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शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

एक गीत: हरसिंगार मुस्काये... --संजीव 'सलिल'

एक गीत:
हरसिंगार मुस्काये...
संजीव 'सलिल'
*
खिलखिलायीं पल भर 
शत हरसिंगार मुस्काये...
*
अँखियों के पारिजात
उठें-गिरें पलक-पात.
हरिचंदन देह धवल
मंदारी मन प्रभात.
शुक्लांगी नयनों में
शेफाली शरमाये.
खिलखिलायीं पल भर तुम  
हरसिंगार मुस्काये...
*
परजाता मन भाता.
अनकहनी कह जाता.
महुआ तन महक रहा
टेसू रंग दिखलाता.
फागुन में सावन की
हो प्रतीति भरमाये.
खिलखिलाये पल भर तुम   
हरसिंगार मुस्काये...
*
पनघट खलिहान साथ,
कर-कुदाल-कलश हाथ.
सजनी-सिन्दूर सजा-
कब-कैसे सजन-माथ?
हिलमिल चाँदनी-धूप
धूप-छाँव बन गाये.
खिलखिलायीं पल भर हम  
हरसिंगार मुस्काये...
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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