मुक्तिका:
समय का शुक्रिया...
संजीव 'सलिल'
*
समय का शुक्रिया, नेकी के घर बदनामियाँ आयीं.
रहो आबाद तुम, हमको महज बरबादियाँ भायीं..
भुला नीवों को, कलशों का रहा है वक्त ध्वजवाहक.
दिया वनवास सीता को, अँगुलियाँ व्यर्थ दिखलायीं..
शहीदों ने खुदा से, सिर उठाकर प्रश्न यह पूछा:
कटाया हमने सिर, सत्ता ने क्यों गद्दारियाँ पायीं?
ये संसद सांसदों के सुख की खातिर काम करती है.
गरीबी को किया लांछित, अमीरी शान इठलायीं..
बहुत जरखेज है माटी, फसल उम्मीद की बोकर
पसीना सींच देखो, गर्दिशों ने मात फिर खायीं..
*******
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
समय का शुक्रिया...
संजीव 'सलिल'
*
समय का शुक्रिया, नेकी के घर बदनामियाँ आयीं.
रहो आबाद तुम, हमको महज बरबादियाँ भायीं..
भुला नीवों को, कलशों का रहा है वक्त ध्वजवाहक.
दिया वनवास सीता को, अँगुलियाँ व्यर्थ दिखलायीं..
शहीदों ने खुदा से, सिर उठाकर प्रश्न यह पूछा:
कटाया हमने सिर, सत्ता ने क्यों गद्दारियाँ पायीं?
ये संसद सांसदों के सुख की खातिर काम करती है.
गरीबी को किया लांछित, अमीरी शान इठलायीं..
बहुत जरखेज है माटी, फसल उम्मीद की बोकर
पसीना सींच देखो, गर्दिशों ने मात फिर खायीं..
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Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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4 टिप्पणियां:
sn Sharma ✆ ahutee@gmail.com द्वारा yahoogroups.com 14 अप्रैल 2012
kavyadhara
वह आचार्य जी वाह,
हर मुक्तिका दिल की गहराइयों को छूती वर्तमान व्यस्था पर पैना वार है | बहुत बहुत बधाई ! विशेष-
बहुत जरखेज है माटी, फसल उम्मीद की बोकर
पसीना सींच देखो, गर्दिशों ने मात फिर खायीं..
सादर
कमल
vijay2 ✆ vijay2@comcast.net द्वारा yahoogroups.com 14 अप्रैल 2012
kavyadhara
आ० ‘सलिल’ जी,
सदैव समान यह मुक्तिका भी अच्छी लगी ।
विशेषकर...
बहुत जरखेज है माटी, फसल उम्मीद की बोकर
पसीना सींच देखो, गर्दिशों ने मात फिर खायीं..
बधाई,
विजय
deepti gupta ✆ drdeepti25@yahoo. co.in द्वारा yahoogroups.com 14 अप्रैल 2012
kavyadhara
आदरणीय संजीव जी ,
अतिसुन्दर सृजन .......!
समय का शुक्रिया, नेकी के घर बदनामियाँ आयीं.
रहो आबाद तुम, हमको महज बरबादियाँ भायीं.. .............. बहुत खूब और भाव भीना लगा !
अभी कम शब्दों को ही अधिक समझिए .....काम बहुत हैं !
सादर,
दीप्ति
Pranava Bharti ✆ pranavabharti@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
आ.आचार्य जी,
सादर अभिवादन
"दिया वनवास सीता को ,अंगुलियाँ व्यर्थ दिखलाईं "
'बहुत जरखेज है माटी फसल उम्मीद की बोकर ,
पसीना सींच देखो ,गर्दिशों ने मात फिर खाई |"
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति !
बधाई स्वीकारें
प्रणव भारती
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