियों से हम सब असहाय से नज़रें बचाए बैठे रहते हैं पर जो है सो है ...आँख बंद कर लेने से मुसीबत नहीं टालती पर
arun kumar nigam
आदरणीय संजीव जी,
उम्दा गज़ल.
खासतौर से इन शेरों पर दाद कबूल करें-
ढांकें रहें बदन ये चलन है न आज का.
भावों से अधिक दिख रहे जिस्मो-उभार हैं.
बाधाओं के कोशिश पे कोशिश की उँगलियाँ
तारों को छेड़ें जो वही नगमानिगार हैं..
विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी
यूं नहीं आप हमारे आमोजगार हैं।
सच में बहुत बड़े आप फनकार हैं॥
बेमिशाल लाजवाब कहन है हुजूर।
इसलिए दुनिया में आप बावकार हैं॥
SHAILENDRA KUMAR SINGH 'MRIDU'
आदरणीय आचार्य जी
इस उत्कृष्ट गजल पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें
Ambarish Srivastava
//ढांकें रहें बदन ये चलन है न आज का.
भावों से अधिक दिख रहे जिस्मो-उभार हैं..
बाधाओं के सितार पर कोशिश की उँगलियाँ
तारों को छेड़ें जो वही नगमानिगार हैं..//
वाह आदरणीय वाह !
बेहतरीन अशआर से सजी हुई इस शानदार गज़ल के लिए कोटि-कोटि बधाई स्वीकारें ! सादर
दुष्यंत सेवक
बाधाओं के सितार पर कोशिश की उँगलियाँ
तारों को छेड़ें जो वही नगमानिगार हैं..
क्या कहने क्या कहने...
आचार्य जी की लेखनी और प्रौढ़ सोच को नमन.. जय हो
satish mapatpuri
किसी एक शे'र पर "वाह " नहीं कहा जा सकता .......... इसलिए कह रहा हूँ ............ लाज़वाब .
बाधाओं के सितार पर कोशिश की उँगलियाँ
तारों को छेड़ें जो वही नगमानिगार हैं...
.
वाह वाह बहुत सुन्दर शेअर श्री sanjiv verma 'salil' जी
dilbag virk
लाजवाब
Dharam
आदरणीय सलिल जी ...
एक से बढ़ कर एक मुक्तिका....
ये मुक्तिका तो नवस्फूर्ति का संचार कर गई....
//बाधाओं के सितार पर कोशिश की उँगलियाँ
तारों को छेड़ें जो वही नगमानिगार हैं.//
हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये...
Ganesh Jee "Bagi"
खोटा है आदमी ये खुदा भी है जानता.
करते मुआफ जो वही परवर दिगार हैं..
वाह वाह, कुरआन की पाक आयतों के माफिक यह शेर पाक लगता है, बहुत ही उच्च स्तर के ख्यालात, साथ ही बाधाओं के सितार पर कोशिश की उँगलियाँ वाला शेर भी बहुत पसंद आया, कुल मिलाकर एक सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति, बधाई स्वीकार करे आचार्य जी |
santosh.bhauwala@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
आदरणीय आचार्य जी ,
मुक्तिका बहुत अच्छी लगी ख़ास कर ....
बाधाओं के सितार पे कोशिश की उँगलियाँ
तारों को छेड़ें जो वही नगमानिगार हैं..
मंज़िल पुकारती है 'सलिल' कदम तो बढ़ा.
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हज़ार हैं..
सादर
संतोष भाऊवाला
sn Sharma ✆ ahutee@gmail.com द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
आ० आचार्य जी,
सदा की भाँति उच्च विचारपूर्ण मुक्तिकाएं , साधुवाद |
आपने कुछ अक्षरों को चिन्हित किया है इसका तात्पर्य क्या है ? स्पष्ट करने की कृपा के लिये आभारी रहूँगा |
सादर
कमल
आत्मीय कमल जी, संतोष भाऊवाला जी !
अपने हौसला बढ़ाया, आभारी हूँ.
रेखांकित वर्ण दीर्घ होते हुए भी लघु की तरह प्रयुक्त हुए हैं अर्थात २ मात्राएँ होने पर भी उच्चारण करते समय १ मात्रावाले शब्द की तरह होता है.
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