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शनिवार, 2 जनवरी 2010

गीतिका: तुमने कब चाहा दिल दरके? --संजीव वर्मा 'सलिल'

गीतिका

संजीव वर्मा 'सलिल'
*
तुमने कब चाहा दिल दरके?

हुए दिवाने जब दिल-दर के।

जिन पर हमने किया भरोसा

वे निकले सौदाई जर के..

राज अक्ल का नहीं यहाँ पर

ताज हुए हैं आशिक सर के।

नाम न चाहें काम करें चुप

वे ही जिंदा रहते मर के।

परवाजों को कौन नापता?

मुन्सिफ हैं सौदाई पर के।

चाँद सी सूरत घूँघट बादल

तृप्ति मिले जब आँचल सरके.

'सलिल' दर्द सह लेता हँसकर

सहन न होते अँसुआ ढरके।

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3 टिप्‍पणियां:

वाणी गीत ... ने कहा…

वाणी गीत ...
दर्द सहते हैं मुस्कुरा के ....
सहन नहीं अंसुआ ढरके ....

बहुत ही खूसूरत ग़ज़ल ...आभार ...!!

January 3, 2010 7:15 AM

राज भाटिय़ा … ने कहा…

बहुत सुंदर रचना.

धन्यवाद

ताऊ रामपुरिया … ने कहा…

बहुत खूबसूरत रचना, शुभकामनाएं.

रामराम.

३ जनवरी २०१०