सामयिक दोहे:
संजीव 'सलिल'
यह सारा जग ही झूठा है, माया कहते संत.
सार नहीं इसमें तनिक, और नहीं कुछ तंत..
झूठ कहा मैंने जिसे, जग कहता है सत्य.
और जिसे सच मानता, जग को लगे असत्य..
जीवन का अभिषेक कर, मन में भर उत्साह.
पायेगा वह सभी तू, जिसकी होगी चाह..
झूठ कहेगा क्यों 'सलिल', सत्य न उसको ज्ञात?
जग का रचनाकार ही, अब तक है अज्ञात..
अलग-अलग अनुभव मिलें, तभी ज्ञात हो सत्य.
एक कोण से जो दिखे, रहे अधूरा सत्य..
जो मन चाहे वह कहें, भाई सखा या मित्र.
क्या संबोधन से कभी, बदला करता चित्र??
नेह सदा मन में पले, नाता ऐसा पाल.
नेह रहित नाता रखे, जो वह गुरु-घंटाल..
कभी कहें कुछ पंक्तियाँ, मिलना है संयोग.
नकल कहें सोचे बिना, कोई- है दुर्योग..
असल कहे या नक़ल जग, 'सलिल' न पड़ता फर्क.
कविता रचना धर्म है, मर्म न इसका तर्क..
लिखता निज सुख के लिए, नहीं दाम की चाह.
राम लिखाते जा रहे, नाम उन्हीं की वाह..
भाव बिम्ब रस शिल्प लय, पाँच तत्त्व ले साध.
तुक-बेतुक को भुलाकर, कविता बने अगाध..
छाँव-धूप तम-उजाला, रहते सदा अभिन्न.
सतुक-अतुक कविता 'सलिल', क्यों माने तू भिन्न?
सीधा-सादा कथन भी, हो सकता है काव्य.
गूढ़ तथ्य में भी 'सलिल', कविता है संभाव्य..
सम्प्रेषण साहित्य की, अपरिहार्य पहचान.
अन्य न जिसको समझता, वह कवि हो अनजान..
रस-निधि हो, रस-लीन हो, या हो तू रस-खान.
रसिक काव्य-श्रोता कहें, कवि रसज्ञ गुणवान..
गद्य-पद्य को भाव-रस, बिम्ब बनाते रम्य.
शिल्प और लय में रहे, अंतर नहीं अगम्य..
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http://divyanarmada.blogspot.com
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शनिवार, 9 जनवरी 2010
सामयिक दोहे: संजीव 'सलिल'
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2 टिप्पणियां:
सलिल जी,
सुन्दर आध्यात्मिक दोहे हैं,. बधाई.
मेरी समझ में निम्नांकित दोहे में जग की जगह 'तू अथवा वह ' अधिक उपयुक्त रहता.
"झूठ कहा मैंने जिसे, जग कहता है सत्य.
और जिसे सच मानता, जग को लगे असत्य."
क्योंकि जग तो मेरे जैसा ही होना चाहिए-
महेश चन्द्र द्विवेदी
"झूठ कहा मैंने जिसे, जग कहता है सत्य.
और जिसे सच मानता, जग को लगे असत्य."
'तू' से परमात्मा का आभास होता है, 'वह' से किसी गैर का. 'जग' परमात्मा की सृष्टि है जिसमें वह समाहित है. आप रूचि के अनुकूल परिवर्तन करें तो पहली पंक्ति में 'तू' के साथ दूसरी पंक्ति में 'तुझको' तथा पहली पंक्ति में 'वह' के साथ दूसरी पंक्ति में 'उसको' करना होगा, अन्यथा 'सर्वनाम दोष' होगा.
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