सलिल सृजन दिसंबर ३१
*
साल जाएगा
साल आएगा
क्या इंसान बदल पाएगा?
अगर नहीं तो केक काटकर
जला पटाखे, सुरा पानकर
इससे पिटकर, उससे पीटकर
क्या पाएगा?
.
नौ दिन पूज; शेष दिन शोषण
उसका जो जाये; दे पोषण।
अँगुली पकड़ काँध पर जिसके
बैठा; सेवा करी नहीं क्षण।
ऋण पुरखों का नहीं उतारा
कैसे अमन-चैन पाएगा?
साल जाएगा
साल आएगा
क्या इंसान बदल पाएगा?
.
जिसकी राखी सजी कलाई
उसको कहता हुई पराई।
गृह लक्ष्मी कह जिसको लाया
सेवा करे न; सिर्फ कराई।
भुला भाई को भाईचारा
किससे कैसे कब पाएगा?
साल जाएगा
साल आएगा
क्या इंसान बदल पाएगा?
.
जिनके सुत से ब्याह रचाया
उनके सपनों को बिखराया।
कुल मर्यादा नहीं निभाई
रिश्ता रिसता घाव बनाया।
कपड़ों जैसे बदले नाते
कोई किस तरह अपनाएगा?
साल जाएगा
साल आएगा
क्या इंसान बदल पाएगा?
.
धरा-नदी को कहता मैया
छीन रहा उनसे ही छैया।
भुला देश-हित स्वार्थ साधता
कैसे खुश हो राम रमैया?
जोड़-जोड़ कर मरा जा रहा
काम न कुछ तेरे आएगा
साल जाएगा
साल आएगा
क्या इंसान बदल पाएगा?
३१-१२-२०२४
०००
सॉनेट
कल-आज-कल
*
जाने वाला राह बनाता आने वाला चलता है,
पलता है सपना आँखों में तब ही जब हम सोए हों,
फसल काटता केवल वह ही जिसने बीजे बोए हों,
उगता सूरज तब ही जब वह नित संझा में ढलता है।
वह न पनपता जिसको सुख-सौभाग्य अन्य का खलता है,
मुस्कानों की कीमत जानें केवल वे जो रोए हों,
अपनापन पाते हैं वे जो अपनेपन में खोए हों,
लोहा हो फौलाद आग में तप जब कभी पिघलता है।
कल कल करता निर्झर बहता कल पाता मन बैठ निकट,
किलकिल करता जो हो बेकल उसमें सचमुच नहीं अकल,
दास न होना कल का मानव कल-पुर्जों का स्वामी बन।
ठोकर मार न कंकर को तू शंकर उससे हुए प्रगट,
काट न जंगल खोद न पर्वत मिटा न नदी बचा ले जल,
कल से कल को जोड़ आज तू होकर नम्र न नाहक तन।।
३१.१२.२०२३
***
भर्तृहरि का कथन है --
'को लाभो गुणिसंगमः' अर्थात् ( लाभ क्या है? गुणियों का साथ) ।
अंतर्जाल ने मुझे इस लाभ से परिचित करवाया है।
आशा करता हूँ नये साल में मैं इससे और भी ज्यादा लाभान्वित हो सकूँगा।
नये साल में हम सभी एक दूसरे के विचारों लाभ प्राप्त कर सके इसी आशा के साथ इस पुराने साल को हार्दिक विदाई । डॉ. राधाकृष्णन के अनुसार- 'सब से अधिक आनंद इस भावना में है कि हमने मानवता की प्रगति में कुछ योगदान दिया है। भले ही वह कितना कम, यहाँ तक कि बिल्कुल ही तुच्छ क्यों न हो?'
अपने रचे को इस कसौटी पर परखें और लिखें, लिखते रहें।
नव वर्ष मंगलमय हो ।
***
सॉनेट
राग दरबारी
*
मेघ आच्छादित गगन है, रवि न दिखता खोज लाएँ।
लॉकडाउन कर चुनावी भीड़ बन हम गर्व करते।
खोद कब्रें, हड्डियों को अस्थियाँ कह मार मरते।।
राग दरबारी निरंतर सुनाकर नव वर्ष लाएँ।।
आम्रपाली के पुजारी, आपका बंटी सिरजते।
एक था चंदर सुधा को विवाहे, फिर छोड़ जाए।
थाम सत्ता सुंदरी की बाँह, जाने किसे ध्याए?
अब न दिव्या रही भव्या, चित्रलेखा सँग थिरकते।।
लक्ष्य मुर्दे उखाड़ें परिधान पहना नाम बदलें।
दुश्मनों के हाथ खाकर मात, नव उपलब्धि कह लें।।
असहमत को खोज कुचलें, देख दिल अपनों के दहलें।।
प्रदूषित कर हर नदी, बन अंधश्रद्धा सुमन बह लें।।
जड़ें खोदें रात-दिन, जड़मति न बोलें, अनय सह लें।।
अधर क्या कहते न सुनकर, लाठियाँ को हाथ धर लें।।
१-१-२०२२
***
गीत
काल चक्र का
महाकाल के भक्त
करो अगवानी
.
तपूँ , जड़ाऊँ या बरसूँ
नाखुश होंगे बहुतेरे
शोर-शांति
चाहो ना चाहो
तुम्हें रहेंगे घेरे
तुम लड़कर जय वरना
चाहे सूखा हो या पानी
बहा पसीना
मेहनत कर
करना मेरी अगवानी
.
चलो, गिरो उठ बढ़ो
शूल कितने ही आँख तरेरे
बाधा दें या
रहें सहायक
दिन-निशि, साँझ-सवेरे
कदम-हाथ गर रहे साथ
कर लेंगे धरती धानी
कलम उठाकर
करें शब्द के भक्त
मेरी अगवानी
.
शिकवे गिले शिकायत
कर हल होती नहीं समस्या
सतत साधना
से ही होती
हरदम पूर्ण तपस्या
स्वार्थ तजो, सर्वार्थ साधने
बोलो मीठी बानी
फिर जेपी-अन्ना
बनकर तुम करो
मेरी अगवानी
...
गीत
सूरज उगाएँ
*
चलो! हम सूरज उगाएँ...
सघन तम से क्यों डरें हम?
भीत होकर क्यों मरें हम?
मरुस्थल भी जी उठेंगे-
हरितिमा मिल हम उगाएँ....
विमल जल की सुनें कल-कल।
भुला दें स्वार्थों की किल-किल।
सत्य-शिव-सुंदर रचें हम-
सभी सब के काम आएँ...
लाए क्या?, ले जाएँगे क्या?,
किसी के मन भाएँगे क्या?
सोच यह जीवन जिएँ हम।
हाथ-हाथों से मिलाएँ...
आत्म में विश्वात्म देखें।
हर जगह परमात्म लेखें।
छिपा है कंकर में शंकर।
देख हम मस्तक नवाएँ...
तिमिर में दीपक बनेंगे।
शून्य में भी सुनेंगे।
नाद अनहद गूँजता जो
सुन 'सलिल' सबको सुनाएँ...
***
नवगीत:
नए साल
मत हिचक
बता दे क्या होगा?
.
सियासती गुटबाजी
क्या रंग लाएगी?
'देश एक' की नीति
कभी फल पाएगी?
धारा तीन सौ सत्तर
बनी रहेगी क्या?
गई हटाई
तो क्या
घटनाक्रम होगा?
.
काशी, मथुरा, अवध
विवाद मिटेंगे क्या?
नक्सलवादी
तज विद्रोह
हटेंगे क्या?
पूर्वांचल में
अमन-चैन का
क्या होगा?
.
धर्म भाव
कर्तव्य कभी
बन पाएगा?
मानवता की
मानव जय
गुंजाएगा?
मंगल छू
भू के मंगल
का क्या होगा?
***
नव वर्ष हाइकु
*
हो नया हर्ष
हर नए दिन में
नया उत्कर्ष
.
प्राची के गाल
रवि करता लाल
है नया साल
.
हाइकु लिखो
हर दिवस एक
इरादा नेक
३१-१२-२०१७
***
नवगीत
*
पुनर्जन्म हर सुबह हो रहा
पुनर्मरण हर रात।
चलो बैठ पल दो पल कर लें
मीत! प्रीत की बात।
*
गौरैयों ने खोल लिए पर
नापें गगन विशाल।
बिजली गिरी बाज पर
उसका जीना हुआ मुहाल।
हमलावर हो लगा रहा है
लुक-छिपकर नित घात
पुनर्जन्म हर सुबह हो रहा
पुनर्मरण हर रात।
*
आ बुहार लें मन की बाखर
कहें न ऊँचे मोल।
तनिक झाँक लें अंतर्मन में
निज करनी लें तोल।
दोष दूसरों के मत देखें
खुद उजले हों तात!
पुनर्जन्म हर सुबह हो रहा
पुनर्मरण हर रात।
*
स्वेद-'सलिल' में करें स्नान नित
पूजें श्रम का दैव।
निर्माणों से ध्वंसों को दें
मिलकर मात सदैव।
भूखे को दें पहले, फिर हम
खाएँ रोटी-भात।
पुनर्जन्म हर सुबह हो रहा
पुनर्मरण हर रात।
*
साक्षी समय न हमने मानी
आतंकों से हार।
जैसे को तैसा लौटाएँ
सरहद पर इस बार।
नहीं बात कर बात मानता
जो खाए वह लात।
पुनर्जन्म हर सुबह हो रहा
पुनर्मरण हर रात।
*
लोकतंत्र में लोभतंत्र क्यों
खुद से करें सवाल?
कोशिश कर उत्तर भी खोजें
दें न हँसी में टाल।
रात रहे कितनी भी काली
उसके बाद प्रभात।
पुनर्जन्म हर सुबह हो रहा
पुनर्मरण हर रात।
*****
२४-९-२०१६
गीत
देश हमारा है
सरकार हमारी है,
क्यों न निभाई
हमने जिम्मेदारी है?
*
नियम व्यवस्था का
पालन हम नहीं करें,
दोष गैर पर-
निज, दोषों का नहीं धरें।
खुद क्या बेहतर
कर सकते हैं, वही करें।
सोचें त्रुटियाँ कितनी
कहाँ सुधारी हैं?
देश हमारा है
सरकार हमारी है,
क्यों न निभाई
हमने जिम्मेदारी है?
*
भाँग कुएँ में
घोल, हुए मदहोश सभी,
किसके मन में
किसके प्रति आक्रोश नहीं?
खोज-थके, हारे
पाया सन्तोष नहीं।
फ़र्ज़ भुला, हक़ चाहें
मति गई मारी है।
देश हमारा है
सरकार हमारी है,
क्यों न निभाई
हमने जिम्मेदारी है?
*
एक अँगुली जब
तुम को मैंने दिखलाई।
तीन अंगुलियाँ उठीं
आप पर, शरमाईं
मति न दोष खुद के देखे
थी भरमाई।
सोचें क्या-कब
हमने दशा सुधारी है?
देश हमारा है
सरकार हमारी है,
क्यों न निभाई
हमने जिम्मेदारी है?
*
जैसा भी है
तन्त्र, हमारा अपना है।
यह भी सच है
बेमानी हर नपना है।
अँधा न्याय-प्रशासन,
सत्य न तकना है।
कद्र न उसकी
जिसमें कुछ खुद्दारी है।
देश हमारा है
सरकार हमारी है,
क्यों न निभाई
हमने जिम्मेदारी है?
*
कौन सुधारे किसको?
आप सुधर जाएँ।
देखें अपनी कमी,
न केवल दिखलायें।
स्वार्थ भुला,
सर्वार्थों की जय-जय गायें।
अपनी माटी
सारे जग से न्यारी है।
देश हमारा है
सरकार हमारी है,
क्यों न निभायी
हमने जिम्मेदारी है?
*
११-८-२०१६
***
गीत
कौन?
*
कौन रचेगा राम-कहानी?
कौन कहेगा कृष्ण-कथाएँ??
खुशियों की खेती अनसिंचित,
सिंचित खरपतवार व्यथाएँ।
*
खेत
कारखाने-कॉलोनी
बनकर, बिना मौत मरते हैं।
असुर हुए इंसान,
न दाना-पानी खा,
दौलत चरते हैं।
वन भेजी जाती सीताएँ,
मन्दिर पुजतीं शूर्पणखाएँ।
कौन रचेगा राम-कहानी?
कौन कहेगा कृष्ण-कथाएँ??
*
गौरैयों की देखभाल कर
मिली बाज को जिम्मेदारी।
अय्यारी का पाठ रटाती,
पैठ मदरसों में बटमारी।
एसिड की शिकार राधाएँ
कंस जाँच आयोग बिठाएँ।
कौन रचेगा राम-कहानी?
कौन कहेगा कृष्ण-कथाएँ??
*
रिद्धि-सिद्धि, हरि करें न शिक़वा,
लछमी पूजती है गणेश सँग।
'ऑनर किलिंग' कर रहे दद्दू
मूँछ ऐंठकर, जमा रहे रंग।
ठगते मोह-मान-मायाएँ
घर-घर कुरुक्षेत्र-गाथाएँ।
कौन रचेगा राम-कहानी?
कौन कहेगा कृष्ण-कथाएँ??
*
हर कर्तव्य तुझे करना है,
हर अधिकार मुझे वरना है।
माँग भरो, हर माँग पूर्ण कर
वरना रपट मुझे करना है।
देह मात्र होतीं वनिताएँ
घर को होटल मात्र बनाएँ।
कौन रचेगा राम-कहानी?
कौन कहेगा कृष्ण-कथाएँ??
*
दोष न देखें दल के अंदर,
और न गुण दिखते दल-बाहर।
तोड़ रहे कानून बना, सांसद,
संसद मंडी-जलसा घर।
बस में हो तो साँसों पर भी
सरकारें अब टैक्स लगाएँ।
कौन रचेगा राम-कहानी?
कौन कहेगा कृष्ण-कथाएँ??
९-८-२०१६
गोरखपुर दंत चिकित्सालय जबलपुर
***
गीत
कौन हैं हम?
**
कौन हैं हम?
देह नश्वर,
या कि हैं आत्मा चिरन्तन??
*
स्नेह सलिला नर्मदा हैं।
सत्य-रक्षक वर्मदा हैं।
कोई माने या न माने
श्वास सारी धर्मदा हैं।
जान या
मत जान लेकिन
मित्र है साहस-प्रभंजन।
कौन हैं हम?
देह नश्वर,
या कि हैं आत्मा चिरन्तन??
*
सभ्यता के सिंधु हैं हम,
भले लघुतम बिंदु हैं हम।
गरल धारे कण्ठ में पर
शीश अमृत-बिंदु हैं हम।
अमरकंटक-
सतपुड़ा हम,
विंध्य हैं सह हर विखण्डन।
कौन हैं हम?
देह नश्वर,
या कि हैं आत्मा चिरन्तन??
*
ब्रम्हपुत्रा की लहर हैं,
गंग-यमुना की भँवर हैं।
गोमती-सरयू-सरस्वति
अवध-ब्रज की रज-डगर हैं।
बेतवा, शिव-
नाथ, ताप्ती,
हमीं क्षिप्रा, शिव निरंजन।
कौन हैं हम?
देह नश्वर,
या कि हैं आत्मा चिरन्तन??
*
तुंगभद्रा पतित पावन,
कृष्णा-कावेरी सुहावन।
सुनो साबरमती हैं हम,
सोन-कोसी-हिरन भावन।
व्यास-झेलम,
लूनी-सतलज
हमीं हैं गण्डक सुपावन।
कौन हैं हम?
देह नश्वर,
या कि हैं आत्मा चिरन्तन??
*
मेघ बरसे भरी गागर,
करी खाली पहुँच सागर।
शारदा, चितवन किनारे-
नागरी लिखते सुनागर।
हमीं पेनर
चारु चंबल
घाटियाँ हम, शिखर- गिरिवन
कौन हैं हम?
देह नश्वर,
या कि हैं आत्मा चिरन्तन??
१०-९-२०१६
***
नवगीत
*
सिया हरण को देख रहे हैं
आँखें फाड़ लोग अनगिन।
द्रुपद सुता के चीरहरण सम
घटनाएँ होतीं हर दिन।
*
'गिरि गोपाद्रि' न नाम रहा क्यों?
'सुलेमान टापू' क्यों है?
'हरि पर्वत' का 'कोह महाजन'
नाम किया किसने क्यों है?
नाम 'अनंतनाग' को क्यों हम
अब 'इस्लामाबाद' कहें?
घर में घुस परदेसी मारें
हम ज़िल्लत सह आप दहें?
बजा रहे हैं बीन सपेरे
राजनीति नाचे तिक-धिन
द्रुपद सुता के चीरहरण सम
घटनाएँ होतीं हर दिन।
*
हम सबका 'श्रीनगर' दुलारा
क्यों हो शहरे-ख़ास कहो?
'मुख्य चौक' को 'चौक मदीना'
कहने से सब दूर रहो
नाम 'उमा नगरी' है जिसका
क्यों हो 'शेखपुरा' वह अब?
'नदी किशन गंगा' को 'दरिया-
नीलम' कह मत करो जिबह
प्यार न जिनको है भारत से
पकड़ो-मारो अब गईं-गईं
द्रुपद सुता के चीरहरण सम
घटनाएँ होतीं हर दिन।
*
पण्डित वापिस जाएँ बसाए
स्वर्ग बनें फिर से कश्मीर
दहशतगर्द नहीं बच पाएं
कायम कर दो नई नज़ीर
सेना को आज़ादी दे दो
आज नया इतिहास बने
बंगला देश जाए दोहराया
रावलपिंडी समर ठने
हँस बलूच-पख्तून संग
सिंधी आज़ाद रहें हर दिन
द्रुपद सुता के चीरहरण सम
घटनाएँ होतीं हर दिन।
(कश्मीर में हिन्दू नामों को बदलकर योजनाबद्ध तरीके से मुस्लिम नाम रखे जानेके विरोध में)
***
गीत
*
नए साल!
आजा कतार में
आगे मत जा।
*
देश दिनों से खड़ा हुआ है,
जो जैसा है अड़ा हुआ है,
किसे फ़िक्र जनहित का पेड़ा-
बसा रहा है, सड़ा हुआ है।
चचा-भतीजा ताल ठोंकते,
पिता-पुत्र ज्यों श्वान भौंकते,
कोई काट न ले तुझको भी-
इसीलिए
कहता हूँ-
रुक जा।
नए साल!
आजा कतार में
आगे मत जा।
*
वादे जुमले बन जाते हैं,
घपले सारे धुल जाते हैं,
लोकतंत्र के मूल्य स्वार्थ की-
दीमक खाती, घुन जाते हैं।
मौनी बाबा बोल रहे हैं
पप्पू जहँ-तहँ डोल रहे हैं
गाल बजाते जब-तब लालू
मत टकराना
बच जा झुक जा।
नए साल!
आजा कतार में
आगे मत जा।
*
एक आदमी एक न पाता,
दूजा लाख-करोड़ जुटाता,
मार रही मरते को दुनिया-
पिटता रोये, नहीं सुहाता।
हुई देर, अंधेर यहाँ है,
रही अनसुनी टेर यहाँ है,
शुद्ध दलाली, न्याय कहाँ है?
जलने से
पहले मत
बुझ जा।
नए साल!
आजा कतार में
***
नवगीत
समय वृक्ष है
*
समय वृक्ष है
सूखा पत्ता एक झरेगा
आँखें मूँदे.
नव पल्लव तब
एक उगेगा
आँखे खोले.
*
कहो अशुभ या
शुभ बोलो
कुछ फर्क नहीं है.
चिरजीवी होने का
कोई अर्क नहीं है.
कितने हुए?
होएँगे कितने?
कौन बताये?
किसका कितना वजन?
तराजू कोई न तोले.
ठोस दिख रहे
लेकिन हैं
भीतर से पोले.
नव पल्लव
किस तरह उगेगा
आँखें खोले?
*
वाम-अवाम
न एक साथ
मिल रह सकते हैं.
काम-अकाम
न एक साथ
खिल-दह सकते हैं.
पूरब-पश्चिम
उत्तर-दक्षिण
ऊपर-नीचे
कर परिक्रमा
नव संकल्प
अमिय नित घोले.
श्रेष्ठ वही जो
श्रम-सीकर की
जय-जय बोले.
बिन प्रयास
किस तरह कर्मफल
आँखें खोले?
*
जाग,
छेड़ दे, राग नया
चुप से क्या हासिल?
आग
न बुझने देना
तू मत होना गाफिल.
आते-जाते रहें
साल-दर-साल
नए कुछ.
कौन जानता
समय-चक्र
दे हिम या शोले ?
नोट बंद हों या जारी
नव आशा बो ले.
उसे दिखेगी उषा
जाग जो
आँखें खोले
३१-१२-२०१६
***
गीत
साल निराला हो
*
बहुत हो चुके
होएँगे भी
पर यह साल निराला हो
*
सुख पीड़ा के आँसू पोंछे
हर्ष दर्द से गले मिले
जिनसे शिकवे रहे उम्र भर
उन्हें न तिल भर रहें गिले
मुखर हो सकें वही वैखरी
जिसके लब थे रहे सिले
जिनके पद तल
सत्ता उनके
उर में कंठी माला हो
बहुत हो चुके
होएँगे भी
पर यह साल निराला हो
*
पग-ठोकर में रहे मित्रता
काँटा साझा साखी हो
शाख-गगन के बीच सेतु बन
भोर-साँझ नव पाखी हो
शासक और विपक्षी के कर
संसद में अब राखी हो
अबला सबला बने
अनय जब मिले
आँख में ज्वाला हो
बहुत हो चुके
होएँगे भी
पर यह साल निराला हो
*
मानक तोड़ पुराने नव रच
जो कह चुके, न वह कह कवि बच
बाँध न रचना को नियमों में
दिल की, मन की बातें कह सच
नचा समय को हँस छिन्गुली पर
रे सत्ता! जनमत सुन कर नच
समता-सुरा
पिलानेवाली
बाला हो, मधुशाला हो
बहुत हो चुके
होएँगे भी
पर यह साल निराला हो
***
काम न काज
*
काम न काज
जुबानी खर्चा
नये वर्ष का कोरा पर्चा
*
कल सा सूरज उगे आज भी
झूठा सच को ठगे आज भी
सरहद पर गोलीबारी है
वक्ष रक्त से सने आज भी
किन्तु सियासत कहे करेंगे
अब हम प्रेम
भाव की अर्चा
*
अपना खून खून है भैया
औरों का पानी रे दैया!
दल दलबंदी के मारे हैं
डूबे लोकतंत्र की नैया
लिये ले रहा जान प्रशासन
संसद करती
केवल चर्चा
*
मत रोओ, तस्वीर बदल दो
पैर तले दुःख-पीर मसल दो
कृत्रिम संवेदन नेता के
लौटा, थोड़ी सीख असल दो
सरकारों पर निर्भर मत हो
पायें आम से
खास अनर्चा
***
लघु कथा -
आदमी जिंदा है
*
साहित्यिक आयोजन में वक्ता गण साहित्य की प्रासंगिकता पर चिंतन कम और चिंता अधिक व्यक्त कर रहे थे। अधिकांश चाहते थे कि सरकार साहित्यकारों को आर्थिक सहयोग दे क्योंकि साहित्य बिकता नहीं, उसका असर नहीं होता।
भोजन काल में मैं एक वरिष्ठ साहित्यकार से भेंट करने उनके निवास पर जा ही रहा था कि हरयाणा से पधारे अन्य साहित्यकार भी साथ हो लिये। राह में उन्हें आप बीती बताई- 'कई वर्ष पहले व्यापार में लगातार घाटे से परेशं होकर मैंने आत्महत्या का निर्णय लिया और रेल स्टेशन पहुँच गया, रेलगाड़ी एक घंटे विलंब से थी। मरता क्या न करता प्लेटफ़ॉर्म पर टहलने लगा। वहां गीताप्रेस गोरखपुर का पुस्तक विक्रय केंद्र खुला देख तो समय बिताने के लिये एक किताब खरीद कर पढ़ने लगा। किताब में एक दृष्टान्त को पढ़कर न जाने क्या हुआ, वापिस घर आ गया। फिर कोशिश की और सफलता की सीढ़ियाँ चढ़कर आज सुखी हूँ। व्यापार बेटों को सौंप कर साहित्य रचता हूँ। शायद इसे पढ़कर कल कोई और मौत के दरवाजे से लौट सके। भोजन छोड़कर आपको आते देख रुक न सका, आप जिनसे मिलाने जा रहे हैं, उन्हीं की पुस्तक ने मुझे नवजीवन दिया।
साहित्यिक सत्र की चर्चा से हो रही खिन्नता यह सुनते ही दूर हो गयी। प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता? सत्य सामने था कि साहित्य का असर आज भी बरकरार है, इसीलिये आदमी जिंदा है।
***
नवगीत
काम न काज
*
काम न काज
जुबानी खर्चा
नये वर्ष का कोरा पर्चा
*
कल सा सूरज उगे आज भी
झूठा सच को ठगे आज भी
सरहद पर गोलीबारी है
वक्ष रक्त से सने आज भी
किन्तु सियासत कहे करेंगे
अब हम प्रेम
भाव की अर्चा
*
अपना खून खून है भैया
औरों का पानी रे दैया!
दल दलबंदी के मारे हैं
डूबे लोकतंत्र की नैया
लिये ले रहा जान प्रशासन
संसद करती
केवल चर्चा
*
मत रोओ, तस्वीर बदल दो
पैर तले दुःख-पीर मसल दो
कृत्रिम संवेदन नेता के
लौटा, थोड़ी सीख असल दो
सरकारों पर निर्भर मत हो
पायें आम से
खास अनर्चा
३१-१२-२०१५
***
गीत
चलो हम सूरज उगायें
आचार्य संजीव 'सलिल'
चलो! हम सूरज उगायें...
सघन तम से क्यों डरें हम?
भीत होकर क्यों मरें हम?
मरुस्थल भी जी उठेंगे-
हरितिमा मिल हम उगायें....
विमल जल की सुनें कल-कल।
भुला दें स्वार्थों की किल-किल।
सत्य-शिव-सुंदर रचें हम-
सभी सब के काम आयें...
लाये क्या?, ले जायेंगे क्या?,
किसी के मन भाएंगे क्या?
सोच यह जीवन जियें हम।
हाथ-हाथों से मिलायें...
आत्म में विश्वात्म देखें।
हर जगह परमात्म लेखें।
छिपा है कंकर में शंकर।
देख हम मस्तक नवायें...
तिमिर में दीपक बनेंगे।
शून्य में भी सुनेंगे।
नाद अनहद गूँजता जो
सुन 'सलिल' सबको सुनायें...
***
नवगीत:
.
कुण्डी खटकी
उठ खोल द्वार
है नया साल
कर द्वारचार
.
छोडो खटिया
कोशिश बिटिया
थोड़ा तो खुद को
लो सँवार
.
श्रम साला
करता अगवानी
मुस्का चहरे पर
ला निखार
.
पग द्वय बाबुल
मंज़िल मैया
देते आशिष
पल-पल हजार
***
नवगीत:
नए साल
मत हिचक
बता दे क्या होगा?
.
सियासती गुटबाजी
क्या रंग लाएगी?
'देश एक' की नीति
कभी फल पायेगी?
धारा तीन सौ सत्तर
बनी रहेगी क्या?
गयी हटायी
तो क्या
घटनाक्रम होगा?
.
काशी, मथुरा, अवध
विवाद मिटेंगे क्या?
नक्सलवादी
तज विद्रोह
हटेंगे क्या?
पूर्वांचल में
अमन-चैन का
क्या होगा?
.
धर्म भाव
कर्तव्य कभी
बन पायेगा?
मानवता की
मानव जय
गुंजायेगा?
मंगल छू
भू के मंगल
का क्या होगा?
*
***
दोहा सलिला :
भवन माहात्म्य
*
[इंस्टिट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स, लोकल सेंटर जबलपुर द्वारा गगनचुम्बी भवन (हाई राइज बिल्डिंग) पर १०-११ अगस्त २०१३ को आयोजित अखिल भारतीय संगोष्ठी की स्मारिका में प्रकाशित कुछ दोहे।]
*
भवन मनुज की सभ्यता, ईश्वर का वरदान।
रहना चाहें भवन में, भू पर आ भगवान।१।
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भवन बिना हो जिंदगी, आवारा-असहाय।
अपने सपने ज्यों 'सलिल', हों अनाथ-निरुपाय।२।
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मन से मन जोड़े भवन, दो हों मिलकर एक।
सब सपने साकार हों, खुशियाँ मिलें अनेक।३।
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भवन बचाते ज़िन्दगी, सड़क जोड़ती देश।
पुल बिछुडों को मिलाते, तरु दें वायु हमेश।४।
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राष्ट्रीय संपत्ति पुल, सड़क इमारत वृक्ष।
बना करें रक्षा सदा, अभियंतागण दक्ष।५।
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भवन सड़क पुल रच बना, आदम जब इंसान।
करें देव-दानव तभी, मानव का गुणगान।६।
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कंकर को शंकर करें, अभियंता दिन-रात।
तभी तिमिर का अंत हो, उगे नवल प्रभात७।
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भवन सड़क पुल से बने, देश सुखी संपन्न।
भवन सेतु पथ के बिना, होता देश विपन्न।८।
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इमारतों की सुदृढ़ता, फूंके उनमें जान।
देश सुखी-संपन्न हो, बढ़े विश्व में शान।९।
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भारत का नव तीर्थ है, हर सुदृढ़ निर्माण।
स्वेद परिश्रम फूँकता, निर्माणों में प्राण।१०।
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अभियंता तकनीक से, करते नव निर्माण।
होता है जीवंत तब, बिना प्राण पाषाण।११।
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भवन सड़क पुल ही रखें, राष्ट्र-प्रगति की नींव।
सेतु बना- तब पा सके, सीता करुणासींव।१२।
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करे इमारत को सुदृढ़, शिल्प-ज्ञान-तकनीक।
लगन-परिश्रम से बने, बीहड़ में भी लीक।१३।
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करें कल्पना शून्य में, पहले फिर साकार।
आंकें रूप अरूप में, यंत्री दे आकार।१४।
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सिर्फ लक्ष्य पर ही रखें, हर पल अपनी दृष्टि।
अभियंता-मजदूर मिल, रचें नयी नित सृष्टि।१५।
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सडक देश की धड़कनें, भवन ह्रदय पुल पैर।
वृक्ष श्वास-प्रश्वास दें, कर जीवन निर्वैर।१६।
*
भवन सेतु पथ से मिले, जीवन में सुख-चैन।
इनकी रक्षा कीजिए, सब मिलकर दिन-रैन।१७।
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काँच न तोड़ें भवन के, मत खुरचें दीवार।
याद रखें हैं भवन ही, जीवन के आगार।१८।
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भवन न गन्दा हो 'सलिल', सब मिल रखें खयाल।
कचरा तुरत हटाइए, गर दे कोई डाल।१९।
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भवनों के चहुँ और हों, ऊँची वृक्ष-कतार।
शुद्ध वायु आरोग्य दे, पायें ख़ुशी अपार।२०।
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कंकर से शंकर गढ़े, शिल्प ज्ञान तकनीक।
भवन गगनचुम्बी बनें, गढ़ सुखप्रद नव लीक।२१।
*
वहीं गढ़ें अट्टालिका जहाँ भूमि मजबूत।
जन-जीवन हो सुरक्षित, खुशियाँ मिलें अकूत।२२।
*
ऊँचे भवनों में रखें, ऊँचा 'सलिल' चरित्र।
रहें प्रकृति के मित्र बन, जीवन रहे पवित्र।२३।
*
रूपांकन हो भवन का, प्रकृति के अनुसार।
अनुकूलन हो ताप का, मौसम के अनुसार।२४।
*
वायु-प्रवाह बना रहे, ऊर्जा पायें प्राण।
भवन-वास्तु शुभ कर सके, मानव को सम्प्राण।२५।
***
चित्रगुप्त वंदना:
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
हे चित्रगुप्त भगवान आपकी जय-जय
हे परमेश्वर मतिमान आपकी जय-जय
हे अक्षर अजर अमर अविनाशी अक्षय
हे अजित अमित गुणवान आपकी जय-जय
हे तमहर शुभकर विधि-हरि-हर के स्वामी
हे आत्मा-प्राण निधान आपकी जय-जय
हे चारु ललित शालीन सौम्य शुचि सुंदर
हे अविकारी संप्राण आपकी जय-जय
हे चिंतन मनन सृजन रचना वरदानी
हे सृजनधर्मिता-खान आपकी जय-जय
बेटे को कहती बाप बाप का दुनिया
विधि-पिता ब्रम्ह संतान आपकी जय-जय
विधि-हरि-हर को प्रगटाकर, विधि से प्रगटे
दिन संध्या निशा विहान आपकी जय-जय
सत-शिव-सुंदर सत-चित-आनंद हो देवा
श्री क्ली ह्री कीर्तिवितान आपकी जय-जय
तुम कारण-कार्य तुम्हीं परिणाम अनामी
हे शून्य सनातन गान आपकी जय-जय
सब कुछ तुमसे सब कुछ तुममें अविनाशी
हे कण-कण के भगवान आपकी जय-जय
हे काया-माया-छाया-पति परमेश्वर
हे सृष्टि-सृजन अभियान आपकी जय-जय
३१-१२-२०१४
***
नवगीत:
.
बहुत-बहुत आभार तुम्हारा
ओ जाते मेहमान!
.
पल-पल तुमने
साथ निभाया
कभी रुलाया
कभी हँसाया
फिसल गिरे, आ तुरत उठाया
पीठ ठोंक
उत्साह बढ़ाया
दूर किया हँस कष्ट हमारा
मुरझाते मेहमान
.
भूल न तुमको
पायेंगे हम
गीत तुम्हारे
गायेंगे हम
सच्ची बोलो कभी तुम्हें भी
याद तनिक क्या
आयेंगे हम?
याद मधुर बन, बनो सहारा
मुस्काते मेहमान
.
तुम समिधा हो
काल यज्ञ की
तुम ही थाती
हो भविष्य की
तुमसे लेकर सतत प्रेरणा
मन:स्थिति गढ़
हम हविष्य की
'सलिल' करेंगे नहीं किनारा
मनभाते मेहमान
३१-१२-२०१४
***
हाइकु गीत:
रूप अपना
*
रूप अपना / सराहती रही है / रूपसी आप
किसे बताये / प्रिय के नयनों में / गयी है व्याप...
*
है विधु लता / सी चंचल-चपल / अल्हड कौन
बोले अबोले / दे निशा निमंत्रण / प्रिय को मौन
नेह नर्मदा / ले रही हिलोरें ज्यों / मन्त्र का जाप...
*
कुसुम कली / किरण की कोर सी / है मुस्कुराई
आशा-आकांक्षा / मन में बसी पर / हाथ न आई
धर अधर / अधर में, अधर / अंकित छाप...
*
जीभ चिढ़ाये / नवोढ़ा सी लजाये / ठेंगा दिखाये
हरेक पल / समुद से सलिला / दूरी मिटाये
अरूणाभित / सिन्दूरी कपोलों को / छिपाये काँप...
*
अमराई में / कूकती कोकिला सी / देती आनंद
मठा-महेरी / पुरवैया-पछुआ / साँसों के छंद
समय देव ! / मनौती, नहीं देना / विरह शाप...
*
राग-रागिनी / सुर-सरगम सा / अटूट नाता
कभी न टूटे / हे सत्य नारायण! / भाग्य विधाता!!
हे नये वर्ष! / मिले अनंत हर्ष / रहें निष्पाप...
३१-१२-२०१३
***
व्यंग्य रचना:
हो गया इंसां कमीना...
*
गली थी सुनसान, कुतिया एक थी जाती अकेली.
दिखे कुछ कुत्ते, सहम संकुचा रही थी वह नवेली..
कहा कुत्तों ने: 'न डरिए, श्वान हैं इंसां नहीं हम.
आँच इज्जत पर न आएगी, भरोसा रखें मैडम..
जाइए चाहे जहाँ सर उठा, है खतरा न कोई.
आदमी से दूर रहिए, शराफत उसने है खोई..'
कहा कुतिया ने:'करें हड़ताल लेकर एक नारा.
आदमी खुद को कहे कुत्ता नहीं हमको गवारा..'
'ठीक कहती हो बहिन तुम, जानवर कुछ तुरत बोले.
माँग हो अब जानवर खुद को नहीं इंसां बोले.
थे सभी सहमत, न अब इन्सान को मुँह लगाएँगे.
आदमी लुच्चा कमीना 'बचो' सब को बताएँगे..
***
नए वर्ष का गीत:
झाँक रही है...
*
झाँक रही है
खोल झरोखा
नए वर्ष में धूप सुबह की...
*
चुन-चुन करती चिड़ियों के संग
कमरे में आ.
बिन बोले बोले मुझसे
उठ! गीत गुनगुना.
सपने देखे बहुत, करे
साकार न क्यों तू?
मुश्किल से मत डर, ले
उनको बना झुनझुना.
आँक रही
अल्पना कल्पना
नए वर्ष में धूप सुबह की...
*
कॉफ़ी का प्याला थामे
अखबार आज का.
अधिक मूल से मोह पीला
क्यों कहो ब्याज का?
लिए बांह में बांह
डाह तज, छह पल रही-
कशिश न कोशिश की कम हो
है सबक आज का.
टाँक रही है
अपने सपने
नए वर्ष में धूप सुबह की...
***
नया वर्ष
हम नया वर्ष जरूर मनाएंगे
दामिनी के आंसुओं, चीखों और कराहों को
याद करने के लिए
और यह संकल्प करने के लिए
कि हम अपनी ज़िंदगी में
किसी नारी का अपमान नहीं करेंगे
अपने बच्चों को ऐसे संस्कार देंगे
कि वह नारी को सिर्फ भोग्या न माने।
हम अपने शहर के हर थाने में
नारी का सम्मान करने और
तत्काल ऍफ़. आई. आर.दर्ज करने
सम्ब्नाधी पोस्टर चिपकाएँ।
सरकार से मांग करें कि
पुलिस विभाग को
अपराध-संख्या बढ़ने पर
दण्डित न किया जाए क्योंकि
संख्या घटने के लिए ही
अपराध दर्ज नहीं किये जाते।
हम एक दिन ही नहीं हर दिन
दामिनी वर्ष मनाएं।
नारी सम्मान की अलख जलाएं
३१-१२-२०१२
***
नव वर्ष पर नवगीत:
महाकाल के महाग्रंथ का
महाकाल के महाग्रंथ का
नया पृष्ठ फिर आज खुल रहा....
*
वह काटोगे,
जो बोया है.
वह पाओगे,
जो खोया है.
सत्य-असत, शुभ-अशुभ तुला पर
कर्म-मर्म सब आज तुल रहा....
*
खुद अपना
मूल्यांकन कर लो.
निज मन का
छायांकन कर लो.
तम-उजास को जोड़ सके जो
कहीं बनाया कोई पुल रहा?...
*
तुमने कितने
बाग़ लगाये?
श्रम-सीकर
कब-कहाँ बहाए?
स्नेह-सलिल कब सींचा?
बगिया में आभारी कौन गुल रहा?...
*
स्नेह-साधना करी
'सलिल' कब.
दीन-हीन में
दिखे कभी रब?
चित्रगुप्त की कर्म-तुला पर
खरा कौन सा कर्म तुल रहा?...
*
खाली हाथ?
न रो-पछताओ.
कंकर से
शंकर बन जाओ.
ज़हर पियो, हँस अमृत बाँटो.
देखोगे मन मलिन धुल रहा...
***
नये साल का गीत
*
कुछ ऐसा हो साल नया,
जैसा अब तक नहीं हुआ.
अमराई में मैना संग
झूमे-गाये फाग सुआ...
*
बम्बुलिया की छेड़े तान.
रात-रातभर जाग किसान.
कोई खेत न उजड़ा हो-
सूना मिले न कोई मचान.
प्यासा खुसरो रहे नहीं
गैल-गैल में मिले कुआ...
*
पनघट पर पैंजनी बजे,
बीर दिखे, भौजाई लजे.
चौपालों पर झाँझ बजा-
दास कबीरा राम भजे.
तजें सियासत राम-रहीम
देख न देखें कोई खुआ...
स्वर्ग करे भू का गुणगान.
मनुज देव से अधिक महान.
रसनिधि पा रसलीन 'सलिल'
हो अपना यह हिंदुस्तान.
हर दिल हो रसखान रहे
हरेक हाथ में मालपुआ...
***
दोहा सलिला
सुबह बिना नागा उगे, सूर्य ढले हर शाम।
यत्न सतत करते रहें, बिना रुके निष्काम।।
*
अंतिम पल तक तिमिर से, दिया न माने हार।
'सलिल' न कोशिश तज कभी, करो हार जयहार।।
*
संयम तज मत बजाएँ, मीत कभी भी गाल।
बन संतोषी हो सुखी, उन्नत रखकर भाल।।
*
ढाई आखर सीखकर, वर अद्वैत तज द्वैत।
मैं-तुम मिल हम हो सकें, जब जब खेलें बैत।।
*
गए हार कर जीत हम, ऐसा हुआ कमाल।
गए जीत कर हार भी, अद्भुत है नव साल।।
३१-१२-२०१०
***
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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मंगलवार, 31 दिसंबर 2024
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