भजन:
क्यों सो रहा?.....
संजीव 'सलिल'
*
क्यों सो रहा मुसाफिर, उठ भोर हो रही है.
चिड़िया चहक-चहक कर, नव आस बो रही है...
*
मंजिल है दूर तेरी, कोई नहीं ठिकाना.
गैरों को माने अपना, तू हो गया दीवाना..
आये घड़ी न वापिस जो व्यर्थ खो रही है...
*
आया है हाथ खाली, जायेगा हाथ खाली.
रिश्तों की माया नगरी, तूने यहाँ बसा ली..
जो बोझ जिस्म पर है, चुप रूह धो रही है...
*
दिन-सोया रात-जागा, सपने सुनहरे देखे.
नित खोट सबमें खोजे, नपने न अपने लेखे..
आँचल के दाग सारे, की नेकी धो रही है...
***
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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11 टिप्पणियां:
Mridul Kirti ✆ mridulkirti@gmail.com
17 अप्रैल (2 दिनों पहले)
मुझे
सौम्य सलिल जी सोई चेतना को जैसे जगा दिया हो इस भजन में वह चेतावनी है.
रिश्तों की माया नगरी तूने यहाँ बसा ली.---
कितना यथार्थ है, यहाँ कौन किसी का है, क्या हम किसी के हो सके हैं.
मृदुल
16 अप्रैल 2012
- pranavabharti@gmail.com
आ. सलिल जी
सुप्रभात की बेला में माँ सरस्वती के दर्शन हों तो दिन धन्य हो जाता है |
आपका अतीव धन्यवाद |सुंदर प्रार्थना हेतु साधुवाद |
[आए न घड़ी वापिस जो व्यर्थ खो रही है ] .........कटुसत्य आप मुझे मेरे मन की प्रार्थनाओं के सभागार में ले गये हैं |
अब सबको मेरी प्रार्थना पचानी पड़ेगी सादर
प्रणव भारती
Mahipal Singh Tomar ✆ mstsagar@gmail.com द्वारा yahoogroups.com ekavita
ॐ भजन एक प्रेरक प्रस्तुति ,
जो बोझ जिस्म पर है, चुप रूह ढो रही है...
नित खोट सबमें खोजे, नपने न अपने लेख
..वाह
आँचल के दाग सारे, की नेकी धो रही है... ?
हार्दिक बधाई ,
महिपाल
pratapsingh1971@gmail.com द्वारा yahoogroups.com ekavita
आदरणीय आचार्य जी
बहुत सुन्दर !
साधुवाद !
सादर
प्रताप
- chandawarkarsm@gmail.com
आदरणीय आचार्य जी,
बहुत सुन्दर भजन के लिए बधाई!
मुसाफ़िर को जगानेवाला एक बहुत पुराने फ़िल्मी भजन की पंक्ति याद आई:
"तेरी गठरीमें लागा चोर, मुसाफ़िर जाग ज़रा"
और यह भी
"तू भी आमादा-ए-सफ़र हो ’फ़िराक़’
काफ़िले हैं उस तरफ़ लगे जाने"
सस्नेह
सीताराम चंदावरकर
vijay2@comcast.net द्वारा yahoogroups.com ekavita
आ० सलिल जी,
मनोहारी भजन के लिए धन्यवाद ।
बधाई,
विजय
kusumsinha2000@yahoo.com ekavita
priy sanjiv ji
bahut sundar ati sundar dohe
kusum
drdeepti25@yahoo.co.in द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
आदरणीय संजीव जी,
कविता तो है ही हमेशा की तरह उत्तम लेकिन माँ सरस्वती का चित्र उससे भी उत्तम !
सादर,
दीप्ति
sn Sharma
To: kavyadhara@yahoogroups.com kavyadhara
आ० आचार्य जी,
शुभ शगुन ,
मेल खोलते ही
माँ शारदा का दर्शन
साथ में भजन |
दोहरा लाभ
आपकी लेखनी को नमन
सादर
कमल
- pranavabharti@gmail.com
आ. आचार्य जी ,
सुंदर भावपूर्ण चित्र हेतु
भावभीनी बधाई स्वीकारें |
शार्दुला जी वाला प्रश्न मेरे मस्तिष्क में भी था |
उसका मुझे भी उत्तर प्राप्त हो गया |
रास रचकर तन मन अंतर्मन ,
कहे अनकहे संत हो गया |...भौतिक यात्रा से आध्यात्मिक यात्रा का सुंदर चित्र !
नेह नर्मदा नहा ,झूम मंजिल को छू ले |....नेह -नर्मदा ....पावन चित्र
साधुवाद
सादर
प्रणव भारती
आदरणीय सलिल जी,
‘क्यों सो रहा’ से आपकी बुआ महादेवी जी की रचना ‘जाग तुझको दूर जाना’ याद आ गई। बधाई स्वीकारें।
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