सलिल सृजन ७ दिसंबर
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दोहा बसंत में
०
रश्मि रूप पर मुग्ध हो, दिनकर नभ का भूप।
प्रणय याचना कर रहा, भू पर उतर अनूप।।
०
कनकाभित हरितिमा लख, नीलाभित नभ मौन।
रतिपति सी गति हो नहीं, सच समझाए कौन?
०
पर्ण-पर्ण पर छा रहा, नूतन प्रणय निखार।
कली-कली पर भ्रमर दल, है निसार दिल हार।।
०
वनश्री नव वधु सी सजी, करने पीले हाथ।
माँ वसुधा बेचैन है, उठा झुकाए माथ।।
०
कुड़माई करने चला, सूर्य धरा के संग।
रश्मि बलैया ले हँसी, बिखरे स्नेहिल रंग
७.१२.२०२४
०००
मौसम
*
मौसम कहे न कोई मो सम।
रंग बदलता गिरगिट जैसे।
पल में तोला, पल में माशा,
कभी नरम है, कभी गरम है।
इस पल करता पक्का वादा
उस पल कह देता है जुमला।
करता दगा चीन के जैसे,
कभी पाक की माफिक हमला।
देश बांग्ला भटका-अटका
खुद ने खुद को खुद ही पटका।
करे सियासत मौन-मुखर हो
पक्ष-विपक्ष सरीखे उलझे।
धरती हैरां, थका आसमां
श्वान-पूँछ टेढ़ा का टेढ़ा।
साथ न छोड़े जन्म सात तक
अलस्सुबह से देर रात तक।
कभी हँसाए; करे आँख नम
मौसम कहे न कोई मो सम।
०००
कचनार गाथा
०
सुंदर सुमन सुमन मन मोहे,
झूम रहा गाता मल्हार।
माह बारहों हैं बसंत सम,
शांत अशोक मौन कचनार।।
मीनाकारी कली लली की,
भर अंजलि में सरला देख।
प्रमुदित रेखा पर्ण पर्ण पर,
पवन पढ़े किस्मत का लेख।।
अनिल अनल भू सलिल गगन का,
मीत हमेशा कर संतोष।
हृदय बसाए सरला-शन्नो,
राजकुमार अस्मिता कोष।।
मदन मुग्ध सुंदर फूलों पर,
वसुधा तनुजा कर सिंगार।
कहें अर्जिता कीर्ति बढ़े नित,
पाओ-बाँटो प्यार अपार।।
७.१२.२०१९
०००
दोहा-दोहा चिकित्सा
*
खाँसी कफ टॉन्सिल अगर, करती हो हैरान।
कच्ची हल्दी चूसिए, सस्ता, सरल निदान।।
*
खाँस-खाँस मुँह हो रहा, अगर आपका लाल।
पान शहद अदरक मिला, चूसें करे कमाल।।
*
करिए गर्म अनार रस, पिएँ न खाँसें मीत।
चूसें काली मिर्च तो, खाँसी हो भय-भीत।।
*
दमा ब्रोन्कियल अस्थमा, करे अगर बेचैन।
सुबह पिएँ गो मूत्र नित, ताजा पाएँ चैन।।
*
पिसी दालचीनी मिला, शहद पीजिए मीत।
पानी गरम सहित घटे, दमा न रहिए भीत।।
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ग्रस्त तपेदिक से अगर, पिएँ आप छह माह।
नित ताजा गोमूत्र तो, मिले स्वास्थ्य की राह।।
*
वात-पित्त-कफ दोष का, नीबू करता अंत।
शक्ति बढ़ाता बदन की, सेवन करिए कंत।।
*
ए बी सी त्रय विटामिन, लौह वसा कार्बोज।
फॉस्फोरस पोटेशियम, सेवन देता ओज।।
*
मैग्निशियम प्रोटीन सँग, सोडियम तांबा प्राप्य।
साथ मिले क्लोरीन भी, दे यौवन दुष्प्राप्य।।
*
नेत्र ज्योति की वृद्धि कर, करे अस्थि मजबूत।
कब्ज मिटा, खाया-पचा, दे सुख-ख़ुशी अकूत।।
*
जल-नीबू-रस नमक लें, सुबह-शाम यदि छान।
राहत दे गर्मियों में, फूँक जान में जान।।
*
नींबू-बीज न खाइए, करे बहुत नुकसान।
भोजन में मत निचोड़ें, बाद करें रस-पान।।
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कब्ज अपच उल्टियों से, लेता शीघ्र उबार।
नीबू-सेंधा नमक सँग, अदरक है उपचार।।
*
नींबू अजवाइन शहद, चूना-जल लें साथ।
वमन-दस्त में लाभ हो, हँसें उठकर माथ।।
*
जी मिचलाए जब कभी, तनिक न हों बेहाल।
नीबू रस-पानी-शहद, आप पिएँ तत्काल।।
*
नींबू-रस सेंधा नमक, गंधक सोंठ समान।
मिली गोलियाँ चूसिए, सुबह-शाम गुणवान।
*
नींबू रस-पानी गरम, अम्ल पित्त कर दूर।
हरता उदर विकार हर, नियमित पिएँ हुज़ूर।।
*
आधा सीसी दर्द से, परेशान-बेचैन।
नींबू रस जा नाक में, देता पल में चैन।।
*
चार माह के गर्भ पर, करें शिकंजी पान।
दिल-धड़कन नियमित रहे, प्रसव बने आसान।।
*
कृष्णा तुलसी पात ले, पाँच- चबाएँ खूब।
नींबू-रस पी भगा दें, फ्लू को सुख में डूब।।
*
पिएँ शिकंजी, घाव पर, मलिए नींबू रीत।
लाभ एक्जिमा में मिले, चर्म नर्म हो मीत।।
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कान दर्द हो कान में, नींबू-अदरक अर्क।
डाल साफ़ करिए मिले, शीघ्र आपको फर्क।।
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नींबू-छिलका सुखाकर, पीस फर्श पर डाल।
दूर भगा दें तिलचटे, गंध करे खुशहाल।।
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नीबू-छिलके जलाकर, गंधक दें यदि डाल।
खटमल सेना नष्ट हो, खुद ही खुद तत्काल।।
*
पीत संखिया लौंग संग, बड़ी इलायची कूट।
नींबू-रस मलहम लगा, करें कुष्ठ को हूट।।
*
नींबू-रस हल्दी मिला, उबटन मल कर स्नान।
नर्म मखमली त्वचा पा, करे रूपसी मान।।
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मिला नारियल-तेल में, नींबू-रस नित आध।
मलें धूप में बदन पर, मिटे खाज की व्याध।।
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खूनी दस्त अगर लगे, घोलें दूध-अफीम।
नींबू-रस सँग मिला पी, सोयें बिना हकीम।।
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बवासीर खूनी दुखद, करें दुग्ध का पान।
नींबू-रस सँग-सँग पिएँ, बूँद-बूँद मतिमान।।
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नींबू-रस जल मिला-पी, करें नित्य व्यायाम।
क्रमश: गठिया दूर हो, पाएँगे आराम।।
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गला बैठ जाए- करें, पानी हल्का गर्म।
नींबू-अर्क नमक मिला, कुल्ला करना धर्म।।
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लहसुन-नींबू रस मिला, सिर पर मल कर स्नान।
मुक्त जुओं से हो सकें, महिलायें अम्लान।।
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नींबू-एरंड बीज सम, पीस चाटिए रात।
अधिक गर्भ संभावना, होती मानें बात।।
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प्याज काट नीबू-नमक, डाल खाइए रोज।
गर्मी में हो ताजगी, बढ़े देह का ओज।।
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काली मिर्च-नमक मिली, पियें शिकंजी आप।
मिट जाएँगी घमौरियाँ, लगे न गर्मी शाप।।
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चेहरे पर नींबू मलें, फिर धो रखिए शांति।
दाग मिटें आभा बढ़े, अम्ल-विमल हो कांति।।
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नमक आजवाइन मिला, नीबू रस के संग।
आधा कप पानी पिएँ, करती वायु न तंग।।
*
अदरक अजवाइन नमक, नीबू रस में डाल।
हो जाए जब लाल तब, खाकर हों खुशहाल।।
घटे पीलिया नित्य लें, गहरी-गहरी श्वास।
सुबह-शाम उद्यान में, अधरों पर रख हास।।
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लहसुन अजवाइन मिला, लें सरसों का तेल।
गरम करें छानें मलें, जोड़-दर्द मत झेल।।
कान-दर्द खुजली करे, खाएँ कढ़ी न भात।
खारिश दाद न रह सके, मिले रोग को मात।।
*
डालें बकरी-दूध में, मिसरी तिल का चूर्ण।
रोग रक्त अतिसार हो, नष्ट शीघ्र ही पूर्ण।।
७.१२.२०१८
***
छंद सप्तक १.
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शुभगति
कुछ तो कहो
चुप मत रहो
करवट बदल-
दुःख मत सहो
*
छवि
बन मनु महान
कर नित्य दान
तू हो न हीन-
निज यश बखान
*
गंग
मत भूल जाना
वादा निभाना
सीकर बहाना
गंगा नहाना
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दोहा:
उषा गाल पर मल रहा, सूर्य विहँस सिंदूर।
कहे न तुझसे अधिक है, सुंदर कोई हूर।।
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सोरठा
सलिल-धार में खूब,नृत्य करें रवि-रश्मियाँ।
जा प्राची में डूब, रवि ईर्ष्या से जल मरा।।
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रोला
संसद में कानून, बना तोड़े खुद नेता।
पालन करे न आप, सीख औरों को देता।।
पाँच साल के बाद, माँगने मत जब आया।
आश्वासन दे दिया, न मत दे उसे छकाया।।
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कुण्डलिया
बरसाने में श्याम ने, खूब जमाया रंग।
मैया चुप मुस्का रही, गोप-गोपियाँ तंग।।
गोप-गोपियाँ तंग, नहीं नटखट जब आता।
माखन-मिसरी नहीं, किसी को किंचित भाता।।
राधा पूछे "मजा, मिले क्या तरसाने में?"
उत्तर "तूने मजा, लिया था बरसाने में??"
*
एक दोहा
शिव नरेश देवेश भी, हैं उमेश दनुजेश.
सत-सुन्दर पर्याय हो, घर-घर पुजे हमेश.
***
कार्यशाला
यगण x ४ = यमाता x ४ = (१२२) x ४
बारह वार्णिक जगती जातीय भुजंगप्रयात छंद,
बीस मात्रिक महादैशिक जातीय छंद
बहर फऊलुं x ४
*
हमारा न होता, तुम्हारा न होता
नहीं बोझ होता, सहारा न होता
नहीं झूठ बोता, नहीं सत्य खोता-
कभी आदमी बेसहारा न होता
*
करों याद, भूलो न बातें हमारी
नहीं प्यार के दिन न रातें हमारी
कहीं भी रहो, याद आये हमेशा
मुलाकात पहली, बरातें हमारी
*
सदा ही उड़ेगी पताका हमारी
सदा भी सुनेगा जमाना हमारी
कभी भी न छोड़ा, कभी भी न छोड़ें
अदाएँ तुम्हारी, वफायें हमारी
*
कभी भी, कहीं भी सुनाओ तराना
हमीं याद में हों, नहीं भूल जाना
लिखो गीत-मुक्तक, कहो नज्म चाहे
बहाने बनाना, हमीं को सुनाना
*
प्रथाएँ भुलाते चले जा रहे हैं
अदाएँ भुनाते छले जा रहे हैं
न भूलें भुनाना,न छोड़ें सताना
नहीं आ रहे हैं, नहीं जा रहे हैं
७.१२.२०१६
***
लघुकथा -
द़ेर है
*
एक प्रकाशक महोदय को उनके द्वारा प्रकाशित पुस्तक विश्वविद्यालय में स्वीकृत होने पर बधाई दी तो उनहोंने बुझे मन से आभार व्यक्त किया। कारण पूछने पर पता चला कि विभागाध्यक्ष ने पाठ्यक्रम में लगवाने का लालच देकर छपवा ली, आधी प्रतियाँ खुद रख लीं। शेष प्रतियाँ अगले सत्र में विद्यार्थियों को बेची जाना थीं किन्तु विभागाध्यक्ष जुगाड़ फिट कर किसी अकादमी के अध्यक्ष बन गये। नये विभाध्यक्ष ने अन्य प्रकाशक की किताब पाठ्यक्रम में लगा दी।
अनेक साहित्यकार मित्र प्रकाशक जी द्वारा शोषण के कई प्रसंग बता चुके थे। आज उल्टा होता देख सोचा रहा हूँ देर है अंधेर नहीं।
***
लघु कथाएँ -
मुट्ठी से रेत
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आजकल बिटिया रोज शाम को सहेली के घर पढ़ाई करने का बहाना कर जाती है और सवेरे ही लौटती है। समय ठीक नहीं है, मना करती हूँ तो मानती नहीं। कल पड़ोसन को किसी लडके के साथ पार्क में घूमते दिखी थी।
यह तो होना ही है, जब मैंने आरम्भ में उसे रोक था तो तुम्हीं झगड़ने लगीं थीं कि मैं दकियानूस हूँ, अब लडकियों की आज़ादी का ज़माना है। अब क्या हुआ, आज़ाद करो और खुश रहो।
मुझे क्या मालूम था कि वह हाथ से बाहर निकल जाएगी, जल्दी कुछ करो।
दोनों बेटी के कमरे में गए तो मेज पर दिखी एक चिट्ठी जिसमें मनपसंद लडके के साथ घर छोड़ने की सूचना थी।
दोनों अवाक, मुठ्ठी से फिसल चुकी थी रेत।
***
समरसता
*
भृत्यों, सफाईकर्मियों और चौकीदारों द्वारा वेतन वृद्धि की माँग मंत्रिमंडल ने आर्थिक संसाधनों के अभाव में ठुकरा दी।
कुछ दिनों बाद जनप्रतिनिधियों ने प्रशासनिक अधिकारियों की कार्य कुशलता की प्रशंसा कर अपने वेतन भत्ते कई गुना अधिक बढ़ा लिये।
अगली बैठक में अभियंताओं और प्राध्यापकों पर हो रहे व्यय को अनावश्यक मानते हुए सेवा निवृत्ति से रिक्त पदों पर नियुक्तियाँ न कर दैनिक वेतन के आधार पर कार्य कराने का निर्णय सर्व सम्मति से लिया गया और स्थापित हो गयी समरसता।
७.१२.२०१५
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