सलिल सृजन सितंबर ७
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सॉनेट
मैं-तू; तू-तू मैं-मैं करते
एक-नेक जब मिलकर हों हम
मिले ख़ुशी हों दूर सभी गम
जग के सब सुख मिलकर वरते
मेरा-तेरा कर दुःख पाते
गैर न कोई कहीं सृष्टि में
दिखे गैर तो खोट दृष्टि में
सबकी खातिर मर; जी जाते
सारे मानव सदा एक हों
साथी नैतिकता-विवेक हों
सदा इरादे सभी नेक हों
नीर-क्षीर जैसे मिल पाएँ
भुज भेंटें; हँस गले लगाएँ
सु-मन सुमन जैसे खिल पाएँ
७-९-२०२२
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माहिया
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सेविन जी न घबराना
फिर करना कोशिश
चंदा पे उतर जाना।
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है गर्व बहुत सबको
आँखों का तारा
इसरो है बहुत प्यारा।
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मंजिल न मिली तो क्या
सही दिशा में पग
रख पा ही लेंगे कल।
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जीवन सलिला
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जीवन जीते हैं सभी,
किंतु नहीं जिंदा
जिंदा है वही जीवन
जो करे न पर निंदा।
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जीवन तो बहाना है
असली नकली परहित
कर हमको जाना है।
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जीवन है चलना
गिर रुक उठकर बढ़ना
बिन चुक पर्वत चढ़ना।
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जीवन जी वन में तू
महसूस तभी होगा
क्या मिला न शहरों में?
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जीवन सलिला बहती
प्रयासों को दे पानी
कुछ साथ नहीं तहती।
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जीवन में सहारा हो
जब तक न किसी का तू
तब तक न जिया जीवन।
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आज की प्रात
इसरो परिवार के लगन, श्रम, साहस, समर्पण और योग्यता को नमन
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शोभित है आलोक से, कुछ मायूस विहान।
कित भरमाया है कहो, अपना प्रिय प्रग्यान।।
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हाथी निकले जहाँ से, वहीं अटकती पूँछ।
सत्य हुई लोकोक्ति पर, तनिक न नीची मूँछ।।
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फिर कोशिश कर सफलता, पाएँगे हम मीत।
गिर-उठ जाला बनाकर, मकड़ी के रण जीत।।
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विक्रम कभी न हारता, लिखता है तकदीर।
हर बाधा को जय करे, तकनीकी तदबीर।।
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भारत जाकर चाँद पर, रचे नया इतिहास।
यह कोशिश जारी रखें, ले अधरों पर हास।।
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सबका यह संकल्प है, तनिक न लेंगे चैन।
ध्वजा तिरंगी चंद्र पर, जो चक लखें न नैन।।
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बाधा-संकट से न डर, बाकी है अरमान।
आस न तज पूरा करें, सब मिलकर अभियान।।
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बाल कविता
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इसरोवाले कक्का जी
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इसरोवाले कक्का जी
हम हैं हक्का-बक्का जी
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चंदा मामा दूर के,
अब लगते हैं हमें समीप
आसमान के सागर में
गो-आ सकते ऐसा द्वीप
गोआ जैसा सागर भी
क्या हमको मिल पाएगा?
छप्-छपाक्-छप् लहरों संग
क्या पप्पू कर गाएगा?
आर्बिटर का कक्षा क्या
मेरी कक्षा जैसी है?
मेरी मैडम कड़क बहुत
क्या मैडम भी वैसी है?
बैल-रेल गाड़ी जैसा
लैंडर कौन चलाएगा?
चंदा मामा से मिलने
कोई बच्चा जाएगा?
कक्का मुझको भिजवा दो
जिद न करूँगा मैं बिल्कुल
रोवर से ना झाँकूँगा
नहीं करूँगा मैं हिलडुल
इतने ऊपर जाऊँगा
ज्यों धोना का छक्का जी
बहिना को भी सँग भेजो
इसरोवाले कक्का जी
७-९-२०१९
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विमर्श: २
देवता कौन हैं?
देवता, 'दिव्' धातु से बना शब्द है, अर्थ 'प्रकाशमान होना', भावार्थ परालौकिक शक्ति जो अमर, परा-प्राकृतिक है और पूजनीय है। देवता या देव इस तरह के पुरुष और देवी इस तरह की स्त्रियों को कहा गया है। देवता परमेश्वर (ब्रह्म) का लौकिक या सगुण रूप माने गए हैं।
बृहदारण्य उपनिषद के एक आख्यान में प्रश्न है कि कितने देव हैं? उत्तर- वास्तव में देव केवल एक है जिसके कई रूप हैं। पहला उत्तर है ३३ कोटि (प्रकार); और पूछने ३ (विधि-हरि-हर या ब्रम्हा-विष्णु-महेश) फिर डेढ़ और फिर केवल एक (निराकार जिसका चित्र गुप्त है अर्थात नहीं है)। वेद मंत्रों के विभिन्न देवता (उपास्य, इष्ट) हैं। प्रत्येक मंत्र का ऋषि, कीलक और देवता होता है।
देवताओं का वर्गीकरण- चार मुख्य प्रकार
१. स्थान क्रम से वर्णित देवता- द्युस्थानीय यानी ऊपरी आकाश में निवास करनेवाले देवता, मध्यस्थानीय यानी अंतरिक्ष में निवास करने वाले देवता, और तीसरे पृथ्वीस्थानीय यानी पृथ्वी पर रहनेवाले देवता।
२. परिवार क्रम से वर्णित देवता- इन देवताओं में आदित्य, वसु, रुद्र आदि हैं।
३. वर्ग क्रम से वर्णित देवता- इन देवताओं में इन्द्रावरुण, मित्रावरुण आदि देवता हैं।
४. समूह क्रम से वर्णित देवता -- इन देवताओं में सर्व देवा (स्थान, वस्तु, राष्ट्र, विश्व आदि) गण्य हैं।
ऋग्वेद में स्तुतियों से देवता पहचाने जाते हैं। ये देवता अग्नि, वायु, इंद्र, वरुण, मित्रावरुण, अश्विनीकुमार, विश्वदेवा, सरस्वती, ऋतु, मरुत, त्वष्टा, ब्रहस्पति, सोम, दक्षिणा इन्द्राणी, वरुणानी, द्यौ, पृथ्वी, पूषा आदि हैं। बहु देवता न माननेवाले सब नामों का अर्थ परब्रह्म परमात्मावाचक करते हैं। बहुदेवतावादी परमात्मात्मक रूप में इनको मानते है। पुराणों में इन देवताओं का मानवीकरण अथवा लौकिकीकरण हुआ, फ़िर इनकी मूर्तियाँ, संप्रदाय, अलग-अलग पूजा-पाठ बनाये गए।
धर्मशास्त्र में "तिस्त्रो देवता" (तीन देवता) ब्रह्मा, विष्णु और शिव का का कार्य सृष्टि का निर्माण, पालन और संहार माना जाता है। काल-क्रम से देवों की संख्या बढ़ती गई। निरुक्तकार यास्क के अनुसार,"देवताऒ की उत्पत्ति आत्मा से है"। महाभारत (शांति पर्व) तथा शतपथ ब्राह्मण में आदित्यगण क्षत्रिय देवता, मरुदगण वैश्य देवता, अश्विनी गण शूद्र देवता और अंगिरस ब्राहमण देवता माने गए हैं।
आदित्या: क्षत्रियास्तेषां विशस्च मरुतस्तथा, अश्विनौ तु स्मृतौ शूद्रौ तपस्युग्रे समास्थितौ, स्मृतास्त्वन्गिरसौ देवा ब्राहमणा इति निश्चय:, इत्येतत सर्व देवानां चातुर्वर्नेयं प्रकीर्तितम।।
शुद्ध बहु ईश्वरवादी धर्मों में देवताओं को पूरी तरह स्वतंत्र माना जाता है। प्रमुख वैदिक देवता गणेश (प्रथम पूज्य), सरस्वती, श्री देवी (लक्ष्मी), विष्णु, शक्ति (दुर्गा, पार्वती, काली), शंकर, कृष्ण, इंद्र, सूर्य, हनुमान, ब्रह्मा, राम, वायु, वरुण, अग्नि, शनि , कार्तिकेय, शेषनाग, कुबेर, धन्वंतरि, विश्वकर्मा आदि हैं।
देवता का एक वर्गीकरण जन्मा तथा अजन्मा होना भी है। त्रिदेव, त्रिदेवियाँ आदि अजन्मा हैं जबकि राम, कृष्ण, बुद्ध आदि जन्मा देवता हैं इसी लिए उन्हें अवतार कहा गया है।
देवता मानव तथा अमानव भी है। राम, कृष्ण, सीता, राधा आदि मानव, जबकि हनुमान, नृसिंह आदि अर्ध मानव हैं जबकि मत्स्यावतार, कच्छपावतार आदि अमानव हैं।
प्राकृतिक शक्तियों और तत्वों को भी देवता कहा गया हैं क्योंकि उनके बिना जीवन संभव न होता। पवन देव (हवा), वैश्वानर (अग्नि), वरुण देव (जल), आकाश, पृथ्वी, वास्तु आदि ऐसे ही देवता हैं।
सार यह कि सनातन धर्म (जिसका कभी आरंभ या अंत नहीं होता) 'कंकर-कंकर में शंकर' कहकर सृष्टि के निर्माण में छोटे से छोटे तत्व की भूमिका स्वीकारते हुए उसके प्रति आभार मानता है और उसे देवता कहता है।इस अर्थ में मैं, आप, हम सब देवता हैं। इसीलिए आचार्य रजनीश ने खुद को 'ओशो' कहा और यह भी कि तुम सब भी ओशो हो बशर्ते तुम यह सत्य जान और मान पाओ।
अंत में प्रश्न यह कि हम खुद से पूछें कि हम देवता हैं तो क्या हमारा आचरण तदनुसार है? यदि हाँ तो धरती पर ही स्वर्ग है, यदि नहीं तो फिर नर्क और तब हम सब एक-दूसरे को स्वर्गवासी बनाने के अतिरिक्त और कुछ नहीं कर रहे। हमारा ऐसा दुराचरण ही पर्यावरणीय समस्याओं और पारस्परिक टकराव का मूल कारण है।
आइए, प्रयास करें देवता बनने का।
७-९-२०१८
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दोहा सलिला
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पुंगी फल पर विराजे, श्री गणेश विघ्नेश
यही विनय है 'सलिल' की, काटो सकल कलेश
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श्याम-गौर में भेद क्या, हैं दोनों ही एक
बुद्धि-ज्ञान के द्वैत को, मिथ्या कहे विवेक
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राम-श्याम हैं एक ही, अंतर तनिक न मान
परमतत्व गुणवान है, आदिशक्ति रसखान
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कृष्ण कर्म की प्रेरणा, राधा निर्मल नेह
सँग अनुराग-विराग हो, साधन है जग-देह
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कण-कण में श्री कृष्ण हैं, देख सके तो देख
करना काम अकाम रह, खींच भाग्य की रेख
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मुरलीधर ने कर दिया, नागराज को धन्य
फण पर पगरज तापसी, पाई कृपा अनन्य
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आत्म शक्ति राधा अजर, श्याम सुदृढ़ संकल्प
संग रहें या विलग हों, कोई नहीं विकल्प
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हर घर में गोपाल हो, मातु यशोदा साथ
सदाचार बढ़ता रहे, उन्नत हो हर माथ
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मातु यशोदा चकित चित, देखें माखनचोर
दधि का भोग लगा रहा, होकर भाव विभोर
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मन मंदिर में विराजो, हे लड्डू गोपाल
जिव्हा पर तव नाम हो, कर में हो करताल
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जहाँ दृष्टि जाती वहीं, दीखते हैं श्रीनाथ
चाह रहे श्री मात्र को, जो वे अधम अनाथ
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माया है संसार यह, देवी हरें विकार
नेकी रतन बटोर तब, पर का हो उद्धार
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रजत ताम्र या काष्ठ का, कोई नहीं है मोल
ह्रदय-सिंहासन बैठिए, प्रभुजी रहें अडोल
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शिला गण्डकी नदी की, शालिगराम अमोल
शंख दक्षिणावर्त संग, पूजें नवरस घोल
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बैठ जिलहरी शिव हँसें, नाग देखता मौन
माला ले रुद्राक्ष की, फेरे पल-पल कौन?
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जाम सांवली विराजित, लेटे श्री हनुमान
भूत-प्रेत बाधा हरें, सबकी दयानिधान
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सीपी में मोती बनें, हैं लक्ष्मी के वास
नित्य पूजिए- पाइए, शांति-सौख्य अहसास
७.९.२०१५
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मुक्तक
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मॉर्निंग नून ईवनिंग नाइट
खुद से करते है हम फाइट
रॉंग लग रहा है जो हमको
उसे जमाना कहता राइट
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आते अच्छे दिन सुना
गुड डे कह हम मस्त
गुंडे मिलकर छेड़ते
गुड्डे-गुड्डी त्रस्त
७-९-२०१४
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