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मंगलवार, 10 दिसंबर 2024

दिसंबर १०, कपास, सोरठे, पूर्णिका, सॉनेट, मुक्तक, लघुकथा, दोहा, बुंदेली, नारी

सलिल सृजन दिसंबर १०
*
एक दोहा
आँख दिखाई; भीत हो, गया डॉक्टर भाग।
चाह रहाअनुराग पर, पाई जलती आग।।
***
कपासी सोरठे
करते रहें प्रयास, हिम्मत मत हारें कभी।
कहता धवल कपास, जोश होश संतोष रख।।
रखता तन-मन श्वेत, काली माटी में उपज।
परहित ही अभिप्रेत, है कपास को धन्य वह।।
देख सके तो देख, बीज बीज बीजक सदृश।
करे कर्म का लेख, निरासक्त रह संत सम।।
खली-बिनौले पा पले, गौ माता दे दूध।
कुटिया को ईंधन मिले, शाखाओं से खूब।।
कहता विहँस कपास, होना कभी उदास मत।
रख अधरों पर हास, सुख-दुख को सम जान सह।।
१०.१२.२०२४
०००
पूर्णिका
स्नेहमय उद्गार शत शत।
हृदय से आभार शत शत।।

भाव सलिला नर्मदा सी
नित प्रवाहित धार शत शत।।

पूर्ण होता नहीं मानव
पूर्णिका उद्गार शत शत।।

तम गरल लो कण्ठ में धर।
पूर्णिमा गलहार शत शत।।

शीश पर शशि सुशोभित है।
भुज भुजंग सिँगार शत शत।।

मोह-माया मुग्ध मन में
मधुर मूक सितार शत शत।।

कहे माटी नभ समुद भी।
दे 'सलिल' पर वार शत शत।।
१०.१२.२०२४
०००
सॉनेट
बुद्धू
लौट के बुद्धू घर को आए
जेब भरी थी, अब है खाली
फिर भी मस्त बजाते ताली
मन में मन भर सुधियाँ लाए
रमता जोगी बहता पानी
जैसे जहँ-तहँ अटके-भटके
जग-जीवन के देखे लटके
बनते चतुर करी नादानी
पर्वत पोखर झरने मंदिर
माटी घाटी नदियाँ सुंदर
मिटते पंछी रोते तरुवर
बलशाली विकास का दानव
कर विनाश दिखलाता लाघव
खुद को खुद ही ठगते मानव
११-१२-२०२२
७॰४७,जबलपुर
•••
मुक्तक सलिला:
नारी अबला हो या सबला, बला न उसको मानो रे
दो-दो मात्रा नर से भारी, नर से बेहतर जानो रे
जड़ हो बीज धरा निज रस से, सिंचन कर जीवन देती-
प्रगटे नारी से, नारी में हो विलीन तर-तारो रे
*
उषा दुपहरी संध्या रजनी जहाँ देखिए नारी है
शारद रमा शक्ति नारी ही नर नाहर पर भारी है
श्वास-आस मति-गति कविता की नारी ही चिंगारी हैं-
नर होता होता है लेकिन नारी तो अग्यारी है
*
नेकी-बदी रूप नारी के, धूप-छाँव भी नारी है
गति-यति पगडंडी मंज़िल में नारी की छवि न्यारी है
कृपा, क्षमा, ममता, करुणा, माया, काया या चैन बिना
जननी, बहिना, सखी, भार्या, भौजी, बिटिया प्यारी है
१०-१२-२०१९
***
तीन काल खंड तीन लघुकथाएँ :
१. जंगल में जनतंत्र
जंगल में चुनाव होनेवाले थे।
मंत्री कौए जी एक जंगी आमसभा में सरकारी अमले द्वारा जुटाई गयी भीड़ के आगे भाषण दे रहे थे।- ' जंगल में मंगल के लिए आपस का दंगल बंद कर एक साथ मिलकर उन्नति की रह पर कदम रखिये। सिर्फ़ अपना नहीं सबका भला सोचिये।'
' मंत्री जी! लाइसेंस दिलाने के लिए धन्यवाद। आपके कागज़ घर पर दे आया हूँ। ' भाषण के बाद चतुर सियार ने बताया। मंत्री जी खुश हुए।
तभी उल्लू ने आकर कहा- 'अब तो बहुत धाँसू बोलने लगे हैं। हाऊसिंग सोसायटी वाले मामले को दबाने के लिएरखिए' और एक लिफाफा उन्हें सबकी नज़र बचाकर दे दिया।
विभिन्न महकमों के अफसरों उस अपना-अपना हिस्सा मंत्री जी के निजी सचिव गीध को देते हुए कामों की जानकारी मंत्री जी को दी।समाजवादी विचार धारा के मंत्री जी मिले उपहारों और लिफाफों को देखते हुए सोच रहे थे - 'जंगल में जनतंत्र जिंदाबाद। '
१९९४
***
२. समरसता
*
भृत्यों, सफाईकर्मियों और चौकीदारों द्वारा वेतन वृद्धि की माँग मंत्रिमंडल ने आर्थिक संसाधनों के अभाव में ठुकरा दी।
कुछ दिनों बाद जनप्रतिनिधियों ने प्रशासनिक अधिकारियों की कार्य कुशलता की प्रशंसा कर अपने वेतन भत्ते कई गुना अधिक बढ़ा लिये।
अगली बैठक में अभियंताओं और प्राध्यापकों पर हो रहे व्यय को अनावश्यक मानते हुए सेवा निवृत्ति से रिक्त पदों पर नियुक्तियाँ न कर दैनिक वेतन के आधार पर कार्य कराने का निर्णय सर्व सम्मति से लिया गया और स्थापित हो गयी समरसता।
७-१२-२०१५
***
३. मी टू
वे लगातार कई दिनों से कवी की रचनाओं की प्रशंसा कर रही थीं। आरंभ में अनदेखी करने करने के बाद कवि ने शालीनतावश उत्तर देना आवश्यक समझा। अब उन्होंने कवि से कविता लिखना सिखाने का आग्रह किया। कवि जब भी भाषा के व्याकरण या पिंगल की बात करता वे अपने नए चित्र के साथ अपनी उपेक्षा और शोषण की व्यथा-कथा बताने लगतीं।
एक दिन उन्होंने कविता सीखने स्वयं आने की इच्छा व्यक्त की। कवि ने कोई उत्तर नहीं दिया। इससे नाराज होकर उन्होंने कवि पर स्त्री की अवमानना करने का आरोप जड़ दिया। कवि फिर भी मौन रहा।
ब्रम्हास्त्र का प्रयोग करते हुए उन्होंने अपने निर्वसन चित्र भेजते हुए कवि को अपने निवास पर या कवि के चाहे स्थान पर रात गुजारने का आमंत्रण देते हुए कुछ गज़लें देने की माँग कर दी, जिन्हें वे मंचों पर पढ़ सकें।
कवि ने उन्हें प्रतिबंधित कर दिया। अब वे किसी अन्य द्वारा दी गयीं ३-४ गज़लें पढ़ते हुए मंचों पर धूम मचाए हुए हैं। कवि स्तब्ध जब एक साक्षात्कार में उन्होंने 'मी टू' का शिकार होने की बात कही। कवि समय की माँग पर लिख रहा है स्त्री-विमर्श की रचनाएँ पर उसका जमीर चीख-चीख कर कह रहा है 'मी टू'।
११.१२.२०१८
***
दोहा सलिला
उदय भानु का जब हुआ, तभी ही हुआ प्रभात.
नेह नर्मदा सलिल में, क्रीड़ित हँस नवजात.
.
बुद्धि पुनीता विनीता, शिविर की जय-जय बोल.
सत्-सुंदर की कामना, मन में रहे टटोल.
.
शिव को गुप्तेश्वर कहो, या नन्दीश्वर आप.
भव-मुक्तेश्वर भी वही, क्षमा ने करते पाप.
.
चित्र गुप्त शिव का रहा, कंकर-कंकर व्याप.
शिवा प्राण बन बस रहें, हरने बाधा-ताप.
.
शिव को पल-पल नमन कर, तभी मिटेगा गर्व.
मति हो जब मिथलेश सी, स्वजन लगेंगे सर्व.
.
शिवता जिसमें गुरु वही, शेष करें पाखंड.
शिवा नहीं करतीं क्षमा, देतीं निश्चय दंड.
.
शिव भज आँखें मून्द कर, गणपति का करें ध्यान.
ममता देंगी भवानी, कार्तिकेय दें मान.
१०-१२-२०१७
...
मुक्तक
शब्दों का जादू हिंदी में अमित सृजन कर देखो ना
छन्दों की महिमा अनंत है इसको भी तुम लेखो ना
पढ़ो सीख लिख आत्मानंदित होकर सबको सुख बाँटो
मानव जीवन कि सार्थकता यही 'सलिल' अवरेखो ना
***
दोहा दुनिया
*
आलम आलमगीर की, मर्जी का मोहताज
मेरे-तेरे बीच में, उसका क्या है काज?
*
नयन मूँद देखूं उसे, जो छीने सुख-चैन
गुम हो जाता क्यों कहो, ज्यों ही खोलूँ नैन
*
पल-पल बीते बरस सा, अपने लगते गैर
खुद को भूला माँगता, मन तेरी ही खैर
*
साया भी अपना नहीं, दे न तिमिर में साथ
अपना जीते जी नहीं, 'सलिल' छोड़ता हाथ
*
रहे हाथ में हाथ तो, उन्नत होता माथ
खुद से आँखे चुराता, मन तू अगर न साथ
१०-१२-२०१६
***
सुधियों का दर्पण
विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर
नवलेखन अभियान
लघुकथा प्रकोष्ठ
लघुकथा के तत्व और लेखन प्रक्रिया विषयक अन्तरंग संगोष्ठी ११-१२-२०१६ रविवार को अपरान्ह 3 बजे से ५.३० बजे तक भंवरताल उद्यान में आयोजित है. सहभागी होकर सफल बनायें. १. कालाधन तथा २. सद्भाव शीर्षकों पर लघुकथा पर लघुकथाओं का वाचन भी होगा.
***
सामयिक गीत
ठेंगे पर कानून
*
मलिका - राजकुँवर कहते हैं
ठेंगे पर कानून
संसद ठप कर लोकतंत्र का
हाय! कर रहे खून
*
जनगण - मन ने जिन्हें चुना
उनको न करें स्वीकार
कैसी सहनशीलता इनकी?
जनता दे दुत्कार
न्यायालय पर अविश्वास कर
बढ़ा रहे तकरार
चाह यही है सजा रहे
कैसे भी हो दरबार
जिसने चुना, न चिंता उसकी
जो भूखा दो जून
मलिका - राजकुँवर कहते हैं
ठेंगे पर कानून
संसद ठप कर लोकतंत्र का
हाय! कर रहे खून
*
सरहद पर ही नहीं
सड़क पर भी फैला आतंक
ले चरखे की आड़
सँपोले मार रहे हैं डंक
जूते उठवाते औरों से
फिर भी हैं निश्शंक
भरें तिजोरी निज,जमाई की
करें देश को रंक
स्वार्थों की भट्टी में पल - पल
रहे लोक को भून
मलिका - राजकुँवर कहते हैं
ठेंगे पर कानून
संसद ठप कर लोकतंत्र का
हाय! कर रहे खून
*
परदेशी से करें प्रार्थना
आ, बदलो सरकार
नेताजी को बिना मौत ही
दें कागज़ पर मार
संविधान को मान द्रौपदी
चाहें चीर उतार
दु:शासन - दुर्योधन की फिर
हो अंधी सरकार
मृग मरीचिका में जीते
जैसे इन बिन सब सून
मलिका - राजकुँवर कहते हैं
ठेंगे पर कानून
संसद ठप कर लोकतंत्र का
हाय! कर रहे खून
***
सामयिक गीत
चालीस चोर
*
चालीस चोर - अलीबाबा
क्योें करते बंटाढार?
*
जनता माँगे
दो हिसाब
क्यों की तुमने मनमानी?
घपले पकड़े गए
आ रही याद
तुम्हें अब नानी
सजा दे रहा जनगण
नाहक क्यों करते तकरार?
चालीस चोर - अलीबाबा
क्योें करते बंटाढार?
*
जननायक से
रार कर रहे
गैरों के पड़ पैर
अपनों से
चप्पल उठवाते
कैसे होगी खैर?
असंसदीय आचरण
बनाते संसद को बाज़ार
चालीस चोर - अलीबाबा
क्योें करते बंटाढार?
*
जनता समझे
कर नौटंकी
फैलाते पाखंड
देना होगा
फिर जवाब
हो कितने भी उद्दंड
सम्हल जाओ चुक जाए न धीरज
जन गण हो बेज़ार
चालीस चोर - अलीबाबा
क्योें करते बंटाढार?
*
***
बुंदेली गीत
जनता भई पराई
*
सत्ता पा घोटाले करते
तनकऊ लाज न आई
जाँच भई खिसियाए लल्ला
जनता भई पराई
*
अपनी टेंट नें देखे कानी
औरन को दे दोस
छिपा-छिपाकर ऐब जतन से
बरसों पाले पोस
सौ चूहे खा बिल्ली हज को
चली, रिसा पछताई?
जाँच भई खिसियाए लल्ला
जनता भई पराई
*
रातों - रात करोड़पति
व्ही आई पी भए जमाई
आम आदमी जैसा जीवन
जीने -गैल भुलाई
न्यायालय की गरिमा
संसद में घुस आज भुलाई
जाँच भई खिसियाये लल्ला
जनता भई पराई
*
सहनशीलता की दुहाई दें
जो छीनें आज़ादी
अब लौं भरा न मन
जिन्ने की मनमानी बरबादी
लगा तमाचा जनता ने
दूजी सरकार बनाई
जाँच भई खिसियाए लल्ला
जनता भई पराई
१०-१२-२०१५
***
मुक्तक सलिला:
नारी अबला हो या सबला, बला न उसको मानो रे
दो-दो मात्रा नर से भारी, नर से बेहतर जानो रे
जड़ हो बीज धरा निज रस से, सिंचन कर जीवन देती-
प्रगटे नारी से, नारी में हो विलीन तर-तारो रे
*
उषा दुपहरी संध्या रजनी जहाँ देखिए नारी है
शारद रमा शक्ति नारी ही नर नाहर पर भारी है
श्वास-आस मति-गति कविता की नारी ही चिंगारी हैं-
नर होता होता है लेकिन नारी तो अग्यारी है
*
नेकी-बदी रूप नारी के, धूप-छाँव भी नारी है
गति-यति पगडंडी मंज़िल में नारी की छवि न्यारी है
कृपा, क्षमा, ममता, करुणा, माया, काया या चैन बिना
जननी, बहिना, सखी, भार्या, भौजी, बिटिया प्यारी है
१०.१२.२०१३
***

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