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गुरुवार, 19 दिसंबर 2024

कृष्ण कांत चतुर्वेदी,

आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी जयंती पर 
दोहे 
*
'कृष्ण कांत' जिसके कहो, रहे न वह क्यों शांत।
आपाधापी जगत की, करे न उसको भ्रांत।।

'क्रिस्न-विलास' रुचे उसे, राधा जू का संग। 
'चंद्रा जी' का हाथ गह, लीला करे अभंग।। 

'पिबत भागवतम्' सलिल नित, गीता का गह मर्म।
'आगत का स्वागत करे', 'बृज गंधा' युग-धर्म।। 

हो तन्मय  'अनुवाक्' में, 'राधा भाव' विचार।
'वेदान्त तत्व' मूर्तित किए, मूल अर्थ अनुसार।। 

'जिज्ञासा' कर 'ब्रह्म' की,  सबको दिया जनाय। 
सिखा 'बुद्ध दर्शन' दिया, 'आवेदांत' पढ़ाय।। 

कर 'अनुशीलन परंपरा, भारतीय' रस घोल। 
'क्षण के साथ चला' सदा', जो वह है अनमोल।। 

 पद अनेक गर्वित हुए, नभ चुंबी कद देख। 
आसंदियाँ सराहतीं भाग्य, सरल छवि लेख।। 

ध्वनि विस्तारक यंत्र चुप, अपना भाग्य सराह।
पाया वाक्-प्रसाद जब, मति-गति-अर्थ अपार।। 

श्रोता बड़भागी रहे, सुन वक्ता तल्लीन। 
शब्द-ब्रह्म आराधते, सत्-शिव-सुंदर लीन।। 

रेवा जल व्याकुल हुआ, देख महाप्रस्थान।
जन्म-जन्म आ गोद में, पाना यश-सम्मान।। 

संस्कारधानी हुई धन्य, सुयश सुन नित्य। 
भूल नहीं सकती तुम्हें, पाई कीर्ति अनित्य।। 

'सलिल' सराहे भाग्य निज, पाया शुभ आशीष। 
अग्रज-पग-रज पा हुआ, धन्य सदय थी ईश।। 

भाभी श्री में है हमें, मूर्ति आपकी प्राप्त। 
सके सतत वात्सल्य मिल, वाचा शीतल आप्त।। 
१९.१२.२०२४, १६.१५ 
***   

जन्म- १९ दिसंबर १९३७, जबलपुर मध्य प्रदेश।
आत्मज- स्व. नाथूराम चौबे - स्व. रेवा बाई चौबे (दीक्षा पश्चात: निम्बार्क  शरण - राधा दासी)।
जीवन साथी- डॉ. चंद्रा चतुर्वेदी।
संप्रति- पूर्व निदेशक कालिदास अकादमी मध्य प्रदेश, पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष संस्कृत-पाली-प्राकृत विभाग रानी दुर्गावती विश्व विद्यालय जबलपुर।
प्रकाशित कृति - अथातो ब्रह्म जिज्ञासा, द्वैत वेदान्त तत्व समीक्षा, भारतीय परंपरा एवं अनुशीलन, आवेदान्त दर्शन की पीठिका, मध्य प्रदेश में बुद्ध दर्शन, क्रस्न-विलास, राधाभाव सूत्र, अनुवाक्, आगत का स्वागत तथा क्षण के साथ चलाचल।

आचार्य कृष्णकान्त चतुर्वेदी
संस्कारधनी जबलपुर में १९ दिसंबर १९३७ को जन्मे, भारतीय मनीषा के श्रेष्ठ प्रतिनिधि, विद्वता के पर्याय, सरलता के सागर, वाग्विदग्धता के शिखर आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी जी के व्यक्तित्व पर राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी की निम्न पंक्तियाँ सटीक बैठती हैं-
जितने कष्ट-कंटकों में है जिसका जीवन सुमन खिला
गौरव गंध उसे उतना ही यत्र-तत्र-सर्वत्र मिला।।
कालिदास अकादमी उज्जैन के निदेशक, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर में संस्कृत, पाली, प्रकृत विभाग के अध्यक्ष व् आचार्य पदों की गौरव वृद्धि कर चुके, भारत सरकार द्वारा शास्त्र-चूड़ामणि मनोनीत किये जा चुके, अखिल भारतीय प्राच्य विद्या परिषद् के सर्वाध्यक्ष निर्वाचित किये जा चुके, महामहिम राष्ट्रपति जी द्वारा प्राच्य विद्या के विशिष्ट विद्वान के रूप में सम्मानित, राजशेखर अकादमी के निदेशक आदि पदों की शोभा वृद्धि कर चुके आचार्य जी के मार्गदर्शन में ४० छात्रों को पीएच. डी. तथा २ छात्रों ने डी.लिट्. करने का सौभाग्य मिला है। राधा भाव सूत्र, आगत का स्वागत, अनुवाक, अथातो ब्रम्ह जिज्ञासा, वेदांत तत्व समीक्षा, बृज गंधा, पिबत भागवतम आदि अबहुमूल्य कृतियों की रचनाकर आचार्य जी ने भारती के वांग्मय कोष की वृद्धि की है। जगद्गुरु रामानंदाचार्य सम्मान, पद्मश्री श्रीधर वाकणकर सम्मान, अखिल भारतीय कला सम्मान, ज्योतिष रत्न सम्मान, विद्वत मार्तण्ड, विद्वत रत्न, सम्मान, स्वामी अखंडानंद सम्मान, युगतुलसी रामकिंकर सम्मान, ललित कला सम्मान अदि से सम्मानित किये जा चुके आचार्य श्री संस्कारधानी ही नहीं देश के गौरव पुत्र हैं। आप अफ्रीका, केन्या, आदि देशों में भारतीय वांग्मय व् संस्कृति की पताका फहरा चुके हैं। आपकी उपस्थिति व आशीष हमारा सौभाग्य है।
   

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