कुल पेज दृश्य

सोमवार, 11 जनवरी 2010

मेघदूतम् हिन्दी पद्यानुवाद श्लोक ६८ से ७०

मेघदूतम् हिन्दी पद्यानुवाद
उत्तरमेघ

पद्यानुवादक प्रो. सी .बी. श्रीवास्तव "विदग्ध "


हस्ते लीलाकमलम अलके बालकुन्दानुविद्धं
नीता लोध्रप्रसवरजसा पाण्डुताम आनने श्रीः
चूडापाशे नवकुरवकं चारु कर्णे शिरीषं
सीमन्ते च त्वदुपगमजं यत्र नीपं वधूनाम॥६८॥
जहाँ सुन्दरी नारियाँ दामिनी सी
जहाँ के विविध चित्र ही इन्द्र धनु हैं
संगीत के हित मुरजताल जिनकी
कि गंभीर गर्जन तथा रव गहन हैं
उत्तुंग मणि रत्नमय भूमिवाले
जहाँ हैं भवन भव्य आमोदकारी
इन सम गुणों से सरल , हे जलद !
वे हैं सब भांति तव पूर्ण तुलनाधिकारी

यत्रोन्मत्तभ्रमरमुखराः पादपा नित्यपुष्पा
हंसश्रेणीरचितरशना नित्यपद्मा नलिन्यः
केकोत्कण्ठा भुवनशिखिनो नित्यभास्वत्कलापा
नित्यज्योत्स्नाः प्रहिततमोवृत्तिरम्याः प्रदोषाः॥६९॥

लिये हाथ लीला कमल औ" अलक में
सजे कुन्द के पुष्प की कान्त माला
जहाँ लोध्र के पुष्प की रज लगाकर
स्वमुख श्री प्रवर्धन निरत नित्य बाला
कुरबक कुसुम से जहाँ वेणि कवरी
तथा कर्ण सजती सिरस के सुमन से
सीमान्त शोभित कदम पुष्प से
जो प्रफुल्लित सखे ! तुम्हारे आगमन से

आनन्दोत्थं नयनसलिलम्यत्र नान्यैर निमित्तैर
नान्यस तापं कुसुमशरजाद इष्टसंयोगसाध्यात
नाप्य अन्यस्मात प्रणयकलहाद विप्रयोगोपपत्तिर
वित्तेशानां न च खलु वयो यौवनाद अन्यद अस्ति॥७०॥

जहाँ के प्रफुल्लित कुसुम वृक्ष गुंजित
भ्रमर मत्त की नित्य गुंजन मधुर से
जहाँ हासिनी नित्य नलिनी सुशोभित
सुहंसावली रूप रसना मुखर से
जहाँ गृहशिखी सजीले पंखवाले
हो उद्ग्रीव नित सुनाते कंज केका
जहाँ चन्द्र के हास से रूप रजनी
सदा खींचती मंजु आनंदरेखा

कोई टिप्पणी नहीं: