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बुधवार, 18 दिसंबर 2024

दिसंबर १८, नवगीत, पेशावर, लघुकथा, सरायकी हाइकु, सरस्वती, बृज, सॉनेट, चित्रगुप्त, अमलतास

सलिल सृजन दिसंबर १८
*
दोहे अमलतास के 
चटक धूप सह खिल रहा, अमलतास है धन्य। 
गही पलाशी विरासत, सुमन न ऐसा अन्य।। 
कनकाभित सौंदर्यमय, अमलतास शुभ भव्य। 
कली-पुष्प पीताभ लख, करिए कविता नव्य।। 
*
रोग अनेक औषधि एक : अमलतास
अमलतास का पेड़ प्रायः सड़कों के किनारे या बाग-बगीचे में दिखते हैं। पहाड़ियों पर इसके पीले-सुनहरे मालाकार मनमोहक फूल सौंदर्य वृद्ध करते हैं। इन फूलों को गृह-सज्जा हेतु भी प्रयोग किया जाता है। अमलतास एक औषधी भी है। मार्च-अप्रैल में वृक्षों की पत्तियां झड़ने के बाद नई पत्तियाँ और पीले फूलों के बाद लम्बी गोल और नुकीली फली लगती है जो वर्ष भर लटकी रहती है।

सेजैलपिनिएसी (Caesalpiniaceae) कुल के अमलतास का वानस्पतिक नाम कैसिया फिस्टुला (Cassia fistula L., Syn-Cassia rhombifolia Roxb., Cassia excelsa Kunth.) है, इसे हिंदी में अमलतास, सोनहाली, सियरलाठी, अंग्रेजी में कैसिया (Cassia), गोल्डन शॉवर (Golden shower), इण्डियन लेबरनम (Indian laburnum), परजिंग स्टिक (Purging stick), पॅरजिंग कैसिया (Purging cassia), संस्कृत मेंआरग्वध, राजवृक्ष, शम्पाक, चतुरङ्गुल, आरेवत, व्याधिघात, कृतमाल, सुवर्णक, कर्णिकार, परिव्याध, द्रुमोत्पल, दीर्घफल, स्वर्णाङ्ग, स्वर्णफल, ओड़िया में सुनारी, असमी में सोनारू, कन्नड में कक्केमरा, गुजराती में, गर्मालो, तमिल में कोन्डरो (Kondro), कावानी (Kavani), सरकोन्नै (Sarakonnai), कोरैकाय (Karaikaya), तेलुगु मेंआरग्वधामु (Aragvadhamu), सम्पकमु (Sampakamu), बांग्ला में सोनाली (Sonali), सोनूलु (Sonulu), बन्दरलाठी (Bandarlati), अमुलतास (Amultas), पंजाबी में अमलतास (Amaltas), करङ्गल (Karangal), कनियार (Kaniar), मराठी में बाहवा (Bahawa), मलयालम में कणिकोन्ना (Kanikkonna), अरेबिक में खियार-शन्बर (Khiyar-shanbar), फारसी में ख्यार-शन्बर (Khyar-shanbar) कहा जाता है।

अमलतास के फायदे और उपयोग 

बुखार- अमलतास फल फली का गूदा (मज्जा), पिप्पली की जड़, हरीतकी, कुटकी एवं मोथा बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर पिएँ। 

फुंसी और छाले- अमलतास के पत्ते  गाय के दूध के साथ पीसकर लेप करने से नवजात शिशु की फुंसी या छाले दूर हो जाते हैं।
नाक की फुंसी- अमलतास ट्री के पत्तों और छाल को पीसकर नाक की फुन्सियों पर लगाएँ। इससे फुन्सियां ठीक हो जाती हैं। 

मुँह के छाले- अमलतास के फल का मज्जा धनिया के साथ पीसकर थोड़ा कत्था मिलाकर अथवा अमलतास का गूदा चूसें।  

घाव सुखाना- अमलतास, चमेली तथा करंज के पत्तों को गाय के मूत्र से पीसकर घाव पर लेप करें, पुराना से पुराना घाव ठीक हो जाता है।
अमलतास के पत्तों को दूध में पीसकर घाव पर लगाएँ, तुरंत फायदा होता है।
शरीर की जलन- अमलतास की १०-१५ ग्राम जड़ या छाल दूध में उबाल-पीसकर लेप करने से शरीर की जलन ठीक हो जाती है।
कंठ रोग- अमलतास की जड़ चावल के पानी के साथ पीसकर सुंघाने और लेप करने से कंठ के रोगों में लाभ होता है।
टॉन्सिल- टान्सिल बढ़ने पर अमलतास का पानी पीने में आराम मिलता है। टान्सिल के दर्द में १० ग्राम अमलतास जड़ या छाल थोड़े जल में पकाकर बूँद-बूँद मुँह में डालते रहने से आराम होता है।
खाँसी- अमलतास की ५-१० ग्राम गिरी पानी में घोटेंकरउसमें तीन गुना चीनी का बूरा डाल लें। इसे गाढ़ी चाशनी बनाकर चटाने से सूखी खांसी ठीक होती है।
अमलतास फल मज्जा को पिप्पली की जड़, हरीतकी, कुटकी एवं मोथा के साथ बराबर भाग में मिलाकर पिएँ, कफ कम होता है।
अमलतास फल गूदा के काढ़ा में 
५-१० ग्राम इमली का गूदा मिलाकर सुबह-शाम पिएँ। यदि रोगी में कफ की अधिकता हो तो इसमें थोड़ा निशोथ का चूर्ण मिलाकर पिलाने से विशेष लाभ होता है।

दमा (श्वसनतंत्र विकार)- अमलतास के  गूदे का काढ़ा पिलाने से सांसों की बीमारी में लाभ होता है।
आँत-रोग- )चार वर्ष से लेकर बारह वर्ष तक के बच्चे के शरीर में जलन हो रही हो, या वह आँतों की बीमारी से परेशान है तो उसे अमलतास फल की मज्जा २-४ नग मुनक्का के साथ दें। अमलतास के फूलों का गुलकंद बनाकर सेवन करने से भी आँत के विकारों में लाभ होता है।
पेट-रोग-  अमलतास के २-३ पत्तों में नमक और मिर्च मिला लें। इसे खाने से पेट साफ होता है। अमलतास फल का लगभग १० ग्राम गूदा रात में ५०० मि.ली. पानी में भिगो दें। इसे सुबह मसलकर छानकर पीने से पेट साफ हो जाता है। अमलतास फल की मज्जा पीसकर नाभि के चारों ओर लेप करें। इससे पेट के दर्द से आराम मिलता है।
पाचनतंत्र विकार-  अमलतास फल मज्जा, पिप्पली की जड़, हरीतकी, कुटकी एवं मोथा को बराबर मात्रा में लें। इसका काढ़ा बनाकर पिएँ। इससे पाचनतंत्र संबंधी विकार ठीक होते हैं, भूख बढ़ती है।
कब्ज- अमलतास के फूलों का गुलकंद बनाकर सेवन कराने से कब्ज में लाभ होता है। १५-२० ग्राम अमलतास फल का गूदा मुनक्का के रस के साथ सेवन करने से कब्ज ठीक हो जाता है।अमलतास के कच्चे फलों के चूर्ण में चौथाई भाग सेंधा नमक तथा नींबू का रस मिलाकर सेवन करने से कब्ज में फायदा होता है।
बवासीर- अमलतास, चमेली तथा करंज के पत्तों को गाय के मूत्र के साथ पीसकर बवासीर के मस्से पर लेप करें। 

पीलिया- अमलतास के फल का गूदा, गन्ना/भूमि कूष्मांड या आँवले का रस दिन में दो बार देने से पीलिया रोग में लाभ होता है।
डायबिटीज- १० ग्राम अमलतास के पत्तों को ४०० मिली पानी में पकाएँ, काढ़ा एक चौथाई रह जाए तो इसका सेवन करें। 

हाइड्रोसील (अण्डकोष वृद्धि)- १५ ग्राम अमलतास फल का गूदा,  १००  मिली पानी में उबालें। जब पानी २५ मिली शेष रह जाए तो उसमें गाय का घी मिलाकर पिएँ। इससे अण्डकोष (हाइड्रोसील) के बढ़ने की परेशानी में लाभ होता है।
गठिया/जोड़ दर्द- अमलतास की १०  ग्राम अमलतास की जड़ २५० मि.ली. दूध में उबालें। इसे देने से गठिया में लाभ होता है। अमलतास के १०-१५ पत्तों को गर्म करके उनकी पट्टी बाँधने से गठिया में फायदा होता है। सरसों के तेल में पकाए हुए अमलतास के पत्तों को शाम के भोजन में सेवन करें। इससे आम का पाचन होता है और आमवात में लाभ होता है। जोड़ों के दर्द में अमलतास फल के गूदा और पत्तों का लेप करें। इससे आराम मिलता है।
चेहरे का लकवा- अमलतास के १०-१५ पत्तों को गर्म करके उनकी पट्टी बाँधने से चेहरे के लकवा रोग में लाभ होता है। अमलतास के पत्ते के रस पिलाने से भी चेहरे के लकवे की बीमारी ठीक हो जाती है।
कुष्ठ रोग- अमलतास के पत्ते/जड़ को पीसकर लेप करने से कुष्ठ रोग में लाभ होता है। इससे दाद या खुजली जैसे चर्म रोगों में भी लाभ होता है।
अमलतास की पत्तियों तथा कुटज की छाल का काढ़ा बना लें। इसे स्नान, सेवन, लेप आदि करने से कुष्ठ रोग में लाभ होता है।
त्वचा रोग- अमलतास, मकोय तथा कनेर के पत्तों को छाछ से पीस लें। इसके बाद शरीर पर सरसों के तेल से मालिश करें, फिर लेप को प्रभावित अंगों पर लेप करें। कांजी से पत्तों को पीसकर लेप करने से भी त्वचा रोग जैसे कुष्ठ रोग, दाद, खुजली आदि में लाभ होता है।
विसर्प रोग (हरपीस )- अमलतास के पत्तों तथा श्लेष्मातक की छाल का लेप बना कर लगाएँ। अमलतास के ८-१० पत्तों को पीसकर घी में मिला लें। इसका लेप करने से भी विसर्प रोग में लाभ होता है।
रक्तपित्त (हेमोटाईसिस)- शरीर के अंगों जैसे नाक, कान आदि से खून के बहने पर अमलतास का प्रयोग करना लाभ देता है। २५-५० ग्राम अमलतास फल के गूदा में २० ग्राम मधु और शर्करा मिला लें। इसे सुबह और शाम देने से नाक-कान से खून का बहना रुक जाता है।
रक्तवाहिका विकार( Peripheral vascular Disease)- रक्तवाहिकाओं की परेशानी में अमलतास के पत्ते को पानी और तेल में पकाएं। इसका सेवन करें। इससे रक्तवाहिकाओं से जुड़ी परेशानियों में लाभ होता है।
गर्भवती स्त्रियां शरीर के स्ट्रेच मार्क्स- अमलतास के पत्तों को दूध में पीस लें। इसे गर्भवती स्त्रियों के शरीर पर होने वाली धारियों पर लगाएं। इससे तुरंत फायदा होता है।
पित्तज विकार- अमलतास के फल के गूदा के काढ़ा में ५-१० ग्राम इमली का गूदा मिलाकर सुबह और शाम पिएँ। कफ की अधिकता हो तो थोड़ा निशोथ- चूर्ण मिलाकर पिएँ। अमलतास फल के गूदा का काढ़ा बनाकर या अमलतास फल का गूदा  दूध में पकाकर पिएँ। 
अमलतास फल के गूदा और एलोवेरा के गूदे को जल के साथ घोट लें। इसका मोदक बना लें। इसे रात में सेवन करें। इससे पित्त के विकारों में फायदा होता है। इसके लिए जल के स्थान पर गुलाबजल का प्रयोग भी किया जा सकता है।
लाल निशोथ के काढ़ा के साथ अमलतास के फल का गूदा का पेस्ट मिला लें। इसके अलावा बेल के काढ़ा के साथ अमलतास के गूदा का पेस्ट, नमक एवं मधु मिला सकते हैं। इसे १०-२० मिली मात्रा में पीने से पित्तज विकार ठीक होता है।
वात विकार- अमलतास फल का गूदा, पिप्पली की जड़, हरीतकी, कुटकी एवं मोथा  बराबर मात्रा में मिलाकर काढ़ा बनाकर पिएँ। 
बिवाई (एड़िया फटना)- अमलतास के पत्ते का पेस्ट बनाकर एड़ियों पर लगाएँ। इससे एड़ी के फटने (बिवाई रोग) में लाभ होता है।

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सॉनेट
श्वास-श्वास मोगरे सी महके,
गुल गुलाब मन मुदित मदिर हो,
तरुणे तन पंक में कमल हो,
अगिन आस अमलतास दहके।
चारु चाह चंपई चपल हो,
कामना कनेर की कसक हो,
राह तके रातरानी रह के।
बरगदी संकल्प जड़ जमाए,
नीम तले चढ़-उतर गिलहरी,
सिर नवाए सींच-पूज तुलसी।
सूर्य रश्मि तोम तम मिटाए,
गौरैया संग मिल टिटहरी,
चहके लख प्रीति बेल हुलसी।
१८-८-२०२३
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सॉनेट
चित्रगुप्त
*
काया-स्थित ईश का चित्र गुप्त है मीत
अंश बसा हर जीव में आत्मा कर संजीव
चित्र-मूर्ति के बिना हम पूजा करते रीत
ध्यान करें आभास हो वह है करुणासींव
जिसका जैसा कर्म हो; वैसा दे परिणाम
सबल-बली; निर्धन-धनी सब हैं एक समान
जो उसको ध्याए, बनें उसके सारे काम
सही-गलत खुद जाँचिए; घटे न किंचित आन
व्रत पूजा या चढ़ावा; पा हो नहीं प्रसन्न
दंड गलत पाए; सही पुरस्कार का पात्र
जो न भेंट लाए; नहीं वह पछताए विपन्न
अवसर पाने के लिए साध्य योग्यता मात्र
आत्म-शुद्धि हित पूजिए, जाग्रत रखें विवेक
चित्रगुप्त होंगे सदय; काम करें यदि नेक
***
सॉनेट
सौदागर
*
भास्कर नित्य प्रकाश लुटाता, पंछी गाते गीत मधुर।
उषा जगा, धरा दे आँचल, गगन छाँह देता बिन मोल।
साथ हमेशा रहें दिशाएँ, पवन न दूर रहे पल भर।।
प्रक्षालन अभिषेक आचमन, करें सलिल मौन रस घोल।।
ज्ञान-कर्म इंद्रियाँ न तुझसे, तोल-मोल कुछ करतीं रे।
ममता, लाड़, आस्था, निष्ठा, मानवता का दाम नहीं।
ईश कृपा बिन माँगे सब पर, पल-पल रही बरसती रे।।
संवेदन, अनुभूति, समझ का, बाजारों में काम नहीं।।
क्षुधा-पिपासा हो जब जितनी, पशु-पक्षी उतना खाते।
कर क्रय-विक्रय कभी नहीं वे, सजवाते बाजार हैं।
शीघ्र तृप्त हो शेष और के लिए छोड़कर सुख पाते।।
हम मानव नित बेच-खरीदें, खुद से ही आजार हैं।।
पूछ रहा है ऊपर बैठे, ब्रह्मा नटवर अरु नटनागर।
शारद-रमा-उमा क्यों मानव!, शप्त हुआ बन सौदागर।।
१८-१२-२०२१
***

***
एक दोहा
रौंद रहे कलियों को माली,
गईँ बहारें रूठ।
बगिया रेगिस्तान हो रहीं,
वृक्ष कर दिए ठूँठ।।
***
सरस्वती वंदना
बृज भाषा
*
सुरसती मैया की किरपा बिन, नैया पार करैगो कौन?
बीनाबादिनि के दरसन बिन, भव से कओ तरैगो कौन?
बेद-पुरान सास्त्र की मैया, महिमा तुमरी अपरंपार-
तुम बिन तुमरी संतानन की, बिपदा मातु हरैगो कौन?
*
धरा बरसैगी अमरित की, माँ सारद की जै कहियौ
नेह नरमदा बन जीवन भर, निर्मल हो कै नित बहियौ
किशन कन्हैया तन, मन राधा रास रचइयौ ग्वालन संग
बिना-मुरली बजा मोह जग, प्रेम गोपियन को गहियौ
***
सरायकी हाइकु
*
लिखीज वेंदे
तकदीर दा लेख
मिसीज वेंदे
*
चीक-पुकार
दिल पत्थर दा
पसीज वेंदे
*
रूप सलोना
मेडा होश-हवास
वजीज वेंदे
*
दिल तो दिल
दिल आख़िरकार
बसीज वेंदे
*
कहीं बी जाते
बस वेंदे कहीं बी
लड़ीज वेंदे
*
दिल दी माड़ी
जे ढे अपणै आप
उसारी वेसूं
*
सिर दा बोझ
तमाम धंधे धोके
उसारी वेसूं
*
साड़ी चादर
जितनी उतने पैर
पसारी वेसूं
*
तेरे रस्ते दे
कण्डये पलकें नाल
बुहारी वेसूं
*
रात अँधेरी
बूहे ते दीवा वाल
रखेसी कौन?
*
लिखेसी कौन
रेगिस्तान दे मत्थे
बारिश गीत?
*
खिड़दे हिन्
मौज बहारां फुल्ल
तैडे ख़ुशी दे
*
ज़िंदणी तो हां
पर मौत मिलदी
मंगण नाल
*
मैं सुकरात
कोइ मैं कूं पिलेसी
ज़हर वी न
*
तलवार दे
कत्ल कर दे रहे
नाल आदमी
*
बणेसी कौन
घुँघरू सारंगी तों
लोहे दे तार?
*
कौन करेंसी
नीर-खीर दा फर्क
हंस बगैर?
*
खून चुसेंदी
हे रखसाणी रात
जुल्मी सदियाँ
*
नवी रौशनी
डेखो दे चेहरे तों
घंड लहेसी
*
रब जाण दे
केझीं लाचारी हई?
कुछ न पुच्छो
*
आप छोड़ के
अपणे वतन कूं
रहेसी कौन?
*
खैर-खबर
जिन्हां यार ते पुछ
खुशकिस्मत
*
अलेसी कौन?
कबर दा पत्थर
मैं सुनसान
*
वंडेसी कौन?
वै दा दर्द जित्थां
अपणी पई
*
मरण बाद
याद करेसी कौन
दुनिया बिच?
*
झूठ-सच्च दे
कोइ न जाणे लगे
मुखौटे हिन्
१८-१२-२०१९
***
गीत
*
हम जो कहते
हम जो करते
वही ठीक है मानो
*
जंगल में जनतंत्र तभी
जब तंत्र बन सके राजा।
जन की जान रखे मुट्ठी में
पीट बजाये बाजा।
शिक्षालय हो या कार्यालय
कभी शीश मत तानो
*
लोकतंत्र में जान लोक की
तंत्र जब रुचे ले ले।
जन प्रतिनिधि ऐय्याश लोक की
इज्जत से हँस खेले।
मत विरोध कर रहो समर्पित
सेवा में सुख जानो
*
प्रजा तंत्र में प्रजा सराहे
किस्मत अन्न उगाये।
तंत्र कोठियों में भर बेचे
दो के बीस बनाये।
अफसरशाही की जय बोलो
उन्हें ईश पहचानो
*
गण पर चलती गन को पूजो
भव से तुम्हें उबारे।
धन्य झुपड़िया राजमार्ग हित
प्रभु यदि तोड़ उखाड़े।
फैक्ट्री तान सेठ जी कृषकों
तारें सुयश बखानो
१८-१२-२०१९
***
लघुकथा:
ठण्ड
*
बाप रे! ठण्ड तो हाड़ गलाए दे रही है। सूर्य देवता दिए की तरह दिख रहे हैं। कोहरा, बूँदाबाँदी, और बरछी की तरह चुभती ठंडी हवा, उस पर कोढ़ में खाज यह कि कार्यालय जाना भी जरूरी और काम निबटाकर लौटते-लौटते अब साँझ ढल कर रात हो चली है। सोचते हुए उसने मेट्रो से निकलकर घर की ओर कदम बढ़ाए। हवा का एक झोंका गरम कपड़ों को चीरकर झुरझुरी की अनुभूति करा गया।
तभी चलभाष की घंटी बजी, भुनभुनाते हुए उसने देखा, किसी अजनबी का क्रमांक दिखा। 'कम्बख्त न दिन देखते हैं न रात, फोन लगा लेते हैं' मन ही मन में सोचते हुए उसने अनिच्छा से सुनना आरंभ किया- "आप फलाने बोल रहे हैं?" उधर से पूछा गया।
'मेरा नंबर लगाया है तो मैं ही बोलूँगा न, आप कौन हैं?, क्या काम है?' बिना कुछ सोचे बोल गया। फिर आवाज पर ध्यान गया यह तो किसी महिला का स्वर है। अब कडुवा बोल जाना ख़राब लग रहा था पर तोप का गोला और मुँह का बोला वापिस तो लिया नहीं जा सकता।
"अभी मुखपोथी में आपकी लघुकथा पढ़ी, बहुत अच्छी लगी, उसमें आपका संपर्क मिला तो मन नहीं माना, आपको बधाई देना थी। आम तौर पर लघुकथाओं में नकली व्यथा-कथाएँ होती हैं पर आपकी लघुकथा विसंगति इंगित करने के साथ समन्वय और समाधान का संकेत भी करती है। यही उसे सार्थक बनाता है। शायद आपको असुविधा में डाल दिया... मुझे खेद है।"
'अरे नहीं नहीं, आपका स्वागत है.... ' दाएँ-बाएँ देखते हुए उसने सड़क पार कर गली की ओर कदम बढ़ाए। अब उसे नहीं चुभ रही थी ठण्ड।
१८-१२-२०१८
***
मुक्तक
जग उठ चल बढ़ गिर मत रुक
ठिठक-झिझिक मत, तू मत झुक।
उठ-उठ कर बढ़, मंजिल तक-
'सलिल' सतत चल, कभी न चुक।।
*
नियति का आशीष पाकर 'सलिल' बहता जा रहा है।
धरा मैया की कृपा पा गीत कलकल गा रहा है।।
अतृप्तों को तृप्ति देकर धन्य जीवन कर रहा है-
पातकों को तार कर यह नर्मदा कहला रहा है।।
*
दोहा
जब तक चंद्र प्रकाश दे, जब तक है आकाश।
तब तक उद्यम कर 'सलिल', किंचित हो न निराश।।
१८.१२.१८
***
नीलाकाश में
अनगिनत तारे
चंद्रमा एक.
१८.१२.२०१७
***
नवगीत
फ़िक्र मत करो
*
फ़िक्र मत करो
सब चलता है
*
सूरज डूबा उगते-उगते
क्षुब्ध उषा को ठगते-ठगते
अचल धरा हो चंचल धँसती
लुटी दुपहरी बचते-फँसते
सिंदूरी संध्या है श्यामा
रजनी को
चंदा छलता है
फ़िक्र मत करो
सब चलता है
*
गिरि-चट्टानें दरक रही हैं
उथली नदियाँ सिसक रही हैं
घायल पेड़-पत्तियाँ रोते
गुमसुम चिड़ियाँ हिचक रही हैं
पशु को खा
मानव पलता है
फ़िक्र मत करो
सब चलता है
*
मनमर्जी कानून हुआ है
विधि-नियमों का खून हुआ है
रीति-प्रथाएँ विवश बलात्कृत
तीन-पाँच दो दून हुआ है
हाथ तोड़ पग
कर मलता है
१८. १२. २०१५
***
नवगीत:
बस्ते घर से गए पर
लौट न पाये आज
बसने से पहले हुईं
नष्ट बस्तियाँ आज
.
है दहशत का राज
नदी खून की बह गयी
लज्जा को भी लाज
इस वहशत से आ गयी
गया न लौटेगा कभी
किसको था अंदाज़?
.
लिख पाती बंदूक
कब सुख का इतिहास?
थामें रहें उलूक
पा-देते हैं त्रास
रहा चरागों के तले
अन्धकार का राज
.
ऊपरवाले! कर रहम
नफरत का अब नाश हो
दफ़्न करें आतंक हम
नष्ट घृणा का पाश हो
मज़हब कहता प्यार दे
ठुकरा तख्तो-ताज़
.
***
नवगीत:
पेशावर के नरपिशाच
धिक्कार तुम्हें
.
दिल के टुकड़ों से खेली खूनी होली
शर्मिंदा है शैतानों की भी टोली
बना न सकते हो मस्तिष्क एक भी तुम
मस्तिष्कों पर मारी क्यों तुमने गोली?
लानत जिसने भेज
किया लाचार तुम्हें
.
दहशतगर्दों! जिसने पैदा किया तुम्हें
पाला-पोसा देखे थे सुख के सपने
सोचो तुमने क़र्ज़ कौन सा अदा किया
फ़र्ज़ निभाया क्यों न पूछते हैं अपने?
कहो खुदा को क्या जवाब दोगे जाकर
खला नहीं क्यों करना
अत्याचार तुम्हें?
.
धिक्-धिक् तुमने भू की कोख लजाई है
पैगंबर मजहब रब की रुस्वाई है
राक्षस, दानव, असुर, नराधम से बदतर
तुमको जननेवाली माँ पछताई है
क्यों भाया है बोलो
हाहाकार तुम्हें?
.
नवगीत:
मैं लड़ूँगा....
.
लाख दागो गोलियाँ
सर छेद दो
मैं नहीं बस्ता तजूँगा।
गया विद्यालय
न वापिस लौट पाया
तो गए तुम जीत
यह किंचित न सोचो,
भोर होते ही उठाकर
फिर नये बस्ते हजारों
मैं बढूँगा।
मैं लड़ूँगा....
.
खून की नदियाँ बहीं
उसमें नहा
हर्फ़-हिज्जे फिर पढ़ूँगा।
कसम रब की है
मदरसा हो न सूना
मैं रचूँगा गीत
मिलकर अमन बोओ।
भुला औलादें तुम्हारी
तुम्हें, मेरे साथ होंगी
मैं गढूँगा।
मैं लड़ूँगा....
.
आसमां गर स्याह है
तो क्या हुआ?
हवा बनकर मैं बहूँगा।
दहशतों के
बादलों को उड़ा दूँगा
मैं बनूँगा सूर्य
तुम रण हार रोओ ।
वक़्त लिक्खेगा कहानी
फाड़ पत्थर मैं उगूँगा
मैं खिलूँगा।
मैं लड़ूँगा....
१८.१२.२०१४
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