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गुरुवार, 21 मई 2009

काव्य-किरण : दोहांजलि -अंबरीश श्रीवास्तव


माँ की महिमा


नैनन में है जल भरा, आँचल में आशीष

तुम सा दूजा नहि यहाँ , तुम्हें नवायें शीश


कंटक सा संसार है, कहीं न टिकता पांव

अपनापन मिलता नहीं , माँ के सिवा न ठांव


लोहू से सींचा हमें, काया तेरी देन

संस्कार अपने सब दिए, अद्भुत तेरा प्रेम


रातों को भी जागकर, हमें लिया है पाल

ऋण तेरा कैसे चुके, सोंचे तेरे लाल


स्वारथ है कोई नहीं , ना कोई व्यापार

माँ का अनुपम प्रेम है,. शीतल सुखद बयार


जननी को जो पूजता , जग पूजै है सोय

महिमा वर्णन कर सके, जग में दिखै न कोय


माँ तो जग का मूल है, माँ में बसता प्यार

मातृ-दिवस पर पूजता, तुझको सब संसार


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4 टिप्‍पणियां:

Urmi ने कहा…

बहुत बहुत शुक्रिया मेरे ब्लॉग पर आने के लिए! मेरे दूसरे ब्लोगों पर भी आपका स्वागत है!
आपका ब्लॉग बहुत ही बढ़िया लगा! बहुत ही सुंदर कविता लिखा है आपने!

mayank ने कहा…

bahut achchha

डा. साधना वर्मा ने कहा…

माँ की महिमा का कर पाया जग में कौन बखान...
सरस दोहे...

anchit nigam ने कहा…

achchhe lage.