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मंगलवार, 10 दिसंबर 2024

भवानी प्रसाद तिवारी

संस्कारधानी के जननायक भवानी प्रसाद तिवारी

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
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        स्वतन्त्रता संग्राम सत्याग्रही भवानी प्रसाद तिवारी (१३ फरवरी, १९१२ सागर - १३ दिसंबर १९७७ जबलपुर) प्रभावशाली वक्ता, विख्यात साहित्यकार, सजग शिक्षाविद एवं जनप्रिय राजनेता थे। आपके पिता श्री विनायक राव साहित्यभूषण जी थे। आपका जन्म भले ही सागर में हुआ परन्तु आपकी कर्मभूमि जबलपुर नगर रहा। मात्र १८ वर्ष की उम्र में वर्ष १९३० से आप राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय होकर पहली बार जेल गए। नमक सत्याग्रह १९३०, सविनय अवज्ञा आंदोलन १९३२, व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन १९४० तथा भारत छोड़ो आंदोलन १९४२ में सक्रिय भागीदारी कार आपने अपने जीवन के साढ़े तीन वर्ष जेल में ही व्यतीत किए। भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान भवानीप्रसाद तिवारी जी ने जबलपुर नगर में होने वाले जुलूसों, सभाओं का नेतृत्व करने के साथ तिलक भूमि तलैया में सिग्नल कोर के विरुद्ध विद्रोह की अगुवाई की। त्रिपुरी अधिवेशन १९३९ में सक्रियतापूर्वक भाग लेने के लिए आपने हितकारिणी स्कूल से शिक्षक पद की नौकरी से त्यागपत्र दे दिया।आप तिलक भूमि तलैया में हुए तीन दिवसीय अनशन में भी शामिल रहे।

        सम्मोहक व्यक्तित्व के धनी तिवारी जी १९३६ से १९४७ तक जबलपुर नगर कांग्रेस के लगातार ११ वर्षो तक अध्यक्ष रहे। तिवारी जी ने स्वतन्त्रता सेनानी होते हुए भी साहित्यकार, पत्रकार, सम्पादक तथा शिक्षाविद के रूप में कीर्तिमान स्थापित किए। तिवारी जी जबलपुर एवं सागर विश्वविद्यालय की कार्यकारिणी के सदस्य रहे। संस्कारधानी जबलपुर नगर के प्रथम महापौर निर्वाचित होने के साथ आपने ७ बार (१९५२ से १९५३ तथा १९५५ से १९५८ तथा १९६१) महापौर होने का अद्भुत कीर्तिमान स्थापित किया जो अब तक अभंग है। आप १९६४ से लगातार २ बार राज्यसभा सांसद निर्वाचित हुए। ये उपलब्धियाँ अत्यंत महत्वपूर्ण इसलिए हैं कि इसी दौर में जबलपुर में कॉंग्रेस दल में माखन लाल चतुर्वेदी, ब्योहार राजेन्द्र सिंह, सुभद्रा कुमारी चौहान, सेठ गोविंद दास, द्वारिका प्रसाद मिश्र, कुंजी लाल दुबे जैसे  प्रखर और लोकप्रिय नेता सक्रिय थे और आपने सशक्त और साधन संपन्न कॉंग्रेस द्वारा आदर्शों की पूर्ति न होते देखकर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (प्रसोपा) जैसे साधनहीन दल में रहकर ये सफलताएँ पाईं। 

        सांसद के रूप में भवानी प्रसाद तिवारी जी ने अपने क्षेत्र की समस्याओं को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में उठाया, सुझाव दिए, रेलवे बोर्ड तथा रेल मंत्री के मध्य सम्यक सामंजस्य की आवश्यकता प्रतिपादित की तथा नीतिगत त्रुटियों और अकारण विलंब को इंगित किया। उनके द्वारा की गई एक चर्चा रेलवे बजट १ जून १९७१ के पृष्ठ १६१ से १६८ पर पढ़ी जा सकती है। इसमें तिवारी जी ने जबलपुर-गोंदिया नैरो गेज को ब्रॉड गेज में बदलने की आवश्यकता तथा उसके लाभ पर प्रकाश डालते हुए इसे तत्काल कियान्वित करने पर बल दिया था। सरकारों की अदूरदृष्टि के कारण अब ब्रॉड गेज हो जाने पर भी इस पर यातायात अत्यल्प है।  

        भवानी प्रसाद तिवारी जी को यशस्वी  पत्रकार के रूप में प्रहरी समाचार पत्र के प्रकाशन तथा साहित्यकार के रूप में गीतांजलि के अनुगायन ने देशव्यापी प्रसिद्धि दिलाई। छायावादी काव्यशिल्प और भाव-भंगिमा पर सामाजिक संवेदना और राष्ट्रीय प्रवृत्ति को आपने वरीयता दी। प्रहरी पत्रिका ने हिंदी भाषा और साहित्य की महती सेवा की। मत-मतांतरों की चिंता किए बिना तिवारी जी ने केशव पाठक, रामानुज लाल श्रीवास्तव, सुभद्रा कुमारी चौहान, लक्ष्मण सिंह चौहान, नर्मदा प्रसाद खरे, हरिशंकर परसाई, रामेश्वर प्रसाद गुरु आदि की रचनाओं को प्रहरी में प्रमुखता से प्रकाशित करने में कभी कोताही नहीं की।    

            १९३८ में भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयनित होने पर भी उसे छोड़कर स्वतंत्रता सत्याग्रह में कूद पड़नेवाले कारावास में सुविख्यात समाजवादी  नेता (बाद में १९५२ व १९६२ में प्रसोपा तथा १९७७ में होशंगाबाद से जनता दल के सांसद) हरि विष्णु कामथ (१३ जुलाई १९०७ - १९८२) की प्रेरणा से आपने गीतांजलि का श्रेष्ठ अनुगायन किया। गीतांजलि के अंग्रेजी काव्यानुवाद से प्रेरित तिवारी जी द्वारा किये गए अनुगायन में मूल गीतांजलि के अनुरूप अनुक्रम भावगत समानता को देखते हुए स्वयं गुरुदेव ने इसे गीतांजलि का अनुवाद मात्र न मानकर सर्वथा मौलिक कृति निरूपित करते हुए तिवारी जी को आशीषित किया। कुछ पंक्तियों का आनंद लीजिए- 

‘दिखते हैं प्रभु कहीं,
यहाँ नहीं यहाँ नहीं,
फिर कहाँ? अरे वहाँ,
जहाँ कि वह किसान दीन,
वसनहीन तन मलीन,
जोतता कड़ी जमीन,
प्रभु वहीं कि जहाँ पर
वह मजूर करता है
चोटों से पत्थर को चूर’

        काव्य संग्रहों- 'प्राण पूजा' और ‘प्राण धारा’,  शोक गीत संग्रह 'तुम कहाँ चले गए’, संस्मरणात्मक निबंध संग्रह ‘जब यादें उभर आतीं हैं’,  जीवनी ‘गांधी जी की कहानी’, कथात्मक एवं समीक्षा संग्रह 'कथा वार्ता' तथा  ‘प्रहरी’ पत्रिका में प्रकाशित स्तंभों के संग्रहों ‘हाथों के मुख से’, ‘संजय के पत्र’ और ‘हमारी तुमसे और तुम्हारी हमसे’आदि के माध्यम से तिवारी जी अपनी असाधारण कारयित्री प्रतिभा के हस्ताक्षर समय-ग्रंथ पर किए। सागर विश्वविद्यालय द्वारा आपको डी. लिट. (मानद) उपाधि से विभूषित कर धन्य हुआ। महामहिम राष्ट्रपति जी द्वारा आपको १९७२ में 'पद्म श्री' अलंकरण से अलंकृत किया गया। 

        स्त्री-शिक्षा के समर्थक तिवारी जी ने अपनी पुत्रियों को उच्च शिक्षा प्राप्ति का हर अवसर उपलब्ध कराया। समाजवादी सिद्धांतों का पालन करते हुए आपने अपने पुत्र सतीश का अन्तर्जातीय विवाह सुप्रसिद्ध साहित्यकार-समीक्षक-संपादक रामानुजलाल श्रीवास्तव 'ऊँट बिलहरीवी की प्रतिभाशाली छोटी बेटी अनामिका से कराया। आपने महाकौशल शिक्षा प्रसार समिति का गठनकर  बिदाम बाई कन्या शाला तथा चंचल बाई महिला माहा विद्यालय की स्थापना की। वे सच्चे जननायक थे। वे महापौर रहे या सांसद, वे आम जन के लिए हमेशा उपलब्ध रह सकें इसलिए उन्होंने अपने आवास के चारों ओर दीवाल न बनवाकर पौधों तथा लताओं की बागड़ लगवाई थी। महापौर के नाते मिली कार का उपयोग वे केवल सरकारी कार्य के लिए करते तथा निजी कार्य हेतु साइकिल से जाते थे। जनता से संवाद स्थापित करने में वे निष्णात थे। १९५७ में दलबंदी के कारण वे महापौर का चुनाव हार गए। इससे आमजन इतना रुष्ट हुए कि विजयी प्रत्याशी के जुलूस को ही रोक लिया। किसी तरह बात न बनी तो पुलिस अधिकारी ने आपको समस्या से अवगत कराया। आपने व्यक्तिगत जय-पराजय की चिंता किए बिना तत्काल विवाद स्थल पर पहुँचकर भीड़ को शांत करा दिया। 

        राजनीति में बढ़ते परिवारवाद जनित समस्या का पूर्वानुमान करते हुए आपने अपनी सुशिक्षित तथा योग्य संतानों (पुत्र सतीश तथा ५ पुत्रियों गीता, चित्रा दुबे, आभा दुबे, प्रतिभा शर्मा, मंगला शर्मा) में से किसी को राजनीति में प्रवेश नहीं करने दिया। कालक्रम में चित्रा चिकित्सक, आभा शिक्षिका तथा पुत्रवधू डॉ. अनामिका तिवारी (मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ के प्रथम तथा भारत की प्रख्यात पादप विज्ञानी, पूर्व प्राध्यापक ज. ला. नेहरू कृषि विश्व विद्यालय जबलपुर) ने आपकी गौरवपूर्ण विरासत को सम्हाला तथा प्रकाशित करने का भागीरथ प्रयास किया है। मेरा सौभाग्य है कि मुझे अनामिका जी द्वारा भवानीप्रसाद तिवारी जी की स्मृति में स्थापित प्रथम साहित्य श्री सम्मान प्राप्त हुआ है। प्रस्तुत है तिवारी जी की एक रचना आभा जी के सौजन्य से -

आम पर मंजरी
भवानी प्रसाद तिवारी
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घने आम पर मंजरी आ गई .....
शिशिर का ठिठुरता हुआ कारवां
गया लाद कर शीत पाला कहाँ
गगन पर उगा एक सूरज नया
धरा पर उठा फूल सारा जहां
अभागिन वसनहीनता खुश कि लो
नई धूप आ गात सहला गई ........
नए पात आए पुरातन झड़े
लता बेल द्रुम में नए रस भरे
चहक का महक का समा बँध गया
नए रंग ....धानी गुलाबी हरे
प्रकृति के खिलौने कि जो रंग गई
मनुज के कि दुख दर्द बहला गई ........
पवन चूम कलियाँ चटकने लगीं
किशोरी अलिनियाँ हटकने लगीं
रसानंद ,मकरंद ,मधुगंध में
रंगीली तितलियाँ भटकने लगीं
मलय-वात का एक झोंका चला
सुनहली फसल और लहरा गई ........

'सादा जीवन उच्च विचार' को पल पल जीनेवाले भवानी प्रसाद तिवारी जी अपनी मिसाल आप थे। जबलपुर नगर निगम प्रांगण में आपकी मानवकार प्रतिमा स्थापित की जाए तथा डाक-तार विभाग द्वारा डाक टिकिट निकाला जाए तो राजनेताओं को जनोन्मुखी राजनीति करने तथा आम लोगों को आदर्शपरक जीवन जीने की तथा स्त्री अधिकारों के पक्षधरों को ठोस कार्य करने की प्रेरणा मिलेगी। 
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