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शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

तेवरी: हुए प्यास से सब बेहाल. --संजीव 'सलिल'

तेवरी:

संजीव 'सलिल'


हुए प्यास से सब बेहाल.
सूखे कुएँ नदी सर ताल..

गौ माता को दिया निकाल.
श्वान रहे गोदी में पाल..

चमक-दमक ही हुई वरेण्य.
त्याज्य सादगी की है चाल..

शंकाएँ लीलें विश्वास.
नचा रहे नातों के व्याल..

कमियाँ दूर करेगा कौन?
बने बहाने हैं जब ढाल..

सुन न सके मौन कभी आप.
बजा रहे आज व्यर्थ गाल..

उत्तर मिलते नहीं 'सलिल'.
अनसुलझे नित नए सवाल..

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6 टिप्‍पणियां:

गिरीश बिल्लोरे 'मुकुल' … ने कहा…

aapke kafia kee ridam wah subhan allaah

स्वामी भविष्य वक्तानंद … ने कहा…

बच्चा कभी पधारो हमरे ब्लॉग पे

Udan Tashtari … ने कहा…

बढ़िया प्रवाहमय गीत!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' … ने कहा…

सुन्दर गीत!

निर्मला कपिला … ने कहा…

वाह!

सुन्दर गीत, बधाई सलिल जी को, नमन उनकी कलम को.

दिव्य नर्मदा divya narmada ने कहा…

नमन सभी को दे रहे, जो मुझको उत्साह.
गुण ग्राहकता को नमन, दिल से रही सराह..